
रायसेन: मध्य प्रदेश के रायसेन जिले से एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है, जिसने समाज में आज भी व्याप्त जातिगत भेदभाव की कड़वी सच्चाई को उजागर कर दिया है। यहां एक व्यक्ति का सिर्फ इसलिए सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया क्योंकि उसने एक दलित परिवार के घर आयोजित मृत्यु भोज में खाना खा लिया था। पीड़ित का आरोप है कि पंचायत ने न केवल उसे समाज से बेदखल कर दिया, बल्कि उसे फिर से समाज में शामिल करने के लिए ऐसी शर्तें रखीं, जिन्हें सुनकर कोई भी दंग रह जाए। प्रशासन ने मामले की गंभीरता को देखते हुए जांच शुरू कर दी है।
क्या है पूरा मामला?
यह घटना रायसेन जिला मुख्यालय से लगभग 100 किलोमीटर दूर उदयपुरा तहसील के पिपरिया पुआरिया गांव की है। यह क्षेत्र मध्य प्रदेश सरकार में स्वास्थ्य राज्य मंत्री नरेंद्र शिवाजी पटेल का विधानसभा क्षेत्र भी है। मामला करीब एक महीने पुराना है, लेकिन इसका खुलासा मंगलवार को जनसुनवाई के दौरान हुआ।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, पीड़ित भरत सिंह धाकड़ ने अधिकारियों को अपनी व्यथा सुनाते हुए बताया कि करीब एक महीने पहले गांव के ही एक दलित व्यक्ति, संतोष मेहतर के घर 'श्राद्ध' का कार्यक्रम था। इस कार्यक्रम में भरत सिंह धाकड़, ग्राम पंचायत के सहायक सचिव मनोज पटेल और एक शिक्षक सत्येंद्र सिंह रघुवंशी ने भोजन किया था।
पंचायत का अजीबोगरीब फरमान: "यह गौहत्या से भी बड़ा पाप है"
भरत सिंह का आरोप है कि उनके दलित के घर खाना खाने की बात पंचायत को नागवार गुजरी। पंचायत ने एक बैठक बुलाई और यह प्रस्ताव पारित कर दिया कि दलित के घर भोजन करना "गौहत्या से भी बड़ा पाप" है। फरमान सुनाया गया कि जिसने भी यह 'कृत्य' किया है, उसे गंगा में स्नान करके खुद को शुद्ध करना होगा और गांव में भोज (दावत) देना होगा, तभी उन्हें समाज में वापस स्वीकार किया जाएगा।
दो ने मानी शर्त, एक ने किया विरोध
पंचायत के दबाव में आकर सहायक सचिव मनोज पटेल और शिक्षक सत्येंद्र सिंह रघुवंशी ने उनकी शर्तें मान लीं। उन्होंने गंगा स्नान किया और गांव में दावत दी। लेकिन भरत सिंह धाकड़ ने इस भेदभावपूर्ण आदेश को मानने से इनकार कर दिया। इसके बाद, कथित तौर पर पंचायत ने उनके और उनके परिवार के खिलाफ सामाजिक बहिष्कार का ऐलान कर दिया।
जीवित पिता का 'पिंडदान' करने का दबाव
जनसुनवाई में उदयपुरा तहसीलदार दिनेश बरगले को दिए गए आवेदन में भरत सिंह ने बेहद गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने बताया कि उन पर पंचायत द्वारा दबाव बनाया गया कि अगर वे पाप मुक्त होना चाहते हैं, तो उन्हें अपना सिर मुंडवाना होगा और अपने जीवित पिता का 'पिंडदान' (मृत्यु के बाद की रस्म) करना होगा।
धाकड़ ने कहा, "मेरे और मेरे परिवार के साथ अछूतों जैसा व्यवहार किया जा रहा है। हमें मंदिर में प्रवेश करने से रोका गया और गांव के किसी भी सामाजिक कार्यक्रम में शामिल होने की मनाही है।" उन्होंने अपनी शिकायत में सरपंच, उप-सरपंच और पंचों को नामजद किया है।
प्रशासन और पुलिस का रुख
मामला संज्ञान में आते ही प्रशासन हरकत में आ गया है। तहसीलदार दिनेश बरगले ने कहा, "मामले की जांच की जा रही है। अगर आरोप सही पाए गए, तो दोषियों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी।"
वहीं, एसडीओपी (SDOP) कुंवर सिंह मुकाती ने स्पष्ट किया कि किसी को भी जाति के आधार पर अपमानित करना या हुक्का-पानी बंद करना अपराध है। उन्होंने कहा, "किसी को सामाजिक कार्यक्रमों से रोकना, अछूत मानना या गंगा स्नान और भोज देने जैसी सजा सुनाना भारतीय न्याय संहिता (BNS) के तहत दंडनीय अपराध है। हर नागरिक को गरिमा के साथ जीने का अधिकार है। सामाजिक द्वेष फैलाने वालों को बख्शा नहीं जाएगा।"
सरपंच ने आरोपों को नकारा
दूसरी ओर, जब गांव के सरपंच भगवान सिंह पटेल से संपर्क किया गया, तो उन्होंने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया। उन्होंने कहा, "छुआछूत जैसे आरोप गलत हैं। अगर कोई व्यक्तिगत कारणों से उन्हें अपने कार्यक्रम में नहीं बुला रहा है, तो यह उनका निजी मामला है।" सरपंच ने यह भी बताया कि क्षेत्रीय विधायक और राज्य मंत्री नरेंद्र शिवाजी पटेल ने भी गांव आकर लोगों को समझाने की कोशिश की थी।
शिक्षक ने कबूली 'शुद्धि' की बात
दिलचस्प बात यह है कि दलित के घर खाना खाने वाले शिक्षक सत्येंद्र सिंह रघुवंशी ने स्वीकार किया कि विवाद के बाद वे अपने गुरु के आश्रम इलाहाबाद गए थे और संगम में स्नान करके लौटे थे। उन्होंने कहा, "मैं जाति-पांत में नहीं मानता, इसलिए अपने मित्र संतोष के घर खाना खाने गया था। किसी ने वीडियो बनाकर वायरल कर दिया, जिससे विवाद बढ़ा। पंचायत के आदेश पर मैं गंगा स्नान कर आया हूँ और अब मुझे कोई शिकायत नहीं है, न ही मेरा कोई बहिष्कार है।" शिक्षक पिछले 16 वर्षों से गांव के ही माध्यमिक स्कूल में पदस्थ हैं।
फिलहाल, पुलिस और प्रशासन इस मामले की तह तक जाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि सच्चाई सामने आ सके।
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