बिहार में SIR भारतीय लोकतंत्र व संविधान के लिए बनता बड़ा ख़तरा

SIR प्रक्रिया से लोकतंत्र पर संकट: मतदाता सूची से बहुजन समाज को बाहर करने की आशंका
Manish Sharma Opinion on SIR
बिहार में SIR: वोटर लिस्ट से बहुजन समाज बाहर, लोकतंत्र और संविधान पर बड़ा खतराPic- The Mooknayak
Published on

बिहार में SIR के पीछे की खतरनाक मंशा धीरे-धीरे स्पष्ट होती जा रही है, हड़बड़ी के चलते तमाम बड़ी-बड़ी गड़बड़ियां सामने आती जा रही है, धीरे-धीरे SIR की पूरी प्रक्रिया ही बड़े-बड़े सवालों से घिरती जा रही है.

दर्जनों प्रश्न हैं जिनका जबाब चुनाव आयोग नही दे पा रहा है, भाजपा ज़रूर सफाई पर सफाई दे रही है, पर उलझती ही जा रही है.

मुल्क के इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा है जब मतदाता को साबित करना होगा कि वह मतदाता होने के काबिल है.

स्टेट को इस जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया गया है, कि उसका काम है, वयस्क नागरिकों को मतदाता सूची में जोड़ना.

नियम को 180 डीग्री पलट दिया गया है.इसको ऐसे समझिए कि अमेरिका में जहां मतदाता को खुद प्रयास करके वोटर रजिस्ट्रेशन कराना पड़ता है, वहां रजिस्टर्ड मातदाता 74-75 फीसदी ही है, और भारत जहां स्टेट की जिम्मेदारी रही है कि ज्यादा से ज्यादा नागरिक, मतदाता बने, वहां अभी भी लगभग 99 फीसदी नागरिक मतदाता रजिस्टर में दर्ज है.

अगर भारत में भी स्थायी रूप से नागरिकों के ही ऊपर मतदाता बनने की जिम्मेदारी डाल दी गई, तो आने वाले समय में भारतीय लोकतंत्र कमजोर होगा, उसका दायरा छोटा होगा, नागरिकों के एक हिस्से में, 'कोउ नृप होय हमे का हानि' जैसी मानसिकता विकसित होगी, और सरकारों और राजनीतिक ताकतों का रवैया भी इन नागरिकों के प्रति बदल जाएगा. साथ ही लोकतंत्र को और नीचे तक ले जाने के कार्यभार को धक्का लगेगा.

SIR या वोट चोरी के ज़रिए बार-बार एक और स्थापित नियम को भी पलटा जा रहा है.

अब तक मतदाता को यह अधिकार संविधान ने दे रखा था कि वह अपने वोट के ज़रिए निर्णय ले कि कैसी सरकार होगी, किन नीतियों से देश चलेगा, और अगर मतदाता अपनी ही बनाई सरकार से संतुष्ट नही है तो कम से कम 5 साल में एक बार सरकार को बदल देने का उसे अधिकार मिला हुआ था.

आज़ इस सीमित अधिकार पर भी हमला बोला जा रहा है, SIR इस व्यवस्था को भी बदलने जा रहा है, इस ख़तरनाक प्रक्रिया के ज़रिए सरकार अब अपने मतदाताओं को चुनेगी, यानि जो मतदाता, सरकारों द्वारा बनाए गए सांचे में फिट नही बैठेंगे, उन्हें अनफिट कर दिया जाएगा, उन्हें सरकार बनाने के अधिकार से ही वंचित कर दिया जाएगा और मतदाताओं को सरकार चुनने के सीमित अधिकार से भी वंचित कर दिया जाएगा.

भारतीय राज्य ऐसे भी अपने नागरिकों को सीमित किस्म का लोकतंत्र ही मुहैय्या करा पाता है, संविधान निर्माताओं को भी ये अंदाजा था कि भारत एक निर्मित होता हुआ मुल्क है. उसे अभी समता, व हर तरह की बराबरी की तरफ़ बढ़ना है.

