कोटा कोचिंग हब: आखिर क्यों जीवन से नाउम्मीद हो रहे हैं स्टूडेंट्स?

वर्ष 2016 में कोटा जिले के तत्कालीन कलेक्टर रविकुमार सुरपुर का एक मार्मिक पत्र सोशल मीडिया पर बहुत वायरल हुआ। कोटा में  इंजीनियरिंग और मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम्स की तैयारी करने वाले 1.5 लाख स्टुडेंट्स के अभिभावकों को संबोधित वह दिल को झकझोर देने वाला पत्र! 
इस साल अगस्त तक 23 स्टूडेंट्स ने ख़ुदकुशी की, जो अब तक के सर्वाधिक केस हैं.
इस साल अगस्त तक 23 स्टूडेंट्स ने ख़ुदकुशी की, जो अब तक के सर्वाधिक केस हैं.
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कोटा। पांच पन्नों के इस लंबे पत्र में कलेक्टर रविकुमार ने घर से कोसों मील दूर रहते हुए कोचिंग इंस्टीटुट्स में सुनहरे कैरियर की चाह में किशोर वय की अल्हड़ता को प्रतिस्पर्धा की भट्टी में झोंक कर खुद को समझदार, जिम्मेदार और अपने पेरेंट्स की उम्मीदों पर खरा उतरने के अथक प्रयासों से जूझते बच्चों की मनोवेदना का बाखूबी वर्णन किया था।  अपने कोटा कार्यकाल के दौरान कलेक्टर रविकुमार ने करीब 25 सुसाइड नोट्स पढ़े जिसके लिए उन्होंने स्वयं को 'बदकिस्मत' माना। लेकिन अफसोस, इस संवेदनशील प्रशासनिक अधिकारी द्वारा लिखे पत्र के बाद भी किसी ने कोई सबक नहीं लिया।

ना तो कोटा की 'कोचिंग फैक्ट्रीज' ने अपना ढर्रा बदला, ना ही पढ़ाने वाले शिक्षकों के रवैये में खास बदलाव आया। और तो और, अजनबी माहौल में अपनों से दूर होकर उदास और परेशान रहने वाले बच्चों के मां बाप भी अपने कलेजे के टुकड़ों की कराह ना सुन सके। 12-15 घंटों तक लगातार पढ़ाई। वीकली टेस्ट, मंथली टेस्ट, ग्रेडस परफॉर्मेंस असेसमेंट्स, कट-ऑफ, टॉपर परफॉर्मेंस कंपेरिसन्स...!

नतीजन 2011 से 2016 तक डिप्रेशन और तनाव के कारण जान देने वाले बच्चों की संख्या करीब 55 थी, वो कालांतर में बढ़ती रही। कोरोना काल के दो वर्ष छोड़ दिये जायें तो औसतन हर माह एक आत्महत्या। बीते रविवार को कोटा में दो किशोरों की आत्महत्या से हुई मौतों के साथ, इस वर्ष कोचिंग हब में छात्रों की आत्महत्या की संख्या 23 हो गई - जो पिछले आठ वर्षों में सबसे अधिक है। रविवार 27 अगस्त को करीब चार घंटे के भीतर ही ये दोनों घटनाएं हुई जिसके बाद राजस्थान सरकार ने कोटा के कोचिंग सेंटरों में वीकली रूटीन टेस्ट कराने पर दो महीने की पाबंदी लगा दी है। 

लगातार बढ़ते स्टूडेंट्स सुसाइड्स ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भी यह स्वीकार करने को मजबूर कर दिया कि बच्चों की वेदना समझने और उनकी उलझन का समाधान करने में कहीं ना कहीं ' सिस्टम ' नाकाम रहा है.

