"चमारों की गली..." जब एक 'ठाकुर' कवि की इस कविता से उनकी ही बिरादरी में मच गया था बवाल

अदम गोंडवी जयंती: 'जनकवि' जिसने ठाकुर होकर दलितों के हक में कलम उठाई और 'चमारों की गली' लिखकर अपनी बिरादरी से बगावत मोल ली।
Adam Gondvi Jayanti: 'People's poet' who, being a Thakur, took up the pen in support of the rights of Dalits and faced rebellion from his community by writing 'Chamaron ki Gali'.
जनता की आवाज का शायर: अदम गोंडवी और 'चमारों की गली' का विद्रोह
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नई दिल्ली: अदम गोंडवी, जिनका वास्तविक नाम रामनाथ सिंह था, हिंदी साहित्य के उन चुनिंदा कवियों में से एक हैं जिन्होंने अपनी तीखी और साहसी कविताओं के माध्यम से सामाजिक अन्याय, गरीबी, जातिवाद और राजनीतिक भ्रष्टाचार को निशाना बनाया। उनका जन्म 22 अक्टूबर 1947 को उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के अट्टा परसपुर गांव में एक गरीब किसान परिवार में हुआ था। 

बचपन से ही ग्रामीण जीवन की कठोर वास्तविकताओं से रूबरू होने वाले अदम ने अपनी कविताओं में आम आदमी की पीड़ा को इतनी सशक्तता से उकेरा कि उन्हें 'दूसरा दुष्यंत कुमार' कहा जाने लगा।

उनकी प्रमुख रचनाओं में कविता संग्रह ‘धरती की सतह पर’ और ‘समय से मुठभेड़’ शामिल हैं, जो दलितों, हाशिए पर जीने वाले लोगों और शोषित वर्गों की आवाज बन गईं।

अदम की गजलें न केवल आलोचना का हथियार हैं, बल्कि क्रांति की चिंगारी भी—जैसे उनकी प्रसिद्ध पंक्तियां: "फटे कपड़ों में तन ढ़ाके गुजरता है जहां कोई / समझ लेना वो पगडंडी 'अदम' के गांव जाती है।"

अदम गोंडवी को "जनकवि" और "विद्रोह का शायर" कहा गया। उनके जीवन और काव्य पर केंद्रित कृतियां, जैसे कि 'अदम गोंडवी: जीवन और काव्य', इस बात की पुष्टि करती हैं कि उनकी कलम का मकसद महज वाहवाही लूटना नहीं, बल्कि व्यवस्था को आईना दिखाना था। उनके करियर को परिभाषित करने वाला एक ऐसा ही अविस्मरणीय किस्सा है उनकी सबसे चर्चित और साहसिक रचना 'मैं चमारों की गली तक ले चलूंगा आपको' का प्रकाशन।

अदम गोंडवी का साहित्यिक करियर एक ऐसे अद्वितीय मोड़ पर आकर खड़ा हुआ, जहां उन्होंने व्यक्तिगत सुरक्षा और सामाजिक सम्मान को दांव पर लगाकर शोषितों की आवाज बनने का फैसला किया। गोंडा, उत्तर प्रदेश के ठाकुर परिवार से आने वाले रामनाथ सिंह ने अपनी औपचारिक शिक्षा भले ही प्राइमरी तक पूरी की, लेकिन जीवन के अनुभवों ने उन्हें समाजशास्त्र का सबसे बड़ा विद्वान बना दिया।

उनकी कविताएं और गजलें तब तक मुशायरों में लोकप्रिय हो चुकी थीं, लेकिन उनके करियर का असली इंकलाब उनकी पहली लंबी कविता 'मैं चमारों की गली तक ले चलूंगा आपको' से आया। इस कविता ने उन्हें एक क्षेत्रीय कवि से राष्ट्रीय स्तर का कवि बनाया।

यह रचना महज गरीबी या भूख का वर्णन नहीं थी, यह उत्तर प्रदेश के ग्रामीण परिवेश में दलितों, खासकर एक दलित किशोरी के साथ हुए जघन्य बलात्कार और उसके बाद सामंती ठाकुरों द्वारा (अपनी ही बिरादरी) पुलिस के सहयोग से दलित बस्ती पर किए गए अत्याचारों की भयावह दास्तान थी। उस समय किसी सवर्ण कवि का इतना तीखा और बेबाक ढंग से अपनी ही जाति के शोषण और क्रूरता को सार्वजनिक करना, और शोषितों के पक्ष में खड़े होना, एक अभूतपूर्व साहित्यिक विद्रोह था।

अदम गोंडवी को इस कविता के लिए न सिर्फ साहित्यिक प्रशंसा मिली, बल्कि उन्हें अपने गांव और बिरादरी के भीतर भयंकर सामाजिक विरोध और बहिष्कार का सामना भी करना पड़ा। उन्होंने अपने जीवन की अंतिम सांस तक एक किसान की तरह जीवन जिया और सत्ता के किसी भी प्रलोभन को अस्वीकार कर दिया।

अदम ने अपनी कलम से साबित कर दिया कि एक कवि का सबसे बड़ा धर्म सत्य बोलना और शोषित के पक्ष में खड़ा होना होता है। उनकी यह रचना उनके करियर का सिद्धांत बन गई, जिसने हिंदी गजल को महफिलों से निकालकर सीधे आम जनता की पीड़ा और प्रतिरोध के मैदान में उतार दिया।

यह कविता आज भी भारतीय राजनीति और सामाजिक न्याय पर एक तीखी टिप्पणी है, जिसमें वे कहते हैं, "तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है, मगर आंकड़े झूठे हैं, ये दावा किताबी है। ... आइए महसूस करिए जिंदगी के ताप को, मैं चमारों की गली तक ले चलूंगा आपको।"

18 दिसंबर 2011 को लखनऊ के अस्पताल में लीवर सिरोसिस से उनका निधन हो गया, लेकिन उनकी रचनाएं आज भी सामाजिक न्याय की लड़ाई को प्रेरित करती रहती हैं।

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