MP: सिंगरौली में 6 लाख पेड़ों की कटाई पर प्रभारी मंत्री संपतिया उइके बोलीं- '6 लाख पेड़ कटे नहीं, प्रस्तावित हैं'

मध्यप्रदेश विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने कहा था, कि कांग्रेस पार्टी इस पूरे मामले में लगातार आदिवासियों की आवाज उठा रही है, लेकिन वर्षों से जंगलों में रहने वाले लोगों को न्याय नहीं मिल पा रहा।
MP: सिंगरौली में 6 लाख पेड़ों की कटाई पर प्रभारी मंत्री संपतिया उइके बोलीं- '6 लाख पेड़ कटे नहीं, प्रस्तावित हैं'
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भोपाल। मध्यप्रदेश के सबसे प्रदूषित शहरों में गिने जाने वाले सिंगरौली में घिरौली कोल ब्लॉक को लेकर प्रस्तावित बड़े पैमाने पर पेड़ कटाई का मुद्दा अब सड़कों से अदालत तक पहुंच चुका है। कांग्रेस और स्थानीय नागरिक समूहों का आरोप है कि कोयला खनन परियोजना के लिए लगभग 6 लाख पेड़ों की कटाई से क्षेत्र की पर्यावरणीय स्थिति और बिगड़ेगी, जबकि पहले से ही सिंगरौली प्रदूषण, विस्थापन और स्वास्थ्य संकट का सामना कर रहा है। इस पृष्ठभूमि में जब सिंगरौली जिले की प्रभारी मंत्री एवं प्रदेश की पीएचई मंत्री संपतिया उइके से सवाल किया गया, तो उन्होंने कटाई के आंकड़ों को लेकर फैली ‘भ्रम की स्थिति’ पर सफाई दी।

अबतक 33 हजार पेड़ काटे गए- मंत्री

पीएचई मंत्री संपतिया उइके ने कहा कि यह बार-बार कहा जा रहा है कि 6 लाख पेड़ काट दिए गए हैं, जबकि जमीनी हकीकत इससे अलग है। उनके मुताबिक, “अब तक लगभग 33 हजार पेड़ ही काटे गए हैं। 6 लाख पेड़ों की कटाई प्रस्तावित है, लेकिन अभी इतने पेड़ नहीं कटे हैं।”

उन्होंने यह भी कहा कि विकास कार्यों के तहत आवश्यकता के अनुसार चरणबद्ध तरीके से ही कटाई की जाएगी और जो भी पेड़ काटे गए हैं, वे सभी नियमों और प्रावधानों के तहत ही काटे गए हैं। मंत्री ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि “यह कहना तथ्यात्मक रूप से गलत है कि 6 लाख पेड़ कट चुके हैं।”

हालांकि, स्थानीय लोगों और पर्यावरण समूहों की चिंता यहीं खत्म नहीं होती। उनका तर्क है कि प्रस्तावित कटाई ही अपने-आप में भयावह है, क्योंकि सिंगरौली पहले से ही थर्मल पावर प्लांट्स, कोयला खदानों और औद्योगिक गतिविधियों के दबाव में है। घिरौली कोल ब्लॉक से जुड़ा मामला इसी वजह से न्यायिक दायरे में भी पहुंचा है। पर्यावरणविदों का कहना है कि जंगल केवल पेड़ों का समूह नहीं, बल्कि आजीविका, जैव-विविधता और जल स्रोतों की सुरक्षा का आधार हैं, जिन पर खनन परियोजनाओं का सीधा असर पड़ता है।

जंगल बनाम कॉरपोरेट मॉडल

मध्यप्रदेश विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने कहा था, कि कांग्रेस पार्टी इस पूरे मामले में लगातार आदिवासियों की आवाज उठा रही है, लेकिन वर्षों से जंगलों में रहने वाले लोगों को न्याय नहीं मिल पा रहा।

उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “एक पेड़ मां के नाम” अभियान पर तंज कसते हुए कहा, “दिल्ली में पेड़ लगाने की बात होती है और सिंगरौली-छत्तीसगढ़ में हजारों-लाखों पेड़ अडाणी के नाम काट दिए जाते हैं। हसदेव के जंगलों में देश ने पहले ही यह मॉडल देख लिया है, अब वही सिंगरौली में दोहराया जा रहा है।”

सिंघार ने बताया कि पहले अडाणी समूह को सुलियारी कोल ब्लॉक मिला, फिर उससे सटे धिरौली ब्लॉक का आवंटन कर दिया गया। खास बात यह है कि सुलियारी ब्लॉक, जहां 90 प्रतिशत क्षेत्र वन भूमि से जुड़ा है, वहां अंडरग्राउंड माइनिंग की अनुमति दी गई, जबकि धिरौली में ओपन कास्ट माइनिंग की मंजूरी दी गई।

उन्होंने सवाल उठाया, “एक तरफ अंडरग्राउंड माइनिंग से जंगल बचाने की बात होती है और दूसरी तरफ खुले में खनन कर जंगल तबाह किए जाते हैं। 80 साल के खनन प्लान को 40 साल अंडरग्राउंड और 40 साल ओपन कास्ट में बांट दिया गया है। क्या इसका मतलब यह नहीं कि आने वाले समय में आदिवासियों और जंगल पर निर्भर लोगों को पूरी तरह बाहर कर दिया जाएगा?”

2672 हेक्टेयर में फैली खदान, 6 लाख पेड़ कटाई का आरोप

कांग्रेस नेताओं के अनुसार 3 मार्च 2021 को केंद्र सरकार ने धिरौली कोल ब्लॉक को मंजूरी दी। इसके बाद प्रशासन ने तेजी से प्रक्रिया आगे बढ़ाई। कुल खदान क्षेत्र 2672 हेक्टेयर में फैला है, जिसमें 544 हेक्टेयर निजी भूमि, 680 हेक्टेयर सरकारी भूमि, और लगभग 1400 हेक्टेयर वन भूमि शामिल है।

उमंग सिंघार के मुताबिक, लगभग 6 लाख पेड़ काटे जा रहे हैं। कंपनी की ओर से दूसरे जिलों में पेड़ लगाने की बात कही जा रही है, लेकिन कांग्रेस का सवाल है कि जब पेड़ सिंगरौली में कट रहे हैं तो वृक्षारोपण भी वहीं क्यों नहीं किया जा रहा।

उन्होंने कहा- “दिल्ली के बाद सिंगरौली देश का दूसरा सबसे प्रदूषित शहर है। यहां की आबोहवा सुधारने के बजाय और ज्यादा प्रदूषण थोपा जा रहा है। सिंगरौली में पेड़ काटकर शिवपुरी-गुना में पेड़ लगाने की बात समझ से परे है।”

अडाणी के लिए अलग कानून?

कांग्रेस नेता पूर्व मंत्री कमलेश्वर पटेल ने इसे संवैधानिक मूल्यों से जोड़ते हुए कहा- “एक अडाणी के लिए 2672 हेक्टेयर जमीन आवंटित कर दी जाती है, लेकिन अगर आदिवासी भाई 5–10 डेसीमिल जमीन पर काबिज हो जाएं तो उन्हें जेल भेज दिया जाता है। देश में दो तरह का संविधान चल रहा है- एक अडाणी के लिए और दूसरा आम लोगों के लिए।”

उन्होंने अनुच्छेद 19 (आवागमन की स्वतंत्रता) का जिक्र करते हुए कहा कि चुने हुए जनप्रतिनिधियों को भी अपने ही राज्य में जाने से रोका गया, जो लोकतंत्र के लिए खतरनाक संकेत है।

कांग्रेस का एलान, संघर्ष जारी रहेगा

कांग्रेस नेताओं ने कहा है, कि धिरौली कोल ब्लॉक का मुद्दा सिर्फ पर्यावरण का नहीं, बल्कि आदिवासी अधिकारों, संविधान और आर्थिक न्याय का सवाल है। कांग्रेस ने चेतावनी दी कि अगर सरकार ने इस परियोजना की समीक्षा नहीं की और स्थानीय लोगों को न्याय नहीं मिला, तो पार्टी सड़क से संसद तक संघर्ष तेज करेगी।

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