गुवाहाटी/नई दिल्ली। असम में बीते दो महीनों के दौरान हुए बड़े पैमाने पर बेदखली अभियानों की वास्तविकता उजागर करने के लिए 23 और 24 अगस्त 2025 को एक उच्चस्तरीय जाँच दल ने गुवाहाटी, ग्वालपाड़ा और कामरूप जिलों का दौरा किया। इस टीम में वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर, सुप्रसिद्ध अधिवक्ता प्रशांत भूषण, राज्यसभा सांसद और पूर्व प्रसार भारती सीईओ जवाहर सरकार, पूर्व योजना आयोग सदस्य सैयदा हमीद, पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह, शोधकर्ता ऋतुंब्रा मनुवी और फ़वाज़ शाहीन शामिल थे।
जाँच का उद्देश्य उन परिवारों से मिलना था जिन्हें हाल ही में राज्य सरकार की ओर से चलाए गए बेदखली अभियानों में घरों से उजाड़ दिया गया है।
दल ने बताया कि ग्वालपाड़ा ज़िले में धारा 144 लागू है, जिसके चलते पाँच से अधिक लोगों के जुटने पर रोक है। स्थानीय सूत्रों ने टीम को बताया कि ज़िले में प्रवेश करने वाले वाहनों की तलाशी ली जा रही है और प्रशासन प्रभावित इलाकों में जाने की इजाज़त नहीं दे रहा।
हालाँकि टीम को ज़िले में प्रवेश की अनुमति मिली, लेकिन प्रशासन ने साफ़ कहा कि बेदखली स्थलों या राहत शिविरों का दौरा नहीं करने दिया जाएगा। इससे यह संकेत मिला कि प्रशासन ने सुनियोजित ढंग से भय और दबाव का माहौल बनाकर प्रभावित परिवारों से स्वतंत्र मुलाक़ात रोकने की कोशिश की।
दल ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि पिछले दो महीनों में तीन बड़े बेदखली अभियान चलाए गए—
लगभग 667 परिवारों के घर उजाड़े गए। [स्रोत]
स्कूल, आंगनवाड़ी और मस्जिदें भी तोड़ी गईं।
बरसात के मौसम में लोग तिरपाल और अस्थायी शिविरों में रह रहे हैं।
किसी परिवार को व्यक्तिगत नोटिस नहीं दिया गया।
ग्रामीणों ने NRC, वोटर लिस्ट, ज़मीनी कागज़ात और पहचान पत्र जैसे दस्तावेज़ दिखाए।
परिवारों का कहना है कि वे 1948 से इस क्षेत्र में रह रहे हैं।
1084 परिवार उजाड़े गए।
निवासियों के पास 1951 NRC और 1962 से पुराने ज़मीन के पट्टे मौजूद थे।
5 आंगनवाड़ी, 3 प्राथमिक विद्यालय, 1 मिडिल स्कूल, 1 पानी की योजना, 8 मस्जिदें और 2 मदरसे तोड़े गए।
17 जुलाई को राहत और सड़क खोलने की माँग कर रहे लोगों पर पुलिस ने लाठीचार्ज व गोलीबारी की।
19 वर्षीय सकोवर अली की मौके पर मौत हुई और कई लोग घायल हुए।
अब तक इस घटना की न्यायिक जाँच नहीं हुई।
अचानक कार्रवाई में 105 दुकानें व प्रतिष्ठान तोड़े गए।
कोई लिखित नोटिस नहीं दिया गया।
स्थानीय लोगों का कहना है कि मामला गुवाहाटी हाईकोर्ट में लंबित है और स्टे ऑर्डर भी मौजूद था।
2007 में क्षेत्र को ग्वालपाड़ा विकास प्राधिकरण में शामिल किया गया था, इसलिए इसे संरक्षित वन क्षेत्र बताकर की गई कार्रवाई को दल ने अवैध बताया।
दल ने कहा कि—
किसी परिवार को कानूनी नोटिस या सुनवाई का अवसर नहीं मिला।
बच्चों की शिक्षा, महिलाओं की सुरक्षा, बुज़ुर्गों की देखभाल और स्वास्थ्य की कोई व्यवस्था नहीं की गई।
पूरी कार्रवाई अल्पसंख्यक मुस्लिम परिवारों को लक्षित कर की गई।
सकोवर अली की मौत के बावजूद न तो जाँच हुई और न ही मुआवज़ा दिया गया।
जाँच दल और APCR ने निम्नलिखित माँगें उठाई हैं—
हसीला बील और अशुडुबी के परिवारों की ज़मीनी दावेदारी की न्यायिक जाँच हो।
सकोवर अली की मौत और पुलिस फायरिंग की निष्पक्ष जाँच कर दोषियों पर कार्रवाई की जाए।
विस्थापित परिवारों के लिए तत्काल राहत, पुनर्वास और मुआवज़े की व्यवस्था हो।
अदालत में लंबित मामलों को दरकिनार कर बेदखली करने वाले अधिकारियों पर सख़्त कार्रवाई हो।
असम सरकार सुनिश्चित करे कि भविष्य में किसी भी नागरिक को बिना वैधानिक प्रक्रिया के बेघर न किया जाए।
APCR ने कहा है कि वह असम में हो रहे मानवाधिकार उल्लंघनों के ख़िलाफ़ लगातार आवाज़ उठाती रहेगी। संगठन ने इंसाफ़पसंद जनता और सामाजिक समूहों से अपील की है कि वे इस नाइंसाफ़ी के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद करें।
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