MP जहरीले कफ सिरप से अबतक 19 मासूमों की मौत: दिल्ली में मध्यप्रदेश और राजस्थान के नेता प्रतिपक्ष ने BJP सरकार पर लगाया लापरवाही का आरोप!
नई दिल्ली। राजधानी दिल्ली स्थित अखिल भारतीय कांग्रेस समिति (AICC) मुख्यालय में सोमवार को मध्यप्रदेश और राजस्थान के नेता प्रतिपक्षों ने जहरीले कफ सिरप से हुई मासूम बच्चों की मौतों पर संयुक्त प्रेस वार्ता की। इस दौरान मध्यप्रदेश के नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार और राजस्थान के नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने दोनों राज्यों में बच्चों की मौत को सरकार की घोर लापरवाही और असंवेदनशीलता बताया।
उमंग सिंघार ने कहा कि मध्यप्रदेश में सिर्फ आधे महीने में 16 मासूम बच्चों की मौत हो चुकी है- जिनमें से 14 मौतें छिंदवाड़ा और 2 बैतूल में दर्ज की गई हैं। इसके अलावा 7 अन्य बच्चे नागपुर के अस्पतालों में जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं। उन्होंने कहा कि सरकार इस पूरे घटनाक्रम को छिपाने की कोशिश कर रही है और अब जब मामला राष्ट्रीय सुर्खियों में आया तो मुख्यमंत्री मोहन यादव को इसकी सुध आई।
सिंघार ने कहा कि इस त्रासदी के पीछे सरकार की गंभीर लापरवाही, स्वास्थ्य विभाग की नाकामी और मुख्यमंत्री की उदासीनता जिम्मेदार है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री तब तक पीड़ित परिवारों से मिलने नहीं गए जब तक मामला मीडिया में नहीं आया। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या सिर्फ 4 लाख का मुआवज़ा देकर सरकार अपनी जवाबदेही से मुक्त हो सकती है? “यह केवल आर्थिक नहीं, नैतिक ज़िम्मेदारी का मामला है,”
4 सितंबर को हुई थी पहली मौत
घटनाक्रम के अनुसार, 24 अगस्त 2025 को पहला बच्चा भर्ती हुआ और 4 सितंबर को पहली मौत हुई, लेकिन इसके बाद भी न तो कोई सार्वजनिक चेतावनी जारी की गई, न ही दवा की बिक्री पर रोक लगाई गई। कांग्रेस नेताओं ने कहा कि अगर समय रहते जांच होती तो इतनी बड़ी संख्या में मौतें टाली जा सकती थीं।
तमिलनाडु की जांच रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि Sresan Pharmaceutical द्वारा निर्मित Coldrif Syrup में 48.6 प्रतिशत Diethylene Glycol पाया गया, जो ब्रेक फ्लुइड और पेंट्स में इस्तेमाल होने वाला जहरीला रसायन है और किडनी फेल्योर का कारण बनता है। तमिलनाडु की लैब ने इसे Adulterated & Poisonous घोषित किया था, जिसके बाद सिरप पर प्रतिबंध लगाया गया। परंतु मध्यप्रदेश सरकार और ICMR की रिपोर्ट में 9 सैंपल साफ बताए गए और बाकी 10 सैंपलों की रिपोर्ट अभी लंबित है।
सिंघार ने कहा कि इस मामले में स्वास्थ्य विभाग ने शुरुआत में मौतों का कारण गंदा पानी, मच्छर और चूहे बताया, जबकि सभी जांच रिपोर्ट निगेटिव आईं। यह सरकार की दिशा और प्राथमिकता दोनों पर सवाल खड़ा करता है। जिन परिवारों ने अपने बच्चों को दवा पिलाई थी, उन्हें यह नहीं पता था कि वो दवा नहीं, जहर दे रहे हैं,”
नेता प्रतिपक्ष ने यह भी सवाल उठाया कि क्या छिंदवाड़ा जैसे गरीब और ग्रामीण इलाके को दवा परीक्षण के लिए पायलट जिला बना दिया गया था? उन्होंने कहा कि एक ही जिले में 14 मौतें होना और बाकी जगह कोई असर न दिखना यह बताता है कि दवा का वितरण या परीक्षण केवल वहीं हुआ।
नशे के रूप में हो रहा दवाओं का उपयोग
सिंघार ने यह भी कहा कि मध्यप्रदेश में कोडीन युक्त खांसी की दवाओं का बड़े पैमाने पर नशे के रूप में उपयोग हो रहा है। पिछले तीन वर्षों में ऐसी दवाओं की लाखों बोतलें जब्त की गई हैं। इंदौर, सागर, भोपाल, रीवा और सतना जैसे शहरों में बड़ी बरामदगियाँ हुई हैं, जिनमें एक मंत्री के रिश्तेदार तक गिरफ़्तार हुए। उन्होंने कहा कि “यह प्रदेश ड्रग-फ्री नहीं, बल्कि ड्रग-प्रोटेक्टेड बन चुका है। नशे का नेटवर्क पुलिस की नाक के नीचे और राजनीतिक संरक्षण में फल-फूल रहा है।”
सिंघार ने आगे कहा कि यह त्रासदी राज्य की बिगड़ती स्वास्थ्य व्यवस्था और घटती जवाबदेही का प्रतीक है। उन्होंने याद दिलाया कि हाल ही में इंदौर के महाराजा यशवंतराव अस्पताल में चूहों ने दो नवजात बच्चियों को काटकर मार डाला था, और उच्च न्यायालय को सरकार से जवाब मांगना पड़ा।
NCRB के आंकड़े
उन्होंने बताया कि NCRB की रिपोर्ट (2023) के अनुसार, मध्यप्रदेश में बच्चों के खिलाफ अपराधों के सबसे ज़्यादा 22,393 मामले दर्ज हुए हैं, जो देश में सबसे अधिक हैं। पिछले चार वर्षों में राज्य से 59,000 से अधिक बच्चे लापता हुए हैं। सिंघार ने कहा कि सरकार प्रचार-प्रसार पर प्रतिदिन 1.5 करोड़ खर्च करती है, लेकिन एक कुपोषित बच्चे पर 8–12 रुपये से अधिक खर्च नहीं करती। उन्होंने सवाल उठाया कि “क्या सरकार के लिए प्रचार खर्च बच्चों की जान से ज्यादा महत्वपूर्ण है?”
अंत में उमंग सिंघार ने कहा कि मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार ने मासूम बच्चों की जानों पर लापरवाही कर प्रदेश को कब्रिस्तान बना दिया है। उन्होंने मांग की कि दोषी अधिकारियों और दवा कंपनियों पर सख्त कार्रवाई हो, प्रभावित परिवारों को पर्याप्त मुआवज़ा दिया जाए, जहरीली दवाओं की बिक्री पर तुरंत प्रतिबंध लगे और बच्चों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाए।
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