मध्य प्रदेश हाईकोर्ट.
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MP: मुवक्किल को नहीं मिलेगी वकील की गलती की सजा, न्याय के साथ सामाजिक जिम्मेदारी भी: HC

न्यायमूर्ति आनंद पाठक ने सुनवाई के दौरान सोशल ऑडिट का अभिनव सुझाव रखा। अदालत ने अपीलकर्ता के वकील प्रशांत शर्मा को ग्वालियर स्थित माधव अंधाश्रम जाने, वहां 10 हजार रुपये की खाद्य सामग्री प्रदान करने और एक घंटा बच्चों व निवासियों के साथ बिताने की सलाह दी।
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भोपाल। मध्यप्रदेश हाई कोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने एक महत्वपूर्ण आदेश पारित करते हुए यह स्पष्ट किया है कि किसी वकील की लापरवाही या भूल की सजा उसके मुवक्किल को नहीं भुगतनी चाहिए। न्यायमूर्ति आनंद पाठक और न्यायमूर्ति पुष्पेंद्र यादव की खंडपीठ ने सुशील वर्मा बनाम मध्यप्रदेश औद्योगिक अवसंरचना विकास निगम मामले में अपील को स्वीकार करते हुए पूर्व में खारिज की गई याचिका को मूल क्रमांक पर पुनः बहाल करने का निर्देश दिया। यह मामला वर्ष 2011 से लंबित था और जुलाई 2025 में याचिकाकर्ता के वकील की अनुपस्थिति के चलते याचिका खारिज कर दी गई थी।

याचिकाकर्ता ने इस आदेश के खिलाफ पुनर्स्थापन का आवेदन भी दाखिल किया, जिसे 13 अगस्त 2025 को अस्वीकार कर दिया गया। इसके बाद अपील की गई, जिसमें कहा गया कि यह स्थिति केवल तकनीकी कारणों से उत्पन्न हुई थी, न कि याचिकाकर्ता की अनिच्छा या लापरवाही से। अदालत ने अपील पर विचार करते हुए सुप्रीम कोर्ट और अपने ही कई पूर्ववर्ती निर्णयों का हवाला दिया और कहा कि न्याय का मूल सिद्धांत यह है कि वकील की भूल या अनुपस्थिति के कारण याचिकाकर्ता को उसके अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। इसी आधार पर याचिका को पुनः बहाल करने का आदेश पारित किया गया।

इस मामले में न्यायालय ने केवल कानूनी पहलुओं तक सीमित न रहते हुए सामाजिक दृष्टिकोण भी प्रस्तुत किया। न्यायमूर्ति आनंद पाठक ने सुनवाई के दौरान सोशल ऑडिट का अभिनव सुझाव रखा। अदालत ने अपीलकर्ता के वकील प्रशांत शर्मा को ग्वालियर स्थित माधव अंधाश्रम जाने, वहां 10 हजार रुपये की खाद्य सामग्री प्रदान करने और एक घंटा बच्चों व निवासियों के साथ बिताने की सलाह दी। अदालत ने स्पष्ट किया कि यह कोई दंडात्मक आदेश नहीं है, बल्कि समाज और पीड़ित वर्गों के प्रति जिम्मेदारी का बोध कराने का प्रयास है।

वकील प्रशांत शर्मा ने इस सुझाव को सहर्ष स्वीकार किया और अदालत को आश्वासन दिया कि वे 15 दिन के भीतर इस गतिविधि की विस्तृत रिपोर्ट और शपथपत्र न्यायालय में प्रस्तुत करेंगे।

संस्थानों में जवाबदेही संवेदना का संदेश

न्यायालय ने टिप्पणी करते हुए कहा कि इस तरह के सामाजिक प्रयास न केवल संस्थानों में रहने वाले बच्चों, बुजुर्गों और पीड़ितों को यह संदेश देंगे कि समाज उनके साथ खड़ा है, बल्कि संस्थानों के संचालक भी जवाबदेह बने रहेंगे। अदालत ने राज्य सरकार, महिला एवं बाल विकास विभाग तथा समाज कल्याण विभाग को भी सलाह दी कि वे इस दिशा में ठोस पहल करें और ऐसे प्रयासों को प्रोत्साहित करें, जिससे सामाजिक संस्थाओं में पारदर्शिता और मानवीय संवेदना बनी रहे।

पूर्व आदेश निरस्त

अदालत ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता द्वारा रिपोर्ट और शपथपत्र जमा करने के बाद याचिका मूल क्रमांक पर बहाल मानी जाएगी। साथ ही, 21 जुलाई और 13 अगस्त 2025 को पारित आदेशों को निरस्त कर दिया गया। अदालत ने आदेश की प्रति राज्य सरकार और संबंधित विभागों को भी भेजने के निर्देश दिए, ताकि आगे इस तरह की पहल संस्थागत रूप से आगे बढ़ सके।

द मूकनायक से बातचीत में विधि विशेषज्ञ और अधिवक्ता मयंक सिंह ने कहा, यह निर्णय केवल एक कानूनी राहत ही नहीं, बल्कि न्यायालय की सामाजिक संवेदनशीलता का प्रतीक भी है। वकील की भूल के कारण लंबे समय से लंबित मामले को पुनः जीवित करने के साथ-साथ अदालत ने यह संदेश भी दिया कि न्याय केवल आदेशों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें समाज की पीड़ा को महसूस करने और जिम्मेदारी निभाने की भी आवश्यकता है।

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