भोपाल। मध्य प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 27 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने का मामला अब अंतिम चरण में पहुंचने वाला है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर नियमित सुनवाई तय कर दी है, जिसकी शुरुआत 24 सितंबर से होगी। राज्य सरकार ने इस सुनवाई को लेकर पूरी तैयारी कर ली है और सालिसिटर जनरल तुषार मेहता अदालत में सरकार का पक्ष रखेंगे।
ओबीसी वर्ग की जनसंख्या राज्य की आबादी का बड़ा हिस्सा है। यही कारण है कि लंबे समय ओबीसी वर्ग आरक्षण वृद्धि की मांग करता आ रहा है। उनका कहना है कि यह सिर्फ राजनीतिक वादों का मुद्दा नहीं है, बल्कि उनका संवैधानिक अधिकार है। ओबीसी महासभा सहित कई संगठन लगातार प्रदर्शन और ज्ञापन देकर सरकार व अदालत से मांग करते रहे हैं कि उन्हें उनका हक मिले।
ओबीसी महासभा की कोर कमेटी के सदस्य एडवोकेट धर्मेंद्र कुशवाहा ने द मूकनायक से बातचीत में कहा कि अब जबकि सुप्रीम कोर्ट में नियमित सुनवाई तय हो गई है, तो समाज को भरोसा है कि न्याय जल्द मिलेगा। उन्होंने कहा कि लंबे समय से युवाओं की नियुक्तियाँ रुकी पड़ी हैं और हजारों उम्मीदवार प्रभावित हो रहे हैं।
यह विवाद वर्ष 2019 से शुरू हुआ, जब राज्य सरकार ने ओबीसी आरक्षण को 14% से बढ़ाकर 27% करने का निर्णय लिया। इस निर्णय के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिकाएँ दायर हुईं। अदालत ने सुनवाई के दौरान अतिरिक्त 13% आरक्षण पर रोक लगा दी। परिणामस्वरूप सरकारी भर्तियों और पदोन्नति में केवल 14% ही लागू रहा।
इस रोक के कारण भर्ती प्रक्रिया अधर में लटक गई। 13% अतिरिक्त पद होल्ड पर रख दिए गए, जिससे बड़ी संख्या में रिक्तियां भर नहीं सकीं। कई प्रतियोगी परीक्षाओं और चयन प्रक्रियाओं में ओबीसी वर्ग के उम्मीदवारों को पूरा लाभ नहीं मिल पाया।
सुनवाई से पहले शनिवार को भोपाल में एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित हुई। इसमें भारत के पूर्व अतिरिक्त सालिसिटर जनरल पी. विल्सन ने राज्य सरकार के अतिरिक्त महाधिवक्ताओं और अधिवक्ताओं के साथ करीब ढाई घंटे तक चर्चा की।
बैठक में दो प्रमुख मुद्दों पर विचार हुआ, की अदालत से यह अनुमति लेने की कोशिश कि जिन 13% पदों को रोककर रखा गया है, उन पर भर्ती प्रक्रिया शुरू हो। दूसरा 27% ओबीसी आरक्षण को पूरी तरह लागू करने के लिए ठोस और मजबूत दलीलें तैयार करना।
यह मामला सिर्फ एक सरकारी आदेश या निर्णय भर नहीं है, बल्कि यह संवैधानिक प्रावधानों से जुड़ा है। देश में आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट का ‘इंद्रा साहनी’ (मंडल कमीशन) केस ऐतिहासिक है, जिसमें कुल आरक्षण की अधिकतम सीमा 50% तय की गई थी।
मध्यप्रदेश में 27% ओबीसी आरक्षण लागू करने पर कुल आरक्षण इस सीमा को पार कर जाएगा। यही सबसे बड़ा कानूनी पेच है। अब सुप्रीम कोर्ट को यह तय करना होगा कि क्या इस सीमा से आगे बढ़कर भी आरक्षण लागू किया जा सकता है।
ओबीसी आरक्षण का मुद्दा प्रदेश की राजनीति का भी अहम हिस्सा बन गया है। सरकार बार-बार यह कह चुकी है कि वह ओबीसी समाज को 27% आरक्षण देने के लिए प्रतिबद्ध है। मुख्यमंत्री और अन्य मंत्री सार्वजनिक मंचों से इस मुद्दे पर समर्थन जताते रहे हैं।
वहीं विपक्ष का आरोप है कि सरकार अदालत में मजबूती से पक्ष नहीं रखती और ओबीसी समाज को सिर्फ आश्वासन देकर टालती रही है। हाल ही में हुई एक सर्वदलीय बैठक में भी ओबीसी आरक्षण पर चर्चा हुई और कई नेताओं ने 27% आरक्षण के पक्ष में समर्थन जताया।
अब सारी निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हैं। अदालत के फैसले पर ही यह निर्भर करेगा कि ओबीसी समाज को उनका पूरा 27% आरक्षण मिलेगा या नहीं। अगर अदालत ने 27% लागू करने की इजाजत दे दी तो लंबे समय से रुकी हुई सरकारी भर्तियों का रास्ता खुल जाएगा और हजारों उम्मीदवारों को राहत मिलेगी।
2019: राज्य सरकार ने ओबीसी आरक्षण 14% से बढ़ाकर 27% किया।
हाईकोर्ट का आदेश: अतिरिक्त 13% आरक्षण पर रोक लगा दी गई।
वर्तमान स्थिति: भर्तियों और पदोन्नति में केवल 14% लागू, शेष 13% पद रोके गए।
समस्या: हजारों पद खाली और उम्मीदवारों को पूरा लाभ नहीं मिल पा रहा।
अब उम्मीद: सुप्रीम कोर्ट 24 सितंबर से नियमित सुनवाई करेगा।
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