MP के रीवा में संजय गांधी अस्पताल में आग, नवजात जला: फायर एनओसी के बिना चल रहे अस्पतालों पर फिर उठे सवाल!

घटना के बाद स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन में हड़कंप मचा हुआ है। आग लगने के कारणों की जांच के आदेश दे दिए गए हैं। फायर सेफ्टी, अस्पताल प्रबंधन और प्रशासनिक लापरवाही, इन सभी बिंदुओं पर जांच की बात कही जा रही है।
MP के रीवा में संजय गांधी अस्पताल में आग, नवजात जला
MP के रीवा में संजय गांधी अस्पताल में आग, नवजात जला
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भोपाल। मध्य प्रदेश के रीवा स्थित संजय गांधी अस्पताल में रविवार दोपहर करीब एक बजे उस वक्त हड़कंप मच गया, जब गायनी वार्ड के ऑपरेशन थिएटर में अचानक आग लग गई। इस दर्दनाक घटना में एक नवजात बच्चे का शव आग की चपेट में आकर गंभीर रूप से झुलस गया। मामला और भी संवेदनशील तब हो गया, जब परिजनों ने आरोप लगाया कि अस्पताल प्रशासन ने इस घटना को पूरे दिन छिपाए रखा और देर रात करीब 12 बजे जाकर नवजात के जलने की पुष्टि की।

घटना के बाद अस्पताल परिसर में अफरा-तफरी का माहौल रहा। आग लगते ही मरीजों और उनके परिजनों में दहशत फैल गई। अस्पताल स्टाफ ने प्राथमिकता के तौर पर वार्डों से मरीजों को सुरक्षित बाहर निकालने का प्रयास किया, लेकिन इसी बीच ऑपरेशन थिएटर में रखा नवजात का शव वहीं छूट गया, जो आग की चपेट में आकर जल गया।

अस्पताल प्रशासन का पक्ष

मामले में अस्पताल अधीक्षक राहुल मिश्रा ने कहा कि कंचन साकेत नाम की महिला का ऑपरेशन किया गया था, लेकिन नवजात बच्चा ऑपरेशन के दौरान ही मृत पैदा हुआ था। उन्होंने बताया कि उसी समय ओपीडी क्षेत्र में आग लग गई, जिससे पूरे अस्पताल में भगदड़ जैसी स्थिति बन गई। मरीजों की जान बचाना प्राथमिकता थी, इसी दौरान ऑपरेशन थिएटर में रखा नवजात का शव बाहर नहीं निकाला जा सका और आग से झुलस गया।

हालांकि प्रशासन के इस पक्ष पर परिजन सवाल उठा रहे हैं। उनका कहना है कि यदि बच्चा मृत पैदा हुआ था, तो इसकी स्पष्ट जानकारी तत्काल क्यों नहीं दी गई और शव को क्यों छिपाकर ले जाया गया।

दिनभर छिपाई गई सच्चाई

जानकारी के अनुसार, गोविंदगढ़ के गहरा गांव की निवासी कंचन साकेत को प्रसव के लिए संजय गांधी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। परिजनों का आरोप है कि आग लगने के बाद अस्पताल प्रशासन ने अपनी लापरवाही छिपाने की कोशिश की। उनका कहना है कि नवजात के शव को चादर में लपेटकर ले जाया गया और पूरे दिन उन्हें कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई। जब मामला उच्च स्तर तक पहुंचा और दबाव बढ़ा, तब देर रात जाकर नवजात के शव के जलने की बात स्वीकार की गई।

परिजनों का कहना है कि यह केवल एक हादसा नहीं, बल्कि गंभीर प्रशासनिक लापरवाही का मामला है, जिसमें सच्चाई को दबाने की कोशिश की गई।

डिप्टी सीएम ने कहा- जांच होगी

मामले में उपमुख्यमंत्री (स्वास्थ्य मंत्रालय) राजेंद्र शुक्ला ने कहा कि उन्हें अस्पताल प्रशासन की ओर से केवल आग लगने की सूचना दी गई थी। नवजात के शव के जलने की जानकारी उन्हें नहीं दी गई। उन्होंने कहा कि पूरे प्रकरण की उच्चस्तरीय जांच कराई जाएगी और जो भी दोषी पाया जाएगा, उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।

हालांकि सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या केवल जांच के आदेश ही पर्याप्त हैं, या फिर जिम्मेदार अधिकारियों और प्रबंधन पर ठोस कार्रवाई भी होगी।

फायर एनओसी न होना बना बड़ा सवाल

इस पूरे मामले में सबसे गंभीर और चौंकाने वाली बात यह है कि संजय गांधी अस्पताल के पास फायर एनओसी (नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट) नहीं है। बताया जा रहा है कि इस तथ्य की जानकारी डिप्टी सीएम तक को थी, इसके बावजूद समय रहते कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। अब इस हादसे के बाद अस्पताल प्रबंधन और स्वास्थ्य विभाग की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं।

रीवा के तीन बड़े अस्पताल बिना फायर एनओसी

यह घटना केवल संजय गांधी अस्पताल तक सीमित नहीं है। जानकारी के मुताबिक, रीवा के तीन बड़े अस्पताल संजय गांधी अस्पताल, सुपर स्पेशलिटी अस्पताल और गांधी स्मारक अस्पताल तीनों के पास फिलहाल फायर एनओसी नहीं है। ये अस्पताल नगर निगम के फायर सेफ्टी मानकों को पूरा नहीं करते, इसके बावजूद यहां रोजाना हजारों मरीजों का इलाज किया जाता है।

नगर निगम आयुक्त सौरभ सोनवड़े पहले ही इस मुद्दे पर स्पष्ट बयान दे चुके हैं। उनका कहना है कि निगम की ओर से अस्पताल प्रबंधन को कई बार नोटिस जारी किए गए, लेकिन अब तक फायर एनओसी के मानकों को पूरा नहीं किया गया। उन्होंने यह भी कहा कि चेतावनी दी जा चुकी है, इसलिए आगजनी की स्थिति में नगर निगम की जिम्मेदारी नहीं होगी।

जांच के आदेश, लेकिन कार्रवाई कब?

घटना के बाद स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन में हड़कंप मचा हुआ है। आग लगने के कारणों की जांच के आदेश दे दिए गए हैं। फायर सेफ्टी, अस्पताल प्रबंधन और प्रशासनिक लापरवाही, इन सभी बिंदुओं पर जांच की बात कही जा रही है।

लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या यह मामला भी सिर्फ जांच और रिपोर्ट तक सीमित रह जाएगा, या फिर उन अधिकारियों और व्यवस्थाओं पर सख्त कार्रवाई होगी, जिनकी लापरवाही की कीमत एक नवजात को चुकानी पड़ी। रीवा की यह घटना प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में सुरक्षा व्यवस्था और जवाबदेही की सच्चाई को एक बार फिर उजागर करती है।

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