भोपाल। मध्यप्रदेश में 27% ओबीसी आरक्षण का मुद्दा एक बार फिर गर्मा गया है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में 22 सितंबर से होने वाली सुनवाई से पहले सरकार और ओबीसी संगठनों ने मिलकर एक बड़ी रणनीति तैयार करना शुरू कर दिया है। शनिवार को राजधानी भोपाल में इस मुद्दे पर दो अहम बैठकें हुईं, एक बैठक मुख्यमंत्री निवास पर हुई, जबकि दूसरी बैठक बेहद गोपनीय तरीके से एक निजी होटल में बुलाई गई।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने शनिवार को ओबीसी महासभा के पदाधिकारियों और सरकारी अफसरों के साथ विस्तृत चर्चा की। बैठक में तय हुआ कि सरकार और समाज मिलकर सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष मजबूती से रखेंगे।
वर्ष 2019 से रोके गए 13% पदों के होल्ड को प्राथमिकता से हटाने और इन्हें ओबीसी वर्ग से भरने पर भी सहमति बनी। मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया कि सरकार 27% आरक्षण सुनिश्चित करने की पूरी मंशा रखती है और इसके लिए हर स्तर पर ओबीसी समाज के साथ खड़ी है।
बैठक में यह भी तय किया गया कि ओबीसी महासभा दो वरिष्ठ अधिवक्ताओं के नाम सरकार को सुझाएगी, ताकि सुप्रीम कोर्ट में पक्ष रखने के लिए उन्हें नियुक्त किया जा सके। महासभा ने एक नाम, पूर्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल पी. विल्सन, का प्रस्ताव रखा है, जबकि दूसरा नाम जल्दी ही बताया जाएगा।
इसके अलावा महासभा ने निर्णय लिया कि वे एक लिखित अभिमत (Representation) एडवोकेट जनरल को सौंपेंगे। महाधिवक्ता प्रशांत सिंह उस अभिमत का अध्ययन करके सरकार को अपनी कानूनी राय देंगे, जिसके आधार पर 13% पदों से होल्ड हटाने की प्रक्रिया आगे बढ़ सकेगी।
सीएम बैठक से पहले ओबीसी आरक्षण पर एक और महत्वपूर्ण बैठक भोपाल के एक निजी होटल में हुई। इस बैठक में महाधिवक्ता प्रशांत सिंह, ओबीसी महासभा के पदाधिकारी और वकील शामिल हुए।
सूत्रों के अनुसार, इस बैठक को बेहद गोपनीय रखा गया। बैठक में शामिल सभी लोगों के मोबाइल बाहर रखवा लिए गए और मीडिया कवरेज की अनुमति नहीं दी गई। करीब दो घंटे चली इस बैठक में 13% होल्ड पदों का मुद्दा सबसे ज्यादा छाया रहा।
ओबीसी महासभा के पदाधिकारियों ने स्पष्ट कहा कि अब आपस में विवाद करने के बजाय सुप्रीम कोर्ट में सामूहिक रूप से एकजुट होकर पक्ष रखना जरूरी है।
इससे पहले मुख्यमंत्री मोहन यादव ने ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर एक सर्वदलीय बैठक भी बुलाई थी। अब वे सीधे तौर पर आरक्षण की लड़ाई लड़ रहे संगठनों से मिल रहे हैं। सरकार का मानना है कि यदि सुप्रीम कोर्ट में एकजुट होकर पक्ष रखा जाए तो 27% आरक्षण लागू करने का रास्ता साफ हो सकता है। वहीं, 13% होल्ड पदों से रोक हटाना ओबीसी वर्ग के लिए तत्काल राहत साबित होगा।
22 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई को लेकर सरकार और ओबीसी महासभा दोनों ही गंभीर हैं। सरकार चाहती है कि समाज और राज्य का पक्ष एक स्वर में रखा जाए, ताकि आरक्षण पर कोई भ्रम या विभाजन का संदेश न जाए।
मध्य प्रदेश में ओबीसी आरक्षण को 14% से बढ़ाकर 27% करने का फैसला वर्ष 2019 में हुआ था। लेकिन इस पर हाईकोर्ट में चुनौती दी गई, जिसके बाद 13% अतिरिक्त आरक्षण को लेकर रोक लगा दी गई। नतीजतन, सरकारी भर्तियों और पदोन्नति में केवल 14% ही लागू रहा और शेष 13% पद होल्ड पर रख दिए गए। इस वजह से बड़ी संख्या में पद खाली पड़े रहे और ओबीसी वर्ग के युवाओं को आरक्षण का पूरा लाभ नहीं मिल सका।
अब जब सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई तय है, तो सरकार और समाज दोनों ही चाहते हैं कि 27% आरक्षण का रास्ता साफ हो। इस विवाद की जड़ न्यायिक आपत्तियों और संवैधानिक प्रावधानों की व्याख्या से जुड़ी है। अदालत में यह सवाल अहम है कि क्या 50% की आरक्षण सीमा पार किए बिना ओबीसी वर्ग को उनका पूरा 27% कोटा दिया जा सकता है। इसी पर अंतिम निर्णय निर्भर करेगा और यही कारण है कि मामला राजनीतिक और सामाजिक दृष्टि से बेहद संवेदनशील बना हुआ है।
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