चेन्नई- मद्रास उच्च न्यायालय ने एक संवेदनशील मामले में महत्वपूर्ण निर्णय दिया है, जिसमें एक स्कूल के प्रधानाध्यापक पर बाल यौन शोषण की घटना की रिपोर्ट न करने का आरोप था। न्यायमूर्ति पी. वेलमुरुगन की अध्यक्षता वाली न्यायपीठ ने प्रधानाध्यापक की याचिका को खारिज करते हुए स्कूल प्रशासन की बच्चों के प्रति जिम्मेदारी पर जोर दिया है।
यह मामला 2018 में कोयम्बतूर के एक स्कूल में 8वीं कक्षा की छात्रा के साथ हुए यौन शोषण से संबंधित है, जिसमें प्रधानाध्यापक पर POCSO अधिनियम के तहत घटना की रिपोर्ट न करने का गंभीर आरोप लगाया गया था। जांच के दौरान, प्रधानाध्यापक को तीसरे आरोपी के रूप में शामिल किया गया, क्योंकि उन्होंने अधिकारियों को इस संवेदनशील घटना की सूचना नहीं दी थी।
याचिकाकर्ता ने अपने बचाव में तर्क दिया कि जब घटना हुई, तब वे प्रधानाध्यापक थे और उन्हें पीड़िता से कोई शिकायत नहीं मिली थी। साथ ही, उन्होंने चार्जशीट में तीन साल की देरी पर भी सवाल उठाए। याचिकाकर्ता, आथिमूलम, जो पहले FIR में आरोपी नहीं थे, जांच के बाद उन्हें तीसरे आरोपी के रूप में जोड़ा गया, क्योंकि उन्होंने इस घटना की रिपोर्ट नहीं की थी। हालांकि, अतिरिक्त सरकारी वकील ने स्पष्ट किया कि जांच में मिले सबूतों के आधार पर ही प्रधानाध्यापक को आरोपी के रूप में जोड़ा गया है।
न्यायमूर्ति पी. वेलमुरुगन ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि स्कूल के अधिकारियों की बच्चों की सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। उन्होंने कहा,
“प्रधानाध्यापक पूरे स्कूल के अभिभावक होते हैं। अगर POCSO एक्ट के तहत कोई घटना हुई है, तो उसे तुरंत जिला बाल सुरक्षा अधिकारी या पुलिस को सूचित किया जाना चाहिए।”
न्यायाधीश ने यह भी कहा कि प्रधानाध्यापक ने न तो अधिकारियों को इस यौन हिंसा के बारे में सूचित किया और न ही आरोपी के खिलाफ कोई कार्रवाई की, जिससे उन्होंने अपनी जिम्मेदारी का पालन नहीं किया।
याचिकाकर्ता के वकील ने यह तर्क किया कि उनकी नामजदगी चार्जशीट में गलत है, क्योंकि FIR में उनका नाम नहीं था। अतिरिक्त सरकारी वकील ने कहा कि जांच में मिले सबूतों के आधार पर प्रधानाध्यापक को आरोपी के रूप में जोड़ा गया।
न्यायमूर्ति वेलमुरुगन ने याचिकाकर्ता के तर्कों को खारिज करते हुए कहा,
“FIR या चार्जशीट के स्तर पर कोर्ट किसी सामग्री पर विश्वास नहीं कर सकता, इसे परीक्षण के दौरान ही प्रमाणित किया जा सकता है। हर POCSO मामला अलग होता है और इस मामले की जांच trial के दौरान ही की जानी चाहिए।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि प्रधानाध्यापक के रूप में याचिकाकर्ता पर POCSO एक्ट के तहत घटनाओं की रिपोर्ट करने की जिम्मेदारी थी। न्यायमूर्ति ने कहा,
“चूंकि याचिकाकर्ता के खिलाफ प्राथमिक आरोप हैं, कोर्ट चार्जशीट को रद्द करने के पक्ष में नहीं है।”
कोर्ट ने मामले को डिसमिस करने से पहले पुलिस को 12 दिसंबर तक रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया, जिसमें यह बताया जाए कि याचिकाकर्ता के खिलाफ क्या कदम उठाए गए हैं, और क्या शिक्षा विभाग को उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई की सिफारिश की गई है। इस मामले की अगली सुनवाई 16 दिसंबर को होगी। इस आदेश से कोर्ट ने यह संदेश दिया है कि POCSO एक्ट के तहत बच्चों की सुरक्षा से जुड़े कानूनी कर्तव्यों का पालन करना बेहद जरूरी है, ताकि पीड़ितों को न्याय मिल सके।
यह निर्णय यह भी बताता है कि संस्थानों को अपनी नैतिक और कानूनी जिम्मेदारियों का पालन करते हुए यह सुनिश्चित करना चाहिए कि रिपोर्टिंग में कोई चूक न हो।
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