संविधान को चुनौती देते धीरेंद्र शास्त्री और समाज की चुप्पी

क्या बाबा बागेश्वर धीरेंद्र शास्त्री मनुस्मृति के लिए संविधान की अनदेखी कर रहे हैं?
Dhirendra Shastri New Book
धीरेन्द्र शास्त्री की नई किताब
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संविधान को अपने वचनों से रात और दिन अपमानित करने वाले धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री पर नई किताब आई है। वही धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री, जिन्होंने कुंभ में मरने वालों को मोक्ष मिलने की बात कही थी। महिलाओं के लिए जिनके विचार यहां दोहराने योग्य नहीं हैं। ‘हिन्दू राष्ट्र’ की वकालत करते हुए वह नियमित अंतराल पर संविधान को चुनौती देते हैं।

लोकसभा चुनाव 2024 के पहले धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री और बीजेपी नेता एक स्वर में संविधान बदलने के लिए 400 पार का नारा लगा रहे थे!

संविधान, जिसके कारण हिंदुस्तान के हर नागरिक को बराबरी का हक़ हासिल हुआ। दलितों को पढ़ने, बढ़ने और हक़ के लिए लड़ने का अधिकार मिला। 'मनुस्मृति' में यह सब अपराध था।

आज महिलाओं को जो भी अधिकार हासिल हैं, संविधान के कारण हैं। 'मनुस्मृति' उनको कोई अधिकार नहीं देती। धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का आख्यान 'मनुस्मृति' का ही बखान है।

याद रहे; जिसके पास जितने कम संसाधन हैं, संविधान उनके लिए उतना अधिक क़ीमती है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जैसे ही धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को ’छोटा’ भाई बताया, उनकी ‘गाथा’ लिखने का काम शुरू हो गया।

मध्य प्रदेश के सबसे बड़े प्रकाशक ‘मंजुल पब्लिकेशन’ ने इस किताब का प्रकाशन किया है। फ़ेसबुक पर हिंदी, समाज, पत्रकारिता के ध्वजवाहक इसे ‘लाइक और शेयर’ कर रहे हैं। क्या भाषा और समाज इस तरह आगे बढ़ते हैं?

आप समझ सकते हैं; मध्य प्रदेश की यह दुर्दशा क्यों है! रोटी, रोज़गार और नौकरी के साथ ही किसानों, आदिवासियों के सवाल हर जगह विमर्श से गायब हैं।

धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री सरकार के संकटमोचक हैं। हर नाकामी को धर्म की रस्सी से बांधकर स्वर्ग की ओर उछाल देते हैं।

धन्य हैं मध्य प्रदेश के लेखक, कवि, पत्रकार और चिंतक जो ऐसी घटनाओं पर चुप्पी साधे रहते हैं। अपवादों को छोड़कर मध्य प्रदेश में कवि और लेखक सरकारी ‘आश्रय’ को ख़तरे में नहीं डालना चाहते।

नागरिकों को प्रजा में बदलने में धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का इस्तेमाल बेहद प्रभावी ढंग से किया जा रहा है।

मध्यप्रदेश में जब नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पानसरे, एमएम कलबुर्गी और गौरी लंकेश की संभावना ही नहीं दिख रही, तब जनता में संवैधानिक और वैज्ञानिक सोच कहां से आएगी?

संविधान केवल शब्द नहीं है। संविधान के मूल्यों, विचारों को जीवन में उतारे बिना नागरिक समाज कभी उस स्वतंत्रता को प्राप्त नहीं कर सकता, जो संविधान का लक्ष्य है।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति The Mooknayak उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार The Mooknayak के नहीं हैं, तथा The Mooknayak उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.
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