बाबासाहेब आंबेडकर ने साफ़-साफ़ इस तरफ़ देश का ध्यान भी आकर्षित किया था, कि राजनीतिक बराबरी को बनाए रखने व विस्तारित करते रहने के लिए, आगे ये जरूरी होगा कि हम सामाजिक व आर्थिक बराबरी को भी आने वाले समय में सुनिश्चित कर पाएं. और अगर हम नही कर पाए तो आगामी दिनों में हम राजनीतिक अधिकार से वंचित कर दिए जाएंगे.

आज़ हम साफ़-साफ़ देख सकते हैं कि लोकतंत्र को हम विस्तारित नही कर पाए, दलित आदिवासी, पिछड़ा-पसमांदा व आम जनता तक लोकतंत्र को नही ले जा पाए.

लोकतंत्र को केवल वोट देने तक ही सीमित किए रहे, और अब मोदी काल में चुनाव आयोग के ज़रिए, यह वोट देने भर का लोकतंत्र भी आज ख़तरे में पड़ गया है.

यह सवाल भी कई कोनों से उठ रहा है कि क्या SIR के ज़रिए चोर रास्ते से NRC को लागू करने की शुरुआत की जा रही है,तो क्या जो लोग मतदाता नही रहेंगे,उनकी नागरिकता भी ख़तरे में पड़ जाएगी.

क्योंकि पहली बार ऐसा हो रहा है जब नागरिकों से नागरिकता का प्रमाण पत्र मांगा जा रहा है, इतिहास में ऐसा कभी नही हुआ है जब मतदाता सूची से जुड़ने के लिए नागरिकता का प्रमाण मांगा गया हो, स्वतंत्र भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है.

2003 में भी नागरिकों से कोई दस्तावेज़ नही मांगा गया था,2025 में ऐसा हो रहा है. और यह प्रक्रिया केवल बिहार में नही पूरे देश में दोहराई जानी है, यानि जो लोग वोटर लिस्ट से बाहर होंगे, उनके ऊपर अनागरिक होने ख़तरा भी बना रहेगा.

एक नैरेटिव ये भी निर्मित किया गया है कि SIR ज़रिए केवल मुसलमानों को निशाने पर लिया जाएगा, और हिंदूओं के किसी भी हिस्से को परेशान होने की जरूरत नही है. असम में भी NRC के दौरान, प्रचार यही किया गया था कि निशाने पर मुसलमान होंगे, पर सिर्फ ऐसा वहां भी नही हुआ था, जो 20 लाख लोग वहां पर अनागरिक कर दिए गए थे, जिसमें 14 लाख दलित आदिवासी थे व 4-5 लाख मुसलमान थे.

बिहार में भी ऐसा ही होता हुआ दिख रहा है. दलित, आदिवासी, गरीब व पसमांदा बड़े पैमाने पर वोटर लिस्ट से बाहर किए जा रहे हैं, अब यह बात बिल्कुल साफ़ होती जा रही है कि NRC की ही तर्ज पर SIR भी सीमित NRC साबित होती जा रही है.

और अगर इस सीमित NRC को होने दिया गया तो आने वाले समय में वास्तविक NRC को भी होने से रोक पाना असंभव होगा, और आज़ जो लोग मतदाता सूची से बाहर हो रहे हैं, बाद में उन्हें नागरिकता और नागरिक अधिकारों से भी वंचित होना पड़ेगा.

बार-बार भारत का उदार हिस्सा यह समझ नही पाता कि तमाम स्वायत्त संस्थाएं व चुनाव आयोग को इतना नियंत्रित कैसे कर लिया गया.असल में इसके लिए संघ-भाजपा के राजनीतिक चरित्र को समझना होगा, अगर उसे एक सामान्य राजनीतिक पार्टी की तरह देखेंगे तो बात समझ में नही आएगी,वो एक फासिस्ट कैरेक्टर की पार्टी है,इस तरह की पार्टियों व नेताओं के उभार को दुनिया भर में देखा जा सकता है, और हर जगह शक्ति को सेंट्रलाइजेशन करने की ख़ास प्रवृत्ति भी देखी जा सकती है.

