मध्य प्रदेश: स्वास्थ्य विभाग के जागरूकता अभियान खस्ताहाल! पैर पसार रही दागना कुप्रथा

जब नवजात को सांस लेने में तकलीफ होती है या दस्त के कारण उसके पेट की नसें बाहर दिखने लगती हैं, तब उन्ही नसों को गर्म लोहे की कील, काली चूड़ी या नीम या बांस की डंठल से दागा जाता है। यह काम गांव में रहने वाली विशेष समुदाय की महिलाएं करती हैं।
दागना कुप्रथा
दागना कुप्रथाग्राफिक- द मूकनायक
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भोपाल। मध्य प्रदेश के शहडोल संभाग से दागना कुप्रथा के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। द मूकनायक ने बीते सप्ताह में दागना कुप्रथा को लेकर प्रशासन एवं स्वास्थ्य महकमे को सचेत किया था, परंतु प्रशासन की अनदेखी के कारण एक और ताजा मामला सामने आया है। दरअसल, घटना अनूपपुर जिले के राजेंद्रग्राम की है। यहाँ माँ ने ही अपनी तीन माह की बच्ची को गर्म चूड़ी से 35 बार दागा। दागना कुप्रथा लोगों में जागरूकता की कमी के कारण प्रचलन में है। लेकिन प्रशासन के पास मजबूत तंत्र होने के बाद भी लोगों को जागरूक नहीं किया जा रहा है। इसी कारण इस तरह की घटनाएं प्रतिदिन सामने आ रही हैं।

दागना कुप्रथा को लेकर स्वास्थ्य विभाग द्वारा ग्रामीण अंचलों में चलाए जा रहे जागरूकता अभियान ज्यादातर खानापूर्ति कर रहे हैं। धरातल पर अभियानों की स्थिति सिर्फ कागजी है। कुछ जगह जागरूकता अभियान चलाए गए पर उनका प्रभाव कुछ खास नहीं रहा।

क्या है पूरा मामला?

सर्दी बढ़ते ही बच्चों को निमोनिया और पेट फूलने जैसी बीमारी हो रही हैं जिसके चलते गांव देहात के लोग अपने कलेजे के टुकड़े को बीमारी से निजात दिलाने के लिए दागने जैसी कुप्रथा का शिकार बना रहे हैं। अनूपपुर जिले के राजेन्द्रग्राम ब्लॉक के ताराडांड में रहने वाली तीन माह की एक मासूम बच्ची दुर्गश्वरी को बुरी तरह से दागा गया है। इसको इसकी मां ने ही दागा है। जब हालत बिगड़ी तो पहले इस बच्ची को राजेंद्रग्राम ले जाकर अस्पताल में दिखाया गया, इसके बाद अनूपपुर जिला अस्पताल में भर्ती किया गया। हालत और बिगड़ी तो बच्ची को मेडिकल कालेज शहडोल रेफर कर दिया गया।

डाक्टरों के मुताबिक बच्ची को 35 से ज्यादा बार दागा गया है। उसकी हालत नाजुक है और उसे वेंटीलेटर पर रखा गया है। बच्ची को सांस लेने में तकलीफ हो रही थी और पेट फूल रहा था। 28 दिसंबर को जब घर पर कोई नहीं था तब बच्ची की मां ने ही चूडी गर्म कर अपनी बेटी को जगह जगह दाग दिया। जब बच्च्ची के पिता मोहन सिंह को किसी ने फोन कर बताया कि तुम्हारी बेटी को तुम्हारी पत्नी ने दाग दिया है तो वह खेत से भागकर आया और तत्काल राजेंद्रग्राम लेकर भागा। वहां से डाक्टर ने अनूपपुर भेज दिया। यहां पर इस बच्ची को भर्ती किया गया।

जब हालत बिगड़ी तो पिता और मां इस बच्ची को लेकर 30 दिसंबर की सुबह 4.50 बजे शहडोल मेडिकल कालेज पहुंचे। यहां पर इसे पीआइसीयू में रखा गया है। डाक्टरों का कहना है कि बच्ची दिमागी बुखार व संक्रमण से पीड़ित है। वेंटीलेटर पर रखा गया है हालत नाजुक है।

द मूकनायक ने इस मामले में राज्य बाल संरक्षण आयोग के सदस्य ओंकार सिंह से बातचीत की। उन्होंने कहा कि पहले भी दागना कुप्रथा की घटनाएं सामने आती रही हैं। आपके द्वारा मामला संज्ञान में आया है। प्रशासन की ओर से जागरूकता अभियान में यदि किसी तरह की कमी रह रही हैं। तो हम इसकी जांच कराएंगे। इधर हमने स्वास्थ्य विभाग के विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी (ओएसडी- उप मुख्यमंत्री राजेन्द्र शुक्ल) धीरेंद्र शुक्ला से बातचीत की तो उन्होंने कहा- दागना प्रथा पर अभियानों की जानकारी लेकर बाद में बात करने करूंगा।

क्या है दागना कुप्रथा?

आदिवासी इलाकों में नवजातों को दागने की कुप्रथा दशकों पुरानी है। ठंड के समय जब नवजातों को निमोनिया या डबल निमोनिया हो जाता है, तब उन्हें सांस लेने में तकलीफ होती है। पेट दर्द, दस्त की शिकायत पर परिवार वाले नवजातों को ठीक करने के लिए इस कुप्रथा का सहारा लेते हैं। लोगों का मानना है दागने से उनके बच्चों की यह बीमारी ठीक हो जाएगी। जब नवजात को सांस लेने में तकलीफ होती है या दस्त के कारण उसके पेट की नसें बाहर दिखने लगती हैं, तब उन्ही नसों को गर्म लोहे की कील, काली चूड़ी या नीम या बांस की डंठल से दागा जाता है। यह काम गांव में रहने वाली विशेष समुदाय की महिलाएं करती हैं। इन महिलाओं को नवजातों की मालिश के अलावा दागने की जिम्मेदारी दी जाती है। काली चूड़ी से टोटका दूर होने की भी कुरीति चलन में है।

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