सिंगरौली में पेड़ कटाई पर गरमााया एमपी विधानसभा का अंतिम दिन: कांग्रेस का वॉकआउट, मंत्री जवाब देने में असफल!

वन संरक्षण, पेसा एक्ट और आदिवासी अधिकारों पर तीखी बहस के बाद विपक्ष वॉकआउट
मध्य प्रदेश की विधानसभा
मध्य प्रदेश की विधानसभा फोटो- द मूकनायक
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भोपाल। मध्य प्रदेश विधानसभा के शीतकालीन सत्र के अंतिम दिन शुक्रवार को सिंगरौली जिले में कथित अवैध पेड़ कटाई का मुद्दा छा गया। कांग्रेस विधायकों ने 6 लाख से अधिक पेड़ों की कटाई को आदिवासी हितों पर हमला बताते हुए सरकार को कठघरे में खड़ा किया। वन राज्य मंत्री दिलीप अहिरवार मामले में स्पष्ट जवाब नहीं दे सके, जिसके बाद सदन में हंगामा हुआ और कांग्रेस विधायकों ने नारेबाजी करते हुए वॉकआउट कर दिया।

6 लाख पेड़ों की कटाई पर कांग्रेस का हमला

कांग्रेस विधायक विक्रांत भूरिया ने सिंगरौली में वन कटाई को अवैध बताते हुए कहा कि आदिवासी इलाकों में बड़े पैमाने पर जंगल समाप्त किए जा रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि “अडाणी को श्रेष्ठ बताने के लिए सिंगरौली के आदिवासियों की जमीन से पेड़ काटे जा रहे हैं। पेड़ सिंगरौली में काटे जा रहे हैं, लेकिन लगाए सागर और शिवपुरी में जा रहे हैं, ये कैसा न्याय है?”

वहीं विधायक जयवर्धन सिंह ने कहा कि खदानों के आवंटन के लिए अडाणी समूह को वन क्षेत्र सौंपा गया, जिसके कारण भारी पैमाने पर कटाई हुई है। उन्होंने आरोप लगाया कि इसमें वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 का भी उल्लंघन हुआ है।

सरकार का पक्ष- “कटाई अवैध नहीं, नियम अनुसार हुई”

वन राज्य मंत्री दिलीप अहिरवार ने कहा कि:), कुल 2672 हेक्टेयर क्षेत्र में कटाई हुई है। यह कटाई भारत सरकार के खान एवं खनन मंत्रालय के निर्देशों के अनुसार की गई है।

“जितने पेड़ काटे जा रहे हैं, उतने पेड़ लगाए भी जा रहे हैं।”

लेकिन जब पेड़ों की संख्या, पेसा एक्ट के दायरे और क्षेत्र की अधिसूचना पर विशिष्ट जवाब मांगे गए, तो मंत्री बार-बार घिरते रहे।

पेसा एक्ट का मुद्दा गरमाया, विरोध में कांग्रेस का वॉकआउट

नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने बड़ा सवाल उठाते हुए कहा कि, सरकार ने गलत जानकारी दी कि सिंगरौली पेसा एक्ट के दायरे में नहीं आता। जबकि अगस्त 2023 में जारी दस्तावेज़ में साफ है कि यह क्षेत्र पेसा के अंतर्गत आता है।

उन्होंने पूछा, “अगर यह पेसा क्षेत्र था, तो वहां पेड़ कटाई की अनुमति कैसे दी गई?” सिंघार के सवालों का संतोषजनक जवाब न देने पर कांग्रेस विधायकों ने सदन में नारेबाजी शुरू कर दी और वॉकआउट कर दिया।

विजयवर्गीय आए वन मंत्री के बचाव में

संसदीय कार्य मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने वन मंत्री का बचाव करते हुए कहा,;“अहिरवार पहली बार विधायक बने हैं, लेकिन उन्होंने सही जवाब दिया है।”

“सिंगरौली कभी भी पेसा एक्ट के तहत नहीं रहा, क्योंकि क्षेत्र में आदिवासी आबादी कम है।”उन्होंने सारे तथ्य अधिकारियों से बातचीत के आधार पर बताए जाने की बात कही।

आदिवासी जल-जंगल-जमीन पर निर्भर, कटाई से उनका अस्तित्व खतरे में:भूरिया

वॉकआउट के बाद बाहर मीडिया से बात करते हुए विक्रांत भूरिया ने कहा- “आदिवासी की पहचान जल, जंगल और जमीन से होती है। अगर आप उनका जंगल खत्म कर दोगे, जमीन छीन लोगे, जल ले लोगे तो उनका अस्तित्व कहां बचेगा?”

“सरकार अडाणी के एजेंट की तरह काम कर रही है। हाईकोर्ट ने भी अब संज्ञान लिया है। एक पेड़ मां के नाम की बात करते हैं, लेकिन पूरा जंगल अडाणी को दे दिया।”

उन्होंने यह भी कहा कि अगर कटाई नियम अनुसार है तो विरोध क्यों हो रहा है और 8 गांव अधिसूचित क्षेत्र से बाहर कैसे हो गए?

सिंहस्थ भूमि मुद्दे पर भी गर्म हुई बहस

तराना के कांग्रेस विधायक महेश परमार ने ध्यानाकर्षण में सवाल उठाया कि, मुख्यमंत्री की उपस्थिति में मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने वादा किया था कि सिंहस्थ क्षेत्र की किसानों की जमीन को लैंड पूलिंग एक्ट से मुक्त किया जाएगा। यह वादा कब पूरा होगा? जवाब में मंत्री ने जल्द ही समाधान का आश्वासन दिया।

कटाई क्षेत्र को पांचवी अनुसूची से हटाने पर सवाल

सिंघार ने पूछा, “जब यह क्षेत्र पांचवी अनुसूची में था, तो 2023 के बाद इसे क्यों हटाया गया?” विधायक बाला बच्चन ने कहा कि यह कदम कोल ब्लॉक के लिए जमीन देने के उद्देश्य से उठाया गया।

पीठासीन अधिकारी की हस्तक्षेप

जब मंत्री अहिरवार स्पष्ट जवाब देने में असमर्थ रहे, तो विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने हस्तक्षेप करते हुए कहा, “वन मंत्री नेता प्रतिपक्ष से अलग मुलाकात कर विस्तृत जवाब देंगे।”

प्रश्नकाल में 14 विधायक अनुपस्थित

सवालों के दौरान 14 विधायक मौजूद नहीं रहे, जिसके कारण प्रश्नकाल केवल 11:55 बजे तक ही चल पाया। अनुपस्थित विधायकों में कमलेश्वर डोडियार, कुंवर सिंह टेकाम, राजेंद्र भारती, नरेंद्र सिंह कुशवाह समेत कई नाम शामिल रहे।

सिंगरौली में 6 लाख पेड़ों की कटाई का मुद्दा इस सत्र का सबसे विवादित विषय बन गया। कांग्रेस ने इसे आदिवासी विरोधी नीति बताते हुए सदन से वॉकआउट किया, जबकि सरकार ने नियमों के तहत कार्रवाई का दावा किया। लेकिन पेसा एक्ट, पांचवी अनुसूची और खदान आवंटन से जुड़े कई सवाल अब भी अनुत्तरित हैं। हाईकोर्ट द्वारा लिए गए संज्ञान के बाद यह मुद्दा आने वाले समय में और राजनीतिक रूप से गर्म होने की संभावना है।

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