भारत में चुनाव आयोग की स्वायत्तता को ध्वस्त करने के लिए अतिरिक्त कोशिश की गई, 2023 में सबसे पहले एक कानून लाया गया कि जिसके तहत अब चुनाव आयोग पर कोई भी आपराधिक मुकदमा पद पर रहते हुए नही किया जा सकता, फिर 2024 में तो चुनाव आयोग के चयन की पूरी प्रक्रिया को ही बदल दिया गया, चुनाव आयोग का चयन पूरी तरह से प्रधानमंत्री के मातहत कर दिया गया. ऐसे में चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार आज जो कर रहे हैं, उसे उपरोक्त परिवर्तनों के ज़रिए ठीक से समझा जा सकता है.

अब सवाल उठता है कि ऐसी ख़तरनाक परिस्थितियों में विपक्ष को क्या करना चाहिए?

वैसे बिहार में 17 अगस्त से वोट अधिकार यात्रा जारी है, और समूचा विपक्ष इसके सेंटर में है.

इस यात्रा के दौरान वोटबंदी का सवाल तो रहेगा ही रहेगा,पर यह भी देखना होगा कि किस नजरिए से इस प्रश्न को संबोधित किया जाता है.

SIR की अब तक की प्रक्रिया ने यह बिल्कुल स्पष्ट कर दिया है कि केवल अल्पसंख्यक ही नही बल्कि सामाजिक न्याय को लेकर सचेत समाज और भी बड़े पैमाने पर निशाने पर है.

असम में भी यही हुआ, वहां भी मुस्लिम तो निशाने पर रहे ही पर उससे भी ज्यादा आदिवासी, दलित समाज को टारगेट किया गया.

बिहार में दलित बहुजन समाज ही भूमिहीन है, शिक्षा से वंचित है, बेरोजगार है, और 90 फीसदी वही पलायन करने के लिए मजबूर है.

SIR के ज़रिए शुरूआती चरण में जो 65 लाख लोग वोटर लिस्ट में बाहर कर दिए गए हैं, उसके भी 90 फीसदी को, दलित-पिछड़े व पसमांदा समाज से ही होने की संभावना ज्यादा है.

वोट बंदी, ज़रूर एक्रास द कास्ट व क्लास हुआ होगा पर सच्चाई यही है कि मूल निशाने पर बहुजन समाज ही है.

ऐसे में वोटबंदी का सामान्यीकरण करने से बात दूर तलक नही जा पाएगी, इसे इस दिशा में ले जाना होगा कि मूलतः किसकी वोटबंदी, किसकी बेरोजगारी, किसका पलायन.

और किसे संविधान की, वोट के अधिकार की, सामाजिक न्याय की, भूमि सुधार की, बिहार में ही रोजगार की सबसे ज्यादा ज़रूरत है.

अब देखना ये है कि इस यात्रा के दौरान लोकतंत्र, संविधान व सामाजिक न्याय के सवाल को विपक्ष कितनी समग्रता से जनता के बीच ले जाता है,और सामाजिक न्याय के फोर्सेज को कितनी गहराई में जाकर संबोधित करता है.

और वास्तव में अगर ऐसा हुआ तो SIR का यह भाजपाई दांव उल्टा भी पड़ सकता है, वोटर लिस्ट में बची हुई जनता पलटवार कर सकती है. और भाजपा खुद बड़े संकट में फंस सकती है.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति The Mooknayak उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार The Mooknayak के नहीं हैं, तथा The Mooknayak उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.
Manish Sharma Opinion on SIR
विश्व का श्रेष्ठ धर्म फिर भी भारत से क्यों लुप्त हुआ बौद्ध धर्म — धम्म?
Manish Sharma Opinion on SIR
शिक्षा और चेतना: मंडेला की चेतावनी और अम्बेडकर का उत्तर
Manish Sharma Opinion on SIR
सगोत्र शादी की ऐसी सज़ा क्यों? ओडिशा में प्रेमी जोड़े को बनाया बैल, हल से जोतवाया खेत!

द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.

The Mooknayak - आवाज़ आपकी
www.themooknayak.com