क्या गुटबाजी से एमपी में फेल हुआ कांग्रेस का विधानसभा घेराव?

कांग्रेस के विधानसभा घेराव की विफलता ने प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी के नेतृत्व पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
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भोपाल। राजधानी भोपाल में विधानसभा के शीतकालीन सत्र के पहले दिन, सोमवार को कांग्रेस ने भाजपा की डॉ. मोहन सरकार की वादाखिलाफी और एक साल के कामकाज पर सवाल उठाने के लिए विधानसभा घेराव का आयोजन किया था। सरकार के एक वर्ष पूरे होने के मौके पर कांग्रेस ने प्रदेशभर के हजारों कार्यकर्ताओं को भोपाल बुलाकर विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया था। लेकिन यह प्रदर्शन अपेक्षा के विपरीत बेहद कमजोर साबित हुआ, जिससे यह सवाल खड़ा हो गया कि क्या कांग्रेस की गुटबाजी इस असफलता की वजह बनी?

कांग्रेस ने भाजपा सरकार पर बेरोजगारी, महंगाई, किसान समस्याओं और दलित-आदिवासियों के साथ हो रहे अन्याय के मुद्दों को लेकर हमला करने की योजना बनाई थी। पार्टी का दावा था कि हजारों कार्यकर्ता इस प्रदर्शन में शामिल होंगे और सरकार को घेरने का दबाव बनाएंगे।

प्रदर्शन क्यों रहा असफल?

गुटबाजी का असर: प्रदेश कांग्रेस में लंबे समय से आंतरिक गुटबाजी की खबरें सामने आती रही हैं। इस प्रदर्शन में भी यही समस्या दिखी। एक गुट ने पूरी तरह से प्रदर्शन में सक्रियता नहीं दिखाई, जबकि दूसरा गुट नेतृत्व को कमजोर करने की मंशा से पीछे खड़ा रहा।

कार्यकर्ताओं की कमी: प्रदर्शन में कांग्रेस ने जिन हजारों, लाखों कार्यकर्ताओं के आने का दावा किया था, उनमें से बड़ी संख्या अनुपस्थित रही। जमीनी स्तर पर संगठन की कमजोर पकड़ और गुटीय मतभेद के कारण कई जिलों से कार्यकर्ता पहुंचे ही नहीं।

नेतृत्व की कमी: प्रदर्शन के दौरान कांग्रेस के शीर्ष नेताओं का आपसी तालमेल भी कमजोर नजर आया। कई वरिष्ठ नेताओं ने इस प्रदर्शन में भाग नहीं लिया, जिससे नेतृत्व की कमजोरी साफ झलकी। मंच तो बड़ा बनाया गया लेकिन नेताओं में गुटबाजी की झलक साफ दिख रही थी।

द मूकनायक से बातचीत में प्रदर्शन में मौजूद एक कार्यकर्ता ने नाराजगी जताते हुए कहा, "हम यहां संघर्ष करने आए थे, लेकिन हमारे नेता ही मैदान में नहीं दिखे। अगर नेतृत्व खुद ही गंभीर नहीं है, तो हम क्या करें? अब हमें वापस लौटना होगा।" कार्यकर्ता की यह प्रतिक्रिया कांग्रेस के आंतरिक असंतोष और नेतृत्व की कमजोरियों को उजागर करती है। इससे स्पष्ट है कि जमीनी कार्यकर्ताओं में अपने नेताओं को लेकर निराशा बढ़ रही है, जो पार्टी के लिए चिंताजनक संकेत है।

पटवारी के नेतृत्व पर सवाल!

कांग्रेस के विधानसभा घेराव की विफलता ने प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी के नेतृत्व पर सवाल खड़े कर दिए हैं। प्रदर्शन के दौरान कांग्रेस न केवल कार्यकर्ताओं की भीड़ जुटाने में विफल रही, बल्कि सरकार पर दबाव बनाने के लिए ठोस रणनीति भी पेश नहीं कर सकी। गुटबाजी और कमजोर संगठनात्मक ढांचे ने प्रदर्शन की धार कुंद कर दी, जिससे भाजपा सरकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। पटवारी की नेतृत्व क्षमता और पार्टी की एकजुटता पर यह विफलता गंभीर सवाल खड़े करती है।

भाजपा ने इस स्थिति का पूरा फायदा उठाते हुए कांग्रेस को एक कमजोर विपक्ष के रूप में पेश किया। प्रदर्शन की कमजोर तैयारी और जनता के मुद्दों को प्रभावी ढंग से उठाने में असफलता ने भाजपा को राजनीतिक लाभ दिया। कांग्रेस को अपनी गुटबाजी से ऊपर उठकर नेतृत्व में स्थिरता और जमीनी पकड़ मजबूत करनी होगी, अन्यथा इस तरह की विफलताएं पार्टी की साख को और नुकसान पहुंचा सकती हैं।

भाग खड़े हुए कांग्रेस नेता: भाजपा

भाजपा के प्रवक्ता नरेंद्र सलूजा ने ट्वीट कर कांग्रेस के प्रदर्शन को "महाफ्लॉप" बताया। उन्होंने कहा कि जीतू पटवारी ने कार्यकर्ताओं को विधानसभा घेराव और प्रदर्शन के नाम पर भोपाल बुलाया, लेकिन प्रदर्शन के बजाय उन्हें चार घंटे भाषण सुनने को मिले।

भाषण खत्म होते ही मंच से कार्यक्रम समाप्ति की घोषणा कर दी गई और सभी बड़े नेता मंच के पीछे से भाग खड़े हुए। इसके बाद कार्यकर्ता नेताओं को ढूंढते नजर आए।

सलूजा ने दावा किया कि भीड़ कम देखकर और पुलिस की उपस्थिति से घबराकर जीतू पटवारी प्रदर्शन स्थल से भाग निकले। इससे कांग्रेस कार्यकर्ताओं में उनके खिलाफ गहरी नाराजगी है।

आगे की राह होगी कठिन!

विश्लेषकों का मानना है कि यदि कांग्रेस को आगामी चुनावों में भाजपा को चुनौती देनी है, तो उसे अपनी गुटबाजी को खत्म कर एकजुट रणनीति बनानी होगी। पार्टी को जमीनी स्तर पर संगठन को मजबूत करना होगा और कार्यकर्ताओं में भरोसा जगाना होगा।

कांग्रेस के प्रदर्शन की इस असफलता से यह साफ होता है कि केवल सरकार की आलोचना से काम नहीं चलेगा। पार्टी को अपने अंदरूनी मतभेद सुलझाकर जनता के मुद्दों पर फोकस करना होगा, वरना आने वाले चुनावों में इस तरह की विफलता उसकी साख पर और भी गहरा असर डाल सकती है।

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