
नई दिल्ली। मध्यप्रदेश के सिंगरौली जिले के धिरौली क्षेत्र में प्रस्तावित कोल ब्लॉक और उसके लिए बड़े पैमाने पर हो रही पेड़ों की कटाई को लेकर राजनीति तेज हो गई है। इस मुद्दे पर मध्यप्रदेश कांग्रेस के 10 वरिष्ठ नेताओं ने सोमवार को दिल्ली स्थित कांग्रेस मुख्यालय में संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस कर केंद्र और राज्य सरकार पर गंभीर आरोप लगाए। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि धिरौली कोल ब्लॉक के नाम पर आदिवासियों की जमीन, जंगल और जीवन छीनकर कॉरपोरेट हितों को प्राथमिकता दी जा रही है।
प्रेस कॉन्फ्रेंस में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार, प्रदेश प्रभारी हरीश चौधरी, पीसीसी अध्यक्ष जीतू पटवारी, आदिवासी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. विक्रांत भूरिया, सीईसी सदस्य ओंकार सिंह मरकाम, सीडब्ल्यूसी सदस्य कमलेश्वर पटेल, बाला बच्चन, हिना कावरे, पूर्व सांसद मीनाक्षी नटराजन और प्रदेश सह प्रभारी रणविजय सिंह लोचब मौजूद रहे।
नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने सबसे बड़ा सवाल कोयले की आर्थिक कीमत को लेकर उठाया। उन्होंने कहा कि कास्ट बेनिफिट एनालिसिस के मुताबिक जमीन और जंगल देने के बदले सरकार को कंपनी से सिर्फ 204 करोड़ रुपए मुआवजा मिला है, जबकि नेट जियोलॉजिकल सर्वे के अनुसार धिरौली ब्लॉक में करीब 558 मिलियन टन कोयला मौजूद है।
सिंघार ने गणना रखते हुए कहा- “अगर कोयले का भाव औसतन 2,000 रुपए प्रति टन भी मान लें, तो इसकी कीमत करीब 11 लाख करोड़ रुपए बैठती है। जबकि बाजार में कोयले का भाव 4 से 5 हजार रुपए प्रति मीट्रिक टन तक जाता है। ऐसे में सिर्फ 204 करोड़ में इतना बड़ा प्राकृतिक संसाधन देना क्या देश और प्रदेश की अर्थव्यवस्था के साथ अन्याय नहीं है?”
उन्होंने आरोप लगाया कि खदान, उसका संचालन और उत्पादन-तीनों अडाणी समूह के हाथ में हैं और पूरा तंत्र उनके पक्ष में खड़ा नजर आता है।
जंगल बनाम कॉरपोरेट मॉडल
उमंग सिंघार ने कहा कि कांग्रेस पार्टी इस पूरे मामले में लगातार आदिवासियों की आवाज उठा रही है, लेकिन वर्षों से जंगलों में रहने वाले लोगों को न्याय नहीं मिल पा रहा।
उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “एक पेड़ मां के नाम” अभियान पर तंज कसते हुए कहा, “दिल्ली में पेड़ लगाने की बात होती है और सिंगरौली-छत्तीसगढ़ में हजारों-लाखों पेड़ अडाणी के नाम काट दिए जाते हैं। हसदेव के जंगलों में देश ने पहले ही यह मॉडल देख लिया है, अब वही सिंगरौली में दोहराया जा रहा है।”
सिंघार ने बताया कि पहले अडाणी समूह को सुलियारी कोल ब्लॉक मिला, फिर उससे सटे धिरौली ब्लॉक का आवंटन कर दिया गया। खास बात यह है कि सुलियारी ब्लॉक, जहां 90 प्रतिशत क्षेत्र वन भूमि से जुड़ा है, वहां अंडरग्राउंड माइनिंग की अनुमति दी गई, जबकि धिरौली में ओपन कास्ट माइनिंग की मंजूरी दी गई।
उन्होंने सवाल उठाया, “एक तरफ अंडरग्राउंड माइनिंग से जंगल बचाने की बात होती है और दूसरी तरफ खुले में खनन कर जंगल तबाह किए जाते हैं। 80 साल के खनन प्लान को 40 साल अंडरग्राउंड और 40 साल ओपन कास्ट में बांट दिया गया है। क्या इसका मतलब यह नहीं कि आने वाले समय में आदिवासियों और जंगल पर निर्भर लोगों को पूरी तरह बाहर कर दिया जाएगा?”