हर साल दो लाख से ज्यादा स्टूडेंट्स कोटा में इंजीनियरिंग और मेडिकल एंट्रेंस की कोचिंग के लिए आते हैं
हर साल दो लाख से ज्यादा स्टूडेंट्स कोटा में इंजीनियरिंग और मेडिकल एंट्रेंस की कोचिंग के लिए आते हैं

हर साल आते हैं दो -ढाई लाख स्टूडेंट्स

देशभर से हर साल लगभग दो -ढाईलाख छात्र-छात्राएं कोटा आते हैं। जेईई और नीट की तैयारी के लिए आने वाले स्टूडेंट्स का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है। अकादमिक वर्ष 2021-22 में यहां 1,15000 कोचिंग के लिए पहुंचे थे, तो वहीं 2022-23 में यह संख्या बढ़कर 1,77439 हो गई थी। साल 2023-24 में ये आंकड़ा 2,05,000 तक पहुंच गया है। पेरेट्स अपने बच्चों की कोचिंग और पढ़ाई पर सालाना एक बड़ी रकम खर्च करते हैं जो करीब डेढ़ से दो लाख रूपये बताई जाती है. इसके आलावा किताबों, खाने पीने और जेबखर्च के रूप में अलग रकम व्यय होती है. माता पिता मुश्किल से पैसा जुटा कर अपने बच्चों को पढने भेजते हैं तो उसकी उम्मीदें भी बच्चों से बढ़ जाती है कि वह ज्यादा से ज्यादा मेहनत कर प्रतियोगी परीक्षा में मेरिट हासिल करेगा. माता पिता की ये अपेक्षाए ही अनजाने तौर पर बच्चों के लिए तनाव का कारण बन जाती हैं. काउंसिलर सुमेधा सिंह बताती हैं एक बार एक छात्रा ने काउंसलिंग के दौरान उन्हें बताया कि उसकी मम्मी ने कोर्पोरेट सेक्टर में अपनी हाई सेलेरिड जॉब उसके लिए छोड़ी और यही चिंता उसे सताये जाती है कि अगर वह पिछड़ गयी तो मम्मी हताश हो जायेंगी.

पशुपालन विभाग उदयपुर में एक उच्चाधिकारी बताते हैं कि कोटा में ना सिर्फ कोचिंग करने वाले स्टूडेंट्स बल्कि वहां स्कूल में पड़ने वाले सामान्य छात्र छात्राओं पर भी शहर में बढ़ते सुसाइड केसेज का विपरीत प्रभाव पड़ रहा है. अधिकारी ने द मूकनायक के साथ मन की पीड़ा सांझा करते हुए कहाकि उनकी अपनी भतीजी जो हसमुख और मिलनसार स्वभाव की थी, एकदम गुमसुम और परेशान रहने लगी जिसपर जानकारों ने बच्चो को क्रिएटिव एक्टिविटीज जेसे सिंगिंग, ड्राइंग पेंटिंग और राइटिंग जेसे कार्यों में मन लगाने की सलाह दी .

कोटा आयकर विभाग से हाल ही स्थानातरित हुए अधिकारी राजीव कुमार ने द मूकनायक को बताया कि उनकी बेटी अभी दसवी क्लास में है और उसे मेडिकल की कोचिंग करवाने के लिए ही राजीव दो साल पहले जयपुर से कोटा शिफ्ट हुए थे. "होस्टल में बेटी को छोड़ना सुरक्षित नहीं लगा, पूरा परिवार साथ हो तो बच्चों की पढ़ाई बेहतर हो सकती है, यही सोचकर कोटा शिफ्ट हुए थे. अखबारों में आत्महत्या की खबरें पढ़ कर मन उदास हो जाता है, लेकिन यह सच है कि बच्चों के साथ उनके माता पिता भी इस स्टेज पर तनाव ग्रस्त रहते हैं. कोटा से ट्रान्सफर होने पर राजीव अब नये शहर में अकेले रहते हैं जबकि उनकी पत्नी कोटा में रहकर दोनों बच्चों की पढाई और घर मेनेज करती हैं."

अपनी बेटियों के मेडिकल एंट्रेंस की तैयारी के लिए पूरे चार साल कोटा रहीं होममेकर ग्रेस आचार्य ने द मूकनायक को बताया कि उनके पति हिन्दुस्तान जिंक में नौकरी के कारण होम टाउन में अकेले रहे जबकि ग्रेस अपनी दोनों बेटियों के साथ कोटा रहीं. "एक तो अनजान शहर में लडकियों को अकेला छोड़ने की टेंशन और दूसरी और उनके खाने पीने की चिंता इसलिए हमने तय किया कि मैं बच्चों के साथ कोटा ही शिफ्ट हो जाउंगी. बच्चों को समय पर अच्छा भोजन, प्रॉपर नींद, दवा आदि देने के लिए जितना पेरेंट्स फिक्रमंद होते हैं वो कोई दूसरा नही होगा इसलिए भले ही थोड़े ज्यादा पैसे लगे लेकिन आज हमारी दोनों बेटियां डॉक्टर हैं, यही हमारे लिए बड़ी उपलब्धि है." वे आगे कहती हैं कि उनकी बेटियों के साथ पढने वाले कई बच्चे जो होस्टल में रहते थे, परिवार से दूर और अकेले होने के कारण दुखी होते थे और होमसिक फील करते थे. "कभी-कभार वे हमारे घर आते थे और अपनी फीलिंग्स शेयर करते थे, सुनकर दुःख होता था लेकिन करियर बनाने की चाह में बच्चे मन मारकर रहने को मजबूर हैं"

राजस्थान पुलिस ने स्टूडेंट सेल का गठन किया है
राजस्थान पुलिस ने स्टूडेंट सेल का गठन किया है

पुलिस बन रही है बच्चों की दोस्त: स्टूडेंट सेल का गठन

कोटा में बढ़ते सुसाइड केस की रोकथाम के लिए किए गये एक अहम प्रयास में राजस्थान पुलिस ने स्टूडेंट सेल का गठन किया है। सेल के प्रभारी अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक ठाकुर चंद्रशील ने द मूकनायक को बताया, विद्यार्थियों में तनाव और डिप्रेशन के लक्षण पहचानने, उनसे बातचीत कर मानसिक द्वन्द को समझने और तद्नुसार समस्या का समाधान देने के मकसद से सेल का गठन किया गया है. सेल के हेल्पलाइन नम्बर पर अब तक दर्जनों कॉल्स आये हैं जिनमे कई बच्चों ने ' जीने की इच्छा ' नही होने की अभिव्यक्ति की है जो शॉकिंग के साथ पीडादायक भी है.

"डीजीपी उमेश मिश्रा की पहल पर बनी यह सेल कोटा जिला पुलिस के साथ मिलजुलकर कार्य करती है। एक कंट्रोल रूम और तीन हेल्पलाइन नंबर हैं । यह 24 घंटे उपलब्ध रहते हैं। किसी भी तरह की घटना के लिए हमारी एक टीम हमेशा तैयार रहती है। इस टीम के मेंबर ज्यादातर बहुत तजुर्बेदार व्यक्ति हैं। 20 साल से ऊपर सर्विस वाले ही इस टीम के मेंबर हैं" ठाकुर आगे कहते हैं कि अगर स्टूडेंट्स के बारे में ऐसी कोई भी सूचना आती है, तो टीम पहले वहां जाकर बच्चों की पहचान कर उनकी काउंसलिंग में मदद करती है. सभी कोचिंग सेंटर्स के अपने काउंसलर होते हैं। उनकी मदद से ही हम बच्चों को समझा पाते हैं"।

आगे वह कहते हैं कि "रोज हमारी एक टीम बाहर निकलती है। जितनी भी स्टेक होल्डर है, उनसे मिलती है। वहां के स्टाफ से, रसोइयों से बात करती हैं । खास तौर पर वार्डन से बात करती है, कोई बच्चा उदास तो नहीं है। कौन सा बच्चा समय पर खाना खाने नहीं आ रहा है? कौन ज्यादातर अपने कमरे में अकेला रहता है? और कौन सा बच्चा कोचिंग नहीं जा रहा है? फिर ऐसे बच्चों को पहचान कर उन बच्चों की मॉनिटरिंग चुपचाप करते हैं। साथ में उन बच्चों के माता-पिता को भी इसमें जोड़ लेते हैं। बाद में बच्चों की काउंसलिंग शुरू करते हैं। अगर वह बच्चा काउंसलिंग के बाद भी डिप्रेस्ड रहता है, तो फिर उसको उसके माता-पिता के साथ घर वापस भेज देते हैं"।

एएसपी चन्द्रशील बताते हैं कि "कोई भी बच्चा परेशानी या समस्या बताता है तो 72 घंटा में उसको सुलझाने की कोशिश करते हैं। हमारा मकसद है कि बच्चे खुशी के साथ अपनी पढ़ाई पूरी करें। हमारी कोशिश यही रहती है, कि हम ज्यादा से ज्यादा बच्चों की मदद कर सके। यह कहना बहुत ही मुश्किल है कि बच्चे क्यों सुसाइड कर रहे हैं ? इसके पीछे बहुत कारण हो सकते हैं। 2 साल करोना के समय में बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे थे। उन दो सालो मैं कोई भी सुसाइड की घटना नहीं हुई। सुसाइड और भी जगह पर होते हैं। लेकिन कोटा में इसलिए ऐसा है, कि यहां पर देश के कोने-कोने से बच्चे यहां आते हैं। इसलिए यह ज्यादा चर्चा में रहता है।" वे कहते हैं, "कहीं ना कहीं माता-पिता की उम्मीदें भी इसका कारण हो सकते हैं। क्योंकि माता-पिता यही चाहते हैं कि उनका बच्चा बहुत अच्छे से पढ़ाई करें। बाकी प्रशासन भी और हम भी यही कोशिश कर रहे है कि बच्चे खुशी और सहजता से अपनी पढ़ाई करें।"

छात्र से बात करते हुए स्टूडेंट सेल के एक पुलिस कर्मी सदस्य
छात्र से बात करते हुए स्टूडेंट सेल के एक पुलिस कर्मी सदस्य

पंखों पर लगे स्प्रिंग डिवाइस

16 अगस्त को कोटा जिला प्रशासन ने हॉस्टल और पीजी के लिए छत के पंखों पर स्प्रिंग डिवाइस लगाना अनिवार्य कर दिया। इसे एक सहायक यन्त्र के उपाय के तौर पर लगाना अनिवार्य किया गया है। स्थानीय पुलिस और प्रशासन के अनुसार कोटा की समस्याएं आम तौर पर किसी भी विश्वविद्यालय शहर या कॉलेज परिसर में सामना की जाने वाली समस्याओं से कहीं अधिक हैं। आत्महत्या की घटनाओं की रोकथाम के लिए कई प्रयोग किये जा रहे हैं. शहर में होस्टल्स की संख्या करीब 3500 हैं, सभी कमरों में मोटिवेशनल पोस्टर्स लगाने, सन्डे को मनोरजन की गतिविधियों का आयोजन आदि को अनिवार्य किया गया है.

टीचर्स से शेयर नहीं करते मन की बात

द मूकनायक ने कोचिंग में पढ़ रहे एक छात्र सौरभ त्रिपाठी ( बदला हुआ नाम) से बात की जो 11वीं की पढाई के साथं कोचिंग करते है। सौरभ कहते हैं कि "मैं अपनी पढ़ाई में स्ट्रेस नहीं लेता. बहुत ही आसान तरीकों से मैं अपनी पढ़ाई पूरी करता हूँ, मेरे माता-पिता भी ऐसा कोई दबाव नहीं बनाते की मुझे अच्छे ही नंबर लाने हैं। लेकिन मेरे कुछ ऐसे दोस्त हैं जो अपनी शिक्षा को लेकर बहुत ही गंभीर रूप से सोचते हैं। सौरभ कहते हैं कोचिंग किसी भी तरह का कोई दवाब नहीं डालता। लेकिन चुप रहकर बच्चे अंदर ही अंदर यह बात मान लेते हैं कि हमसे कुछ नहीं होगा। हमारे शिक्षक भी ऐसा कुछ नहीं कहते हैं कि आपको बहुत अच्छे से पढ़ाई करनी है। या बहुत अच्छे ही नंबर लाने हैं। बस वह लोग आगे निकलने के लिए जरूर कहते हैं।"

सौरभ के मुताबिक टीचर्स हेल्प को तैयार रहते हैं लेकिन "बच्चे कभी शिक्षक को मन की बात कुछ नहीं बताते हैं। जो बच्चे शिक्षकों से अपनी परेशानी बताते हैं तो शिक्षक भी उनकी मदद करते हैं। और उन्हें समझाने की कोशिश करते हैं। मेरे कितने दोस्तों है  जो माता-पिता से रोज बात करते हैं। फिर भी परेशान ही रहते हैं। हमारे कोचिंग में सिर्फ 5 दिन ही पढ़ाई होती है। शनिवार को कभी-कभी कक्षा लग जाती है। ज्यादातर ऐसा नहीं होता।"

राजस्थान सरकार ने जैसे "आधा दिन पढ़ाई, आधा दिन मस्ती" का ऐलान किया है, तो देखते हैं इससे क्या फर्क पड़ेगा हमारे कोचिंग में पहले से ही मस्ती होती है। हमारे शिक्षक हमेशा लास्ट के पीरियड में 15 मिनट के लिए फन टाइम निकाल लेते हैं। और हमसे हंसी मजाक भी करते हैं। कुल मिलाकर पढ़ाई है, करनी तो पड़ेगी। लेकिन हंसी-खुशी के साथ।

दबाव से उभरने में छात्रों की मदद करें - राष्ट्रपति

राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने हाल ही में जनता से पढ़ाई के दबाव और नकारात्मक सोच से उभरने में छात्रों की मदद करने का आहान किया है। राजस्थान में नेट के दो छात्रों द्वारा आत्महत्या करने की घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा है, कि "ऐसे मामले से दुख होता है समाज के सभी वर्गों से अनुरोध है कि वह पढ़ाई के दबाव और नकारात्मक सोच से उभरने में छात्रों की मदद करें"।

खुद को ' खोजने ' पर ध्यान दें - आनंद महिंद्रा

महिंद्रा समूह अध्यक्ष आनंद महिंद्रा ने आत्महत्या के बढ़ते मुद्दे को संबोधित करने के लिए सोशल मीडिया पर एक पोस्ट शेयर किया है। इस दिल छू लेने वाली पोस्ट में उन्होंने लिखा कि परीक्षा की तैयारी के दौरान छात्रों को भारी दबाव का सामना करना पड़ता है। उस पर कहा और उन्हें याद दिलाया कि उन्हें जीवन के इस चरण में अपनी योग्यता साबित करने के बजाय खुद को "खोजने" पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। आनंद महिंद्रा का यह ट्वीट सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है। जिसे 4 लाख से ज्यादा लोग देख चुके हैं।

अगस्त के महीने तक 6 केस आए सामने

जनवरी से लेकर अब तक कोटा में सुसाइड के 23 केस सामने आ चुके हैं। अगस्त महीने में ही 6 स्टूडेंट की जान गई है. इनमें से सात बच्चे ऐसे हैं  जिन्हें कोचिंग में दाखिला लिए छह महीने भी पूरे नहीं हुए थे। कोटा में औसतन हर महीने तीन छात्र खुदकुशी करते हैं। साल 2022 में 15 छात्रों ने आत्महत्या की थी। यहां 2015 से 2019 के बीच 80 स्टूडेंट्स ने सुसाइड किया है।

इस साल अगस्त तक 23 स्टूडेंट्स ने ख़ुदकुशी की, जो अब तक के सर्वाधिक केस हैं.
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