राजस्थान: दिल्ली से मसूरी तक उड़ेगा उदयपुर के जंगलों में बनाया सुगंधित हर्बल गुलाल

झाड़ोल, कोटड़ा व फलासिया में आदिवासी महिला समूह बना रहे हैं हजारों किलो हर्बल गुलाल, देशभर से मिल रहे आर्डर
राजस्थान: दिल्ली से मसूरी तक उड़ेगा उदयपुर के जंगलों में बनाया सुगंधित हर्बल गुलाल

राजस्थान। रंगों का पर्व होली किसे नहीं सुहाता? लेकिन हानिकारक केमिकल युक्त रंगों के नुकसान, पानी की बढ़ती किल्लत और इसके अपव्यय को रोकने आदि कई कारणों से अब लोग गीली होली से परहेज करने लगे हैं और सूखे रंगों अबीर गुलाल से होली खेलना पसंद करते हैं। ऐसे में उदयपुर के आदिवासी अंचल में महिलाओं द्वारा तैयार सुगंधित हर्बल गुलाल ना केवल स्थानीय मार्केट में, बल्कि देश भर में कई शहरों तक अपनी पहचान बना चुका है।

पिछले दो तीन वर्षों से राजीविका के तहत उदयपुर की आदिवासी महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से हर्बल गुलाल बनाया जा रहा है जिसकी अब देश-प्रदेश में डिमांड की जा रही है। आदिवासी महिलाओं को मिल रही इस सफलता से राजीविका और जिला प्रशासन भी उत्साहित है। होली पर आ रही मांग को देखते हुए झाड़ोल, कोटड़ा, फलासिया की महिला स्वयं सहायता समूहों की सैकड़ों महिलाओं द्वारा यह हर्बल गुलाल लगातार तैयार कर बाजार में उपलब्ध कराई जा रही है।

आईएएस अधिकारी भी खेलेंगे उदयपुर की हर्बल गुलाल की होली

उदयपुर की आदिवासी महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों द्वारा बनाई गई हर्बल गुलाल न सिर्फ आमजनों अपितु आईएएस अधिकारियों को भी बड़ी पसंद आ रही है। राजीविका के जिला परियोजना प्रबंधक अनिल पहाड़िया ने बताया कि सिविल सर्विस के अधिकारियों के प्रशिक्षण के प्रमुख संस्थान लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी, मसूरी में प्रशिक्षणरत आईएएस अधिकारियों द्वारा भी हर्बल गुलाल के लिए ऑर्डर दिया गया था, जिन्हें गत दिनों 75 किलो हर्बल गुलाल भेजा गया है। इसी प्रकार से जयपुर सचिवालय के अधिकारियों के लिए 75 किलोग्राम तो राजीविका और पंचायती राज विभाग, जयपुर को 85 किलोग्राम हर्बल गुलाल भेजा गया है।

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दिल्ली के प्रगति मैदान में भी पहुंचा हर्बल गुलाल

राजीविका के स्वयं सहायता समूहों द्वारा गत दिनों दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित हुए आदि महोत्सव में 100 किलोग्राम हर्बल गुलाल भेजा गया जिसे देशभर के लोगों ने उत्साह के साथ खरीदा और इसकी गुणवत्ता की तारीफ भी की। इसके साथ ही उदयपुर की विभिन्न पंचायत समितियों में लगभग 1 हजार किलोग्राम हर्बल गुलाल की आपूर्ति की गई है। दूसरी तरफ ट्राईफेड से भी लगातार ऑर्डर प्राप्त हो रहे हैं। इसी प्रकार ट्राईफेड और सहकारिता उपभोक्ता भंडारों पर भी हर्बल गुलाल को बिक्री के लिए उपलब्ध कराया गया है।