2672 हेक्टेयर में फैली खदान, 6 लाख पेड़ कटाई का आरोप
कांग्रेस नेताओं ने बताया कि 3 मार्च 2021 को केंद्र सरकार ने धिरौली कोल ब्लॉक को मंजूरी दी। इसके बाद प्रशासन ने तेजी से प्रक्रिया आगे बढ़ाई। कुल खदान क्षेत्र 2672 हेक्टेयर में फैला है, जिसमें 544 हेक्टेयर निजी भूमि, 680 हेक्टेयर सरकारी भूमि, और लगभग 1400 हेक्टेयर वन भूमि शामिल है।
उमंग सिंघार के मुताबिक, लगभग 6 लाख पेड़ काटे जा रहे हैं। कंपनी की ओर से दूसरे जिलों में पेड़ लगाने की बात कही जा रही है, लेकिन कांग्रेस का सवाल है कि जब पेड़ सिंगरौली में कट रहे हैं तो वृक्षारोपण भी वहीं क्यों नहीं किया जा रहा।
उन्होंने कहा- “दिल्ली के बाद सिंगरौली देश का दूसरा सबसे प्रदूषित शहर है। यहां की आबोहवा सुधारने के बजाय और ज्यादा प्रदूषण थोपा जा रहा है। सिंगरौली में पेड़ काटकर शिवपुरी-गुना में पेड़ लगाने की बात समझ से परे है।”
बच्चों के खाने में कोयले के कण
कांग्रेस की फैक्ट फाइंडिंग टीम के दौरे का जिक्र करते हुए सिंघार ने स्थानीय हालात की तस्वीर भी पेश की। उन्होंने कहा- “हम जब गांवों में गए तो स्कूलों में बच्चों ने बताया कि खाना खाते समय कोयले के कण खाने में गिर जाते हैं। कपड़े काले हो रहे हैं। सड़कों पर अडाणी के ट्रक खड़े रहते हैं, जिससे बारात तक समय पर नहीं पहुंच पाती। मेडिकल इमरजेंसी में मरीज अस्पताल नहीं पहुंच पाते।”
एक पेड़ मां के नाम, पूरा जंगल अडाणी के नाम- कांग्रेस
सीडब्ल्यूसी सदस्य कमलेश्वर पटेल ने कहा कि धिरौली कोल ब्लॉक के लिए लाखों पेड़ मनमाने तरीके से काटे जा रहे हैं और इसके लिए करीब 2,000 पुलिसकर्मियों की तैनाती की गई है। उन्होंने आरोप लगाया कि वर्षों से जमीन पर काबिज आदिवासी परिवारों को बिना उचित पुनर्वास और मुआवजे के बेदखल किया जा रहा है।
पटेल ने बताया कि एआईसीसी ने इस मामले में 12 नेताओं की फैक्ट फाइंडिंग कमेटी बनाई थी। जब यह टीम मौके पर पहुंची तो जनप्रतिनिधियों को भी जंगल के अंदर जाने से रोका गया।
“हमने कहा कि हम 12 लोग हैं, हमें अंदर जाने दीजिए, लेकिन पुलिस ने रोक दिया। स्थानीय लोगों ने जंगल बचाने के लिए आंदोलन किया तो उनके खिलाफ केस दर्ज कर दिए गए।”
अडाणी के लिए अलग कानून?
कमलेश्वर पटेल ने इसे संवैधानिक मूल्यों से जोड़ते हुए कहा- “एक अडाणी के लिए 2672 हेक्टेयर जमीन आवंटित कर दी जाती है, लेकिन अगर आदिवासी भाई 5–10 डेसीमिल जमीन पर काबिज हो जाएं तो उन्हें जेल भेज दिया जाता है। देश में दो तरह का संविधान चल रहा है- एक अडाणी के लिए और दूसरा आम लोगों के लिए।”
उन्होंने अनुच्छेद 19 (आवागमन की स्वतंत्रता) का जिक्र करते हुए कहा कि चुने हुए जनप्रतिनिधियों को भी अपने ही राज्य में जाने से रोका गया, जो लोकतंत्र के लिए खतरनाक संकेत है।
कांग्रेस का एलान, संघर्ष जारी रहेगा
कांग्रेस नेताओं ने साफ किया कि धिरौली कोल ब्लॉक का मुद्दा सिर्फ पर्यावरण का नहीं, बल्कि आदिवासी अधिकारों, संविधान और आर्थिक न्याय का सवाल है। कांग्रेस ने चेतावनी दी कि अगर सरकार ने इस परियोजना की समीक्षा नहीं की और स्थानीय लोगों को न्याय नहीं मिला, तो पार्टी सड़क से संसद तक संघर्ष तेज करेगी।
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