बिहार: ताड़ी से जुड़े पासी समुदाय पर आजीविका की दोहरी मार

गया के पासी समुदाय की आजीविका पीढ़ियों से ताड़ी से जुड़ी रही है। लेकिन शराबबंदी, घटते पेड़ और रोजगार की कमी से पलायन बढ़ा है, जिसका असर महिलाओं और बच्चों पर भी दिख रहा है।
पारंपरिक पेय के रूप में प्रचलित ताड़ी (पाम टॉडी) को ताड़ या खजूर के पेड़ से निकाला जाता है। | चित्र साभार: सतपाल सिंह पंद्राम
पारंपरिक पेय के रूप में प्रचलित ताड़ी (पाम टॉडी) को ताड़ या खजूर के पेड़ से निकाला जाता है। चित्र साभार: सतपाल सिंह पंद्राम
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बिहार के गया जिले के बांकेबाजार और इमामगंज प्रखंडों में भुइयां, मांझी, पासवान, पासी और अन्य कई महादलित समुदाय निवास करते हैं। इनमें से पासी समुदाय पीढ़ियों से ताड़ी निकालने का काम करता आया है। इस समुदाय के लिए ताड़ी केवल एक पेय पदार्थ नहीं, बल्कि वर्षों से उनकी परंपरा और रोजगार का हिस्सा रहा है। 

ताड़ी (पाम टॉडी) ताड़ या खजूर के पेड़ से निकलने वाला रस है, जिसे पेय के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसे निकालने की प्रक्रिया पारंपरिक और कठोर होती है। सबसे पहले खेतों में से ऐसे पेड़ों का चुनाव करना होता है, जिनकी छाल मजबूत और रस देने लायक हो। इसके बाद ताड़ी निकालने वाला व्यक्ति पेड़ पर चढ़कर फूलों के गुच्छे के ऊपरी हिस्से को साफ करके तेज चाकू से हल्का चीरा लगाता है और नीचे एक मिट्टी का घड़ा, या प्लास्टिक या धातु का बर्तन या नारियल का खोल बांध देता है। चीरे के कटाव से धीरे-धीरे रस टपकने लगता है और नीचे बर्तन में जमा होता रहता है।

ताड़ी निकालने के लिए ऊंचे पेड़ों पर चढ़ने के दौरान गिरने की दुर्घटनाओं का खतरा बना रहता है।
ताड़ी निकालने के लिए ऊंचे पेड़ों पर चढ़ने के दौरान गिरने की दुर्घटनाओं का खतरा बना रहता है।चित्र साभार: सतपाल सिंह पंद्राम

ताड़ी निकालने का काम जोखिम भरा है, क्योंकि इसमें ऊंचे पेड़ों पर चढ़ना पड़ता है। कई बार गिरने की दुर्घटनाएं भी हो जाती हैं। अक्सर लोग शाम को घड़े लगाते हैं और सुबह उतारते हैं। ताजा ताड़ी का स्वाद मीठा और हल्का होता है, लेकिन कुछ ही घंटों में यह किण्वित (फर्मेंट) होकर हल्की मादक हो जाती है। अधिकांश लोग इसे छानकर तुरंत पीना पसंद करते हैं, जबकि कुछ लोग इसे देर तक रखते हैं, जिससे इसमें शराब जैसी तासीर आ जाती है।

अपनी आजीविका कमाने के लिए लोग सुबह चार बजे पेड़ों पर चढ़कर हांडी भर ताड़ी लाते हैं।
अपनी आजीविका कमाने के लिए लोग सुबह चार बजे पेड़ों पर चढ़कर हांडी भर ताड़ी लाते हैं।चित्र साभार: सतपाल सिंह पंद्राम

इसी इलाके के गांव वाजितपुर के अमरेश बताते हैं, “हम लोग सुबह चार बजे पेड़ पर चढ़ते हैं और हांडी भरकर लाते हैं। इसी से हमारा घर चलता है। लेकिन अब यह पारंपरिक काम संकट में है। शराबबंदी लागू होने के बाद ताड़ी के व्यवसाय पर कई बंदिशें लग गई हैं। पहले ताड़ी खुले में बिक जाती थी और परिवार की गुजारे लायक आमदनी हो जाती थी।”

पासी समुदाय के अधिकतर लोग भूमिहीन होने के चलते किसानों के खेतों में पेड़ों से ताड़ी निकालते हैं, जिससे उन्हें मुनाफे का आधा हिस्सा मिलता है।
पासी समुदाय के अधिकतर लोग भूमिहीन होने के चलते किसानों के खेतों में पेड़ों से ताड़ी निकालते हैं, जिससे उन्हें मुनाफे का आधा हिस्सा मिलता है।चित्र साभार: सतपाल सिंह पंद्राम

ताड़ी निकालने वाले पासी समुदाय के अधिकांश लोगों के पास खुद की जमीन नहीं है। वे मुनाफे के आधे हिस्से के बदले किसानों के खेतों में पेड़ों पर चढ़कर ताड़ी निकालने का काम करते हैं। लेकिन अब इस काम में शराबबंदी के अलावा भी कई मुश्किलें आ गई हैं। प्रखंड के गंगटी ग्राम की रूपा देवी बताती हैं, “अधिकतर किसान अब ताड़ के पेड़ों को अपने खेतों से कटवा रहे है, क्योंकि उन्हें लगता है कि इन पेड़ों की पत्तियों से उनकी फसल खराब हो जाती है। ऐसे में हमारे लिए रोजगार की मुश्किलें और बढ़ रही हैं।” 

किसानों का मानना है कि ताड़ की पत्तियां फसल को नुकसान पहुंचाती हैं, जिससे ताड़ी निकालने वालों के लिए रोजगार की मुश्किलें बढ़ रही हैं।
किसानों का मानना है कि ताड़ की पत्तियां फसल को नुकसान पहुंचाती हैं, जिससे ताड़ी निकालने वालों के लिए रोजगार की मुश्किलें बढ़ रही हैं। चित्र साभार: सतपाल सिंह पंद्राम

अरमेश जोड़ते हैं, “वैसे भी ताड़ी निकालने का काम सीजनल (मौसमी) है। अक्सर मार्च से जून के बीच ही यह व्यवसाय अच्छा चलता है। खेती से जुड़ा काम इस समय कम रहता है, इसलिए ताड़ी ही हमारी आमदनी का बड़ा सहारा बनती है।”

काम के घटते अवसरों के कारण यहां के