उदयपुर संभागीय आयुक्त राजेन्द्र भट्ट एवं जिला कलक्टर ताराचंद मीणा द्वारा मिशन कोटड़ा के तहत अपनी पहली कोटड़ा विजिट में महिला स्वयं सहायता समूहों द्वारा तैयार की जाने वाली हर्बल गुलाल की जानकारी पर इसे प्रोत्साहित करने का निर्णय लिया था और गत वर्ष भी हजारों किलो हर्बल गुलाल की बिक्री की गई थी। इस बार भी संभागीय आयुक्त भट्ट व कलक्टर मीणा ने हर्बल गुलाल को प्रोत्साहित करने के लिए इसकी बिक्री के लिए अलग-अलग व्यवस्थाएं की हैं। कमिश्नर-कलक्टर ने कहा है कि इस प्रयास से आदिवासी महिलाओं को रोजगार के अवसर प्रदान होंगे और महिलाएं आत्मनिर्भर बनेगी। उन्होंने सभी जिला स्तरीय अधिकारियों से अपेक्षा की है कि वे इन जनजाति महिलाओं को प्रोत्साहित करने हेतु हर्बल गुलाल का उपयोग करें एवं अन्य कार्मिकों व साथियों को भी इसके लिए प्रेरित करें।

शुद्ध प्राकृतिक फूलों व पत्तियों से तैयार है हर्बल गुलाल

जिला परिषद सीईओ मयंक मनीष ने बताया कि जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग के मार्गदर्शन में राजीविका स्वयं महिलाओं द्वारा सहायता समूह की महिलाओं द्वारा शुद्ध प्राकृतिक फूल एवं पत्तियों यह हर्बल गुलाल तैयार की गई है। आमजन की सुविधार्थ यह हर्बल गुलाल 100 ग्राम, 200 ग्राम व 300 ग्राम के पाउच में भी उपलब्ध है। सीईओ ने बताया कि यह प्राकृतिक गुलाल पलाश एवं मोगरे के फूल से तैयार की गई है जिसमें 100 ग्राम की कीमत 30 रुपये, 200 ग्राम 60 रुपये व 300 ग्राम 90 रुपये के हिसाब से बिक्री होगी। उन्होंने बताया कि वर्तमान में जिले के कोटड़ा व झाड़ोल ब्लॉक के श्रीनाथ राजीविका वन-धन विकास केन्द्र मगवास, उजाला राजीविका वन-धन विकास केन्द्र जुड़ा व प्रगति राजीविका महिला सर्वांगीण विकास सहकारी समिति लिमिटेड गोगरुद द्वारा यह हर्बल गुलाल तैयार की जा रही है।

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डूंगरपुर में दिव्यांग महिलाएं भी बना रही हर्बल गुलाल

डूंगरपुर शहर के नवाडेरा बस्ती​ स्थित दिव्यांग कौशल केंद्र की महिलाएं पिछले तीन वर्षों से हर्बल गुलाल बनाने का काम कर रही हैं। यहां दिव्यांग महिलाएं पलाश के फूल, अरहर के पत्ते, गल के फूल, सीताफल और रजगे के पत्तों और उनके फूलों को सुखाकर उनसे हर्बल गुलाल तैयार करती। इस हर्बल गुलाल में किसी भी तरह का कोई केमिकल नहीं होता, जिससे यह स्किन पर लगाने पर नुकसान भी नहीं करता।

नवाडेरा बस्ती में दिव्यांग कौशल विकास केंद्र में दिव्यांग महिलाओं के आर्थिक स्तर को बेहतर बनाने के लिए उन्हें प्रशिक्षित करने के बाद सिलाई, मीनाकारी, मसाला लघु उद्योग से जोड़ रहा है। इसी तरह बेकार हो रहे फूलों से हर्बल गुलाल बनाया जा रहा है। गुलाल बनाने के ​लिए दिव्यांग महिलाएं जंगल से व धार्मिक स्थलों पर चढ़ाए गए फूलों को जमा करती हैं, फिर केंद्र पर लाकर गुलाल तैयार करती हैं।।

दिव्यांग केंद्र प्रभारी अशोक गेमती बताते हैं कि केंद्र पर फूलों को सुखाने के बाद सूखे फूलों को पानी में तब तक उबाला जाता है, जब तक कि पानी मे फूलों का रंग नहीं आता। इसके बाद फूलों के रंग वाले पानी में खाने में उपयोगी अरारोट का पाउडर घोल दिया जाता है। बाद में इसे ग्राइंडर में पीसकर बारीक पाउडर में बदल दिया जाता है। इससे 100 -100 ग्राम के पैक में पैकिंग के रूप में बेचा जाता है।

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