रामपुर तिराहा कांड: दुष्कर्म के आरोपी सिपाहियों को 30 साल बाद मिली आजीवन कारावास की सजा

अपर जिला एवं सत्र न्यायालय संख्या-7 के पीठासीन अधिकारी शक्ति सिंह ने दो दोषी सिपाहियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है।
सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीरफोटो साभार- इंटरनेट

उत्तराखंड: चर्चित रामपुर तिराहा कांड में सामूहिक दुष्कर्म, लूट, छेड़छाड़ और साजिश रचने के मामले में अदालत ने आखिरकार फैसला सुना दिया। पीएसी के दो सिपाहियों पर 15 मार्च को दोष सिद्ध हो चुका था। अपर जिला एवं सत्र न्यायालय संख्या-7 के पीठासीन अधिकारी शक्ति सिंह ने सुनवाई की और दोनों दोषी सिपाहियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। इसके अलावा दोषियों पर 40 हजार रुपए अर्थदंड भी लगाया है। जिसके बाद दोनों आरोपियों को न्यायालय के आदेश पर पुलिस अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, शासकीय अधिवक्ता, फौजदारी, राजीव शर्मा, सहायक शासकीय अधिवक्ता, फौजदारी, परवेंद्र सिंह, सीबीआई के विशेष लोक अभियोजक धारा सिंह मीणा और उत्तराखंड संघर्ष समिति के अधिवक्ता अनुराग वर्मा ने बताया कि सीबीआई बनाम मिलाप सिंह की पत्रावली में सुनवाई पूरी हो चुकी है। अभियुक्त मिलाप सिंह और वीरेंद्र प्रताप सिंह पर दोष सिद्ध हुआ था।

क्या था मामला?

1994 में उत्तराखंड अपने अलग राज्य करने की मांग कर रहा था। पहले उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश का ही हिस्सा था। वहां के सभी लोग अपना एक अलग राज्य चाहते थे। इसको लेकर उत्तराखंड के अलग-अलग जगह पर आंदोलन चल रहे थे। एक अलग राज्य की मांग को लेकर उत्तराखंड की संपूर्ण जनता पूरी ताकत के साथ सड़कों पर थी। इनमें महिला आंदोलनकारी भी शामिल थीं। अक्टूबर 1994 को अलग राज्य (उत्तराखंड) बनाने की मांग को लेकर देहरादून से बसों में सवार होकर आंदोलनकारी दिल्ली जा रहे थे। रात करीब एक बजे रामपुर तिराहा पर बस रूकवा ली गई। दोनों दोषियों ने बस में चढ़कर महिला आंदोलनकारी के साथ छेड़छाड़ और दुष्कर्म किया।

पीड़िता से सोने की चेन और एक हजार रुपये भी लूट लिए थे। आंदोलनकारियों पर मुकदमे दर्ज किए गए। उत्तराखंड संघर्ष समिति ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इसके बाद 25 जनवरी 1995 को सीबीआई ने पुलिसकर्मियों के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए थे। उस दौरान जहां कई आंदोलनकारियों की मौत हो गई थी, वहीं दूसरी ओर बहुत से लोग इस मामले में जख्मी भी हुए थे। इस हमले में 7 आंदोलनकारियों की मौत हो गई थी, जबकि अधिकतर महिलाओं के साथ अत्याचार की घटनाएं हुई थीं।

अदालत ने दोषियों को लगाई फटकार

सजा के प्रश्न पर सुनवाई करते हुए अदालत ने इस कांड को जलियावाला बाग जैसी घटना के रूप में तुलना की। अदालत ने यह भी कहा कि पुलिस ने कई मामलों में वीरता का परिचय दिया। प्रदेश का मान सम्मान बढ़ाया, लेकिन यह देश और न्यायालय की आत्मा को झकझोर देने वाला प्रकरण है।

न्यायालय की आत्मा को झकझोर देने वाली घटना

अदालत ने कहा, जो घटना कारित हुई है, वह संपूर्ण जनमानस एवं इस न्यायालय की आत्मा को झकझोर देने वाली है और आजादी से पूर्व जलियावाला बाग की घटना को याद दिलाने वाली है। आजादी से पहले जब आमजन शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन कर रहे थे, तब बेकसूर निहत्थे लोगों पर ताबड़तोड़ फायरिंग की घटना अंग्रेजी हुकूमत में की गई थी। शांतिपूर्ण आंदोलन किसी भी व्यक्ति का संवैधानिक अधिकार है। इस अधिकार का प्रयोग करने जा रही एक महिला के साथ बलात्कार जैसी घटना पूर्णतया अप्रत्याशित, अकल्पनीय एवं मानवीय मर्यादाओं को तार-तार करने वाली है।

यहां के रहने वाले हैं दोनों दोषी

पीएसी गाजियाबाद में सिपाही मिलाप सिंह मूल रूप एटा के निधौली कलां थाना क्षेत्र के होरची गांव का रहने वाला है। दूसरा आरोपी सिपाही वीरेंद्र प्रताप मूल रूप सिद्धार्थनगर के थाना पथरा बाजार के गांव गौरी का रहने वाला है।

द मूकनायक ने इस मामले से संबंधित लोगों से बात करने की कोशिश की, पर उनसे बात नहीं हो सकी।

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