MP की पहली महिला डिप्टी सीएम जमुना देवी के संघर्ष और समर्पण ने जगाई थी आदिवासियों में चेतना: वंचित वर्गों के अधिकारों के लिए समर्पित कर दिया पूरा जीवन

प्रदेश कांग्रेस में उन्हें स्नेह से ‘बुआ जी’ कहा जाता था। 24 सितम्बर को उनके निधन को 15 वर्ष पूरे हो गए, आदिवासी समाज उनके अभाव को गहराई से महसूस करता है।
जमुना देवी
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भोपाल। मध्य प्रदेश की राजनीति में जमुना देवी एक ऐसा नाम हैं, जिन्हें जनसेवा और संघर्ष की मिसाल के रूप में याद किया जाता है। अलीराजपुर ज़िले के पेटलावद में 1929 में जन्मीं जमुना देवी ने 1952 से कांग्रेस पार्टी के माध्यम से राजनीति की शुरुआत की और देखते ही देखते प्रदेश की राजनीति में अपनी मजबूत पहचान बना ली। वे न सिर्फ नौ बार विधायक चुनी गईं बल्कि कई बार मंत्री भी रहीं। प्रदेश की पहली महिला उपमुख्यमंत्री बनने का इतिहास भी उनके नाम दर्ज है। इसके साथ ही वे विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और झाबुआ से सांसद के रूप में भी अपनी भूमिका निभा चुकी थीं।

उनका राजनीतिक जीवन महिलाओं और आदिवासी समाज के लिए समर्पण का प्रतीक था। जमुना देवी ने ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने और उनकी सामाजिक-राजनीतिक भागीदारी बढ़ाने के लिए लगातार काम किया। वे आदिवासी अधिकारों, शिक्षा और बुनियादी सुविधाओं के विस्तार के लिए हमेशा संघर्षरत रहीं। 24 सितम्बर 2010 को 81 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया, लेकिन उनका जीवन आज भी समाजसेवा और राजनीति में ईमानदारी का प्रेरक उदाहरण है।

मध्यप्रदेश की दिग्गज आदिवासी नेता और कांग्रेस की वरिष्ठ राजनेता जमुना देवी की पुण्यतिथि पर बुधबार को प्रदेशभर में उन्हें याद किया गया। प्रदेश कांग्रेस में उन्हें स्नेह से ‘बुआ जी’ कहा जाता था। 24 सितम्बर को उनके निधन को 15 वर्ष पूरे हो गए, लेकिन पार्टी और आदिवासी समाज दोनों ही आज भी उनके अभाव को गहराई से महसूस करते हैं।

नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने कहा कि जमुना देवी का नेतृत्व आदिवासी समाज के लिए ऐसी ताकत थी, जिनकी कमी को आज तक पूरा नहीं किया जा सका। उन्होंने कहा कि बुआ जी ने अपना पूरा जीवन वंचितों, आदिवासियों और महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई को समर्पित किया। पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में राजनीति की शिक्षा लेने वाली जमुना देवी ने अपने आदर्शों और संघर्ष के बल पर कांग्रेस में विशेष पहचान बनाई।

वंचित वर्गों के अधिकारों के लिए संघर्ष

उमंग सिंघार ने कहा कि जमुना देवी का व्यक्तित्व आदिवासी नेतृत्व, सामाजिक न्याय और महिला सशक्तिकरण का जीवंत प्रतीक था। वे अपने बेबाक अंदाज और प्रखर नेतृत्व के कारण पूरे प्रदेश ही नहीं बल्कि देशभर में लोकप्रिय रहीं। यही कारण था कि प्रदेश की जनता उन्हें 'बुआ जी' के नाम से पुकारकर अपना स्नेह व्यक्त करती थी। उन्होंने विधायक, सांसद, मंत्री, उपमुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष जैसे महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए भी जनजातीय समाज और कमजोर वर्गों के अधिकारों की लड़ाई कभी नहीं छोड़ी।

कांग्रेस नेता ने बताया कि बुआ जी ने महिला सशक्तिकरण की दिशा में विशेष काम किया। उन्होंने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने और समाज में उनकी सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए कई पहल कीं। आदिवासी समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिए उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और सुविधाओं के विस्तार की दिशा में लगातार प्रयास किए। आज भी आदिवासी समाज उनके कार्यों का सुफल प्राप्त कर रहा है।

सिंघार ने कहा कि जमुना देवी का जीवन संघर्षों से भरा रहा, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। वे आदिवासी समाज की सिर्फ नेत्री ही नहीं, बल्कि उनकी निर्भीक आवाज़ भी थीं। उनका 58 वर्षों से अधिक का राजनीतिक जीवन सेवा, समर्पण और जनकल्याण का आदर्श प्रस्तुत करता है।

उन्होंने कहा कि 2010 में उनका निधन हो गया, लेकिन उनका व्यक्तित्व और योगदान हमेशा याद किया जाएगा। “भतीजे के रूप में यह मेरी व्यक्तिगत क्षति है, लेकिन वास्तव में यह पूरी आदिवासी बिरादरी की भी क्षति है। ऐसे लोग विरले ही जन्म लेते हैं, जो सिर्फ समाज के उत्थान के लिए जीवन जीते हैं।

जमना देवी की यात्रा

जमुना देवी का जन्म 1929 में अलीराजपुर ज़िले के पेटलावद में हुआ था। वे स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस से सक्रिय राजनीति में जुड़ीं और 1952 से अपना राजनीतिक सफर शुरू किया। लंबी राजनीतिक पारी में उन्होंने नौ बार विधानसभा चुनाव जीतकर प्रदेश की राजनीति में एक मजबूत पहचान बनाई। कई बार वे मंत्री पद पर रहीं और प्रदेश की पहली महिला उपमुख्यमंत्री बनने का गौरव भी उन्हें हासिल हुआ। वे विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के पद पर भी रहीं। झाबुआ लोकसभा क्षेत्र से सांसद के रूप में उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। उनका राजनीतिक जीवन इस बात का उदाहरण है कि आदिवासी समाज से आई एक महिला किस तरह दृढ़ इच्छाशक्ति और मेहनत के बल पर राजनीति में शीर्ष स्थान तक पहुँच सकती है।

जमुना देवी का पूरा जीवन समाज सेवा और वंचित वर्गों के उत्थान को समर्पित रहा। उन्होंने ग्रामीण और आदिवासी महिलाओं के आत्मनिर्भर बनने के लिए अनेक प्रयास किए और उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाने का काम किया। शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी सुविधाओं के विस्तार के लिए वे निरंतर संघर्ष करती रहीं। उनकी पहचान एक सच्ची आदिवासी हितैषी नेता के रूप में रही, जिनका सपना था कि समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति तक भी विकास की रोशनी पहुँचे। 24 सितम्बर 2010 को 81 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ, लेकिन उनकी कार्यशैली और संघर्ष आज भी प्रेरणा का स्रोत बने हुए हैं।

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