
भारत की पहली 'कॉन्ट्रैक्ट रेप' सर्वाइवर (उत्तरजीवी) और मलयालम सिनेमा अभिनेत्री भावना आठ साल नौ महीने के लंबे कानूनी संघर्ष के बाद खुलकर सामने आई हैं। सोशल मीडिया के जरिएअभिनेत्री ने अपनी पीड़ा और न्याय की आस को बयां किया है, जो इस घटना को नई रोशनी में ला रहा है। सोशल मीडिया में अपने नाम के साथ स्टेटमेंट जारी करने की वजह से 'द मूकनायक' ने अभिनेत्री का नाम उजागर किया है (लैंगिक हिंसा के मामलों में पीड़ितों की गोपनीयता का सम्मान बनाये रखने के लिए पहचान छिपाना आवश्यक है)।
भावना एक शक्तिशाली महिला के रूप में उभरी हैं, जिनके साथ हजारों लोग खड़े हैं और मानते हैं कि उन्हें न्याय नहीं मिला। एर्नाकुलम ट्रायल कोर्ट ने 8 दिसंबर को फैसला सुनाया था, जिसमें आरोपी नंबर 1 से 6 तक को सजा सुनाई गई, लेकिन कॉन्ट्रैक्ट देने वाले कथित आरोपी अभिनेता दिलीप को साजिश के आरोपों से बरी कर दिया गया। दिलीप की छवि एक जनप्रिय नायक की है और वह मलयालम सिनेमा यानी मौलीवुड में बहुत प्रभाव रखते हैं: वह अभिनेता, प्रोड्यूसर और वितरक संगठनों में सक्रिय सदस्य हैं। 12 दिसबर को ट्रायल कोर्ट ने आरोपियों को 20-20 साल के कठोर कारावास की सज़ा सुनाई जिसके बाद अभिनेत्री ने अपने instagram हैंडल से उक्त स्टेटमेंट जारी किया। इस फैसले पर उन्होंने गहरी निराशा और न्याय प्रणाली पर गंभीर सवाल उठाए हैं।
उन्होंने लिखा, "8 साल, 9 महीने और 23 दिनों के बाद, मैंने आखिरकार इस लंबी पीड़ा भरी राह के अंत में एक हल्की सी रोशनी देखी।" यह पल उन्होंने उन लोगों को समर्पित किया जिन्होंने उनके दुख को "झूठ" या "बनावटी कहानी" ठहराया था। अभिनेत्री ने उन संशयवादियों से शांति की कामना की और यह अफवाह भी खारिज की कि मुख्य आरोपी उनका निजी ड्राइवर था। "वह मेरा ड्राइवर नहीं था, न ही कोई कर्मचारी या जान-पहचान का व्यक्ति," उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा। "वह 2016 में एक फिल्म के लिए अस्थायी रूप से नियुक्त एक साधारण ड्राइवर था। विडंबना देखिए, उस दौरान हमारी सिर्फ एक-दो मुलाकातें हुईं और अपराध वाले दिन तक फिर कभी न मिले। कृपया ऐसी झूठी अफवाहें फैलाना बंद करें।"
वर्षों के दर्द, आंसुओं और भावनात्मक संघर्ष के बाद मैं एक कड़वी सच्चाई तक पहुंची हूं: 'इस देश में हर नागरिक को कानून के समक्ष समान व्यवहार नहीं मिलता।'
दिलीप को साजिश के आरोपों से बरी करने वाला यह फैसला भावना के लिए बिल्कुल अप्रत्याशित नहीं था। अभिनेता का नाम लिए बिना उन्होंने खुलासा किया कि 2020 से ही, खासकर एक खास आरोपी के संदर्भ में, उन्हें केस की जांच में कुछ गड़बड़ियां नजर आने लगी थीं। अभियोजन पक्ष ने भी इन बदलावों को महसूस किया था, जिसके बाद भावना ने हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे कई बार खटखटाए। उन्होंने ट्रायल कोर्ट पर खुलेआम अविश्वास जताया और मामले को उसी जज से हटाने की बार-बार गुजारिश की, लेकिन हर अपील को ठुकरा दिया गया। भावना ने कहा, "यह फैसला कईयों को चौंका सकता है, लेकिन मुझे नहीं"।
वर्षों के दर्द, आंसुओं और भावनात्मक त्रासदी के बीच वे एक कठोर सत्य तक पहुंचीं: "इस देश में हर नागरिक को कानून के सामने समान न्याय नहीं मिलता।" उन्होंने यह भी जोड़ा कि न्यायिक फैसले मानवीय विवेक से बुरी तरह प्रभावित होते हैं और हर अदालत एक जैसी नहीं चलती। इस कष्ट के बीच उन्होंने अपने साथ खड़े हर समर्थक को हृदय से धन्यवाद दिया, जबकि आलोचकों को कटाक्ष भरा संदेश दिया: "जो लोग अब भी अपमानजनक टिप्पणियों और पैसे लेकर झूठी कहानियों से हमला करते रहते हैं, वे अपने काम में जुटे रहें।"
ट्रायल कोर्ट पर विश्वास पूरी तरह टूटने की पृष्ठभूमि बताते हुए भावना ने व्यवस्था की उन गंभीर खामियों को एक-एक करके उजागर किया, जिन्होंने उन्हें न्याय की आस से महरूम कर दिया। विश्वास टूटने की सबसे पहली वजह उनके मैलिक अधिकार की रक्षा नहीं होना बताया क्योंकि इस केस का सबसे अहम सबूत- हमले के प्रमुख विवरणों वाला मेमोरी कार्ड अदालती हिरासत में तीन बार अवैध रूप से खोला गया, जिसने पूरी कार्यवाही की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लगा दिया।
दूसरी वजह दो सार्वजनिक अभियोजकों (पब्लिक प्रोसीक्यूटर्स) ने इस्तीफे दिया और साफ कहा कि अदालत का वातावरण अभियोजन के प्रति शत्रुतापूर्ण हो चुका था। दोनों ने भावना से निजी बातचीत में चेतावनी दी कि इस अदालत से न्याय की कोई उम्मीद न करें, क्योंकि पूर्वाग्रह साफ झलक रहा था। मेमोरी कार्ड की छेड़छाड़ की निष्पक्ष जांच की बार-बार मांग के बावजूद रिपोर्ट उनसे छिपाया गया। आखिरकार, उनके अथक प्रयासों के बाद ही यह दस्तावेज हाथ लगा, जो पारदर्शिता की भारी कमी को उजागर करता है।
निष्पक्ष सुनवाई की जद्दोजहद के बीच आरोपी पक्ष ने उसी जज से केस जारी रखने की याचिका दायर कर दी, जिसने भावना के मन में संदेह की जड़ें और मजबूत कर दीं। जवाब में उन्होंने भारत की राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखे, अपनी चिंताओं को विस्तार से रखा और हस्तक्षेप की विनती की लेकिन ये तमाम अपीलें भी बेअसर साबित हुईं। उन्होंने खुली अदालत में सुनवाई की मांग भी की ताकि जनता और मीडिया खुद गवाह बन सके कि क्या हो रहा है, मगर यह बुनियादी गुजारिश भी नामंजूर कर दी गई। भावना ने व्यंग्यपूर्ण लहजे में पोस्ट के अंत में लिखा, "कई लोग मुझे प्रेरित करते हैं कि मैं उन जैसी कभी न बनूं। सभी वजहों के लिए धन्यवाद।" यह बयान न केवल व्यक्तिगत पीड़ा का आईना है, बल्कि न्यायिक सुधारों की सख्त मांग भी बन गया है, जो भारत में महिलाओं के लिए समान कानूनी सुरक्षा की अनिवार्यता को रेखांकित करता है, खासकर जब वे प्रभावशाली अपराधियों के खिलाफ बोलने का साहस जुटाती हैं।
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