भोपाल। मध्य प्रदेश के कैबिनेट मंत्री गोविंद सिंह राजपूत के चुनावी हलफनामे में संपत्ति छुपाने के आरोपों पर गुरुवार को हाई कोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की भूमिका कठघरे में आ गई। अदालत ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि सरकार इस मामले में आवश्यक जानकारी निर्वाचन आयोग को उपलब्ध नहीं करा रही है, जिससे यह साफ जाहिर होता है कि वह मंत्री को बचाने की कोशिश कर रही है। अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 9 अक्टूबर को निर्धारित की है और तब तक आयोग व सरकार से विस्तृत रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए हैं।
सागर जिले के राजकुमार सिंह ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि 2023 के विधानसभा चुनाव के दौरान मंत्री गोविंद सिंह राजपूत ने अपने नामांकन में संपत्ति का पूरा ब्योरा नहीं दिया। याचिकाकर्ता का दावा है कि मंत्री और उनके परिजनों के नाम पर करोड़ों की संपत्ति है, लेकिन चुनावी हलफनामे में इसका खुलासा नहीं किया गया। उन्होंने इस संबंध में दस्तावेज निर्वाचन आयोग को सौंपे, जिसके बाद आयोग ने राज्य सरकार से संपत्तियों की जानकारी मांगी।
हालांकि, अदालत में पेश हुई जानकारी के अनुसार, राज्य सरकार ने आयोग को जवाब देते हुए कहा कि यह चुनाव आयोग का मामला है। सरकार के इस रुख के कारण जांच ठप हो गई और मामला अब तक आगे नहीं बढ़ सका है।
गुरुवार को चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान राज्य सरकार के रवैये पर नाराजगी जताई। अदालत ने कहा कि सरकार आयोग की मदद करने की बजाय प्रतिवादी यानी मंत्री के पक्ष में खड़ी नजर आ रही है। अदालत ने स्पष्ट किया कि निर्वाचन आयोग ने इस मामले को जांच योग्य माना था और राज्य सरकार से दस्तावेज मांगे थे, लेकिन सरकार ने गोलमोल जवाब देकर मामले को टालने की कोशिश की।
अदालत ने आयोग को भी दस्तावेज दाखिल करने के लिए समय दिया और मध्यप्रदेश सरकार व जिला निर्वाचन अधिकारी सागर से इस मामले में स्टेटस रिपोर्ट तलब की। अदालत ने कहा कि पारदर्शिता लोकतंत्र की बुनियाद है और यदि चुनावी हलफनामों में गड़बड़ी सामने आती है, तो उसकी निष्पक्ष जांच होना जरूरी है।
याचिकाकर्ता राजकुमार सिंह ने अदालत में मंत्री और उनके परिजनों के नाम पर 64 जमीनों की रजिस्ट्री और खसरे के दस्तावेज पेश किए। इन दस्तावेजों के अनुसार, 2019 से 2024 के बीच मंत्री, उनकी पत्नी और पुत्रों के नाम पर सागर जिले में लगभग 40 हेक्टेयर जमीन खरीदी गई है। इनकी अनुमानित कीमत सैकड़ों करोड़ रुपये बताई जा रही है, जबकि चुनावी हलफनामे में मंत्री ने मात्र 12 करोड़ रुपये की संपत्ति का उल्लेख किया था।
याचिकाकर्ता का कहना है कि इतनी बड़ी मात्रा में जमीन की खरीद के बावजूद हलफनामे में सही जानकारी नहीं देना चुनावी आचार संहिता और पारदर्शिता की भावना के खिलाफ है। अदालत ने इन आरोपों को गंभीर मानते हुए मामले की गहराई से जांच के आदेश दिए हैं।
इस मामले में आयकर विभाग भी सक्रिय है। विभाग ने मंत्री गोविंद सिंह राजपूत और उनके परिजनों की 195 एकड़ जमीन की जांच शुरू की है। इसमें करीब 50 एकड़ जमीन ऐसी बताई जा रही है, जो मंत्री, उनकी पत्नी और wबेटे को दान या बिक्री के जरिए मिली है।
जांच में यह तथ्य भी सामने आया कि कुछ जमीनें पहले अन्य रिश्तेदारों या महिलाओं के नाम पर थीं। शिकायत के बाद इन्हें वापस मंत्री परिवार के नाम कर दिया गया। आयकर विभाग इन लेन-देन को संभावित बेनामी संपत्ति मानते हुए जांच कर रहा है। विभाग यह पता लगाने की कोशिश कर रहा है कि इन संपत्तियों की खरीद के लिए धन कहां से आया और क्या इनका सही तरीके से कर भुगतान हुआ है या नहीं।
हाई कोर्ट ने साफ कर दिया है कि अगली सुनवाई तक निर्वाचन आयोग, राज्य सरकार और जिला निर्वाचन अधिकारी सागर को विस्तृत रिपोर्ट पेश करनी होगी। अदालत यह देखेगी कि मंत्री के हलफनामे में संपत्ति छुपाने के आरोपों में कितनी सच्चाई है और क्या सरकार की ओर से जानबूझकर जांच में देरी की जा रही है।
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