भोपाल। मध्य प्रदेश में पदोन्नति में आरक्षण का मुद्दा एक बार फिर हाईकोर्ट की चौखट पर पहुंचा। मंगलवार को हुई सुनवाई में राज्य सरकार ने नई और पुरानी प्रमोशन पॉलिसी के बीच अंतर बताते हुए अपना पक्ष रखा। लेकिन याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि सरकार ने क्रीमी लेयर और क्वांटिफायबल डेटा जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं पर कोई ठोस जवाब नहीं दिया। उन्होंने अदालत से कहा कि सरकार का उत्तर अधूरा है, इसलिए उन्हें समय दिया जाए ताकि वे सरकार के जवाब का गहन अध्ययन कर अपनी दलीलें रख सकें। अदालत ने याचिकाकर्ताओं की मांग को स्वीकार करते हुए अगली सुनवाई 16 सितंबर तय कर दी है।
राज्य सरकार ने इस दौरान अंतरिम राहत की मांग करते हुए कहा कि नई प्रमोशन पॉलिसी को लागू करने की अनुमति दी जाए। लेकिन हाईकोर्ट ने साफ कर दिया कि अंतिम आदेश आने तक नई पॉलिसी लागू नहीं की जाएगी। सरकार से अदालत ने लिखित अंडरटेकिंग ली है, जिसके तहत सरकार ने भरोसा दिया कि कोर्ट के अंतिम फैसले से पहले नई पॉलिसी लागू नहीं होगी। इसका सीधा मतलब यह है कि फिलहाल प्रदेश में प्रमोशन की प्रक्रिया पुराने नियमों के तहत ही रोकी रहेगी।
गौरतलब है कि मुख्यमंत्री मोहन यादव की कैबिनेट ने 17 जून 2025 को नए प्रमोशन नियमों को मंजूरी दी थी और 19 जून को अधिसूचना जारी कर इन्हें लागू कर दिया था। लेकिन इसी बीच इस नीति को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि नई पॉलिसी पुराने नियमों का ही नया रूप है, जिसे अदालत पहले ही असंवैधानिक करार दे चुकी है। इसके बावजूद सरकार ने नए नाम से वही नीति फिर लागू कर दी, जबकि इससे जुड़ा मामला पहले से ही सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।
इस मामले में भोपाल निवासी डॉ. स्वाति तिवारी सहित कई याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि 2002 के प्रमोशन नियमों को आरबी राय केस में हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था। इसके खिलाफ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर की थी, जो अब तक लंबित है। याचिकाकर्ताओं का सवाल है कि जब मामला सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है और यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया गया है, तो फिर सरकार ने नए सिरे से वही नियम क्यों लागू किए।
सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता सी.एस. वैद्यनाथन पेश हुए। उन्होंने अदालत को बताया कि पहले ही मौखिक अंडरटेकिंग दी जा चुकी है कि फिलहाल नई पॉलिसी के तहत प्रमोशन नहीं होंगे। इसी वजह से उन्होंने सुनवाई को आगे बढ़ाने की मांग की। अदालत ने कहा कि सरकार को जवाब पहले ही दाखिल करना चाहिए था, लेकिन इसे अंतिम समय पर पेश किया गया, इसलिए याचिकाकर्ताओं को इसका अध्ययन करने के लिए समय दिया जा रहा है।
याचिकाकर्ताओं के वकील अमोल श्रीवास्तव ने कोर्ट को बताया कि सरकार ने अपने जवाब में कई अहम बिंदुओं पर कोई स्पष्टता नहीं दी है। इनमें क्रीमी लेयर का प्रावधान, बैकलॉग वैकेंसी के लिए समय सीमा तय करना और आरक्षण से जुड़े क्वांटिफायबल डेटा की अनुपलब्धता जैसे मुद्दे शामिल हैं। उन्होंने तर्क दिया कि जब हाईकोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है, तब तक किसी भी तरह की पदोन्नति प्रक्रिया शुरू नहीं की जा सकती।
इस मामले का सबसे बड़ा पहलू यह है कि प्रदेश में लंबे समय से पदोन्नति में आरक्षण पर रोक लगी हुई है। कर्मचारी संगठनों का कहना है कि इससे बड़ी संख्या में पद खाली पड़े हैं और प्रमोशन रुकने से सेवा की गुणवत्ता भी प्रभावित हो रही है। वहीं, याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि सरकार बार-बार पुराने नियमों को नए नाम से लागू कर अदालत के आदेश की अवमानना कर रही है। इस कारण कर्मचारियों के बीच असमंजस की स्थिति बनी हुई है।
मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा और न्यायमूर्ति विनय सराफ की खंडपीठ ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अगली सुनवाई की तारीख 16 सितंबर तय की है। इस दिन अंतरिम राहत और नई पॉलिसी की वैधता पर विस्तृत बहस होगी। तब तक सरकार नई प्रमोशन पॉलिसी लागू नहीं कर सकेगी और प्रदेश में यथास्थिति बनी रहेगी। यह सुनवाई न केवल कर्मचारियों बल्कि प्रदेश की राजनीति और प्रशासन के लिए भी अहम मानी जा रही है।
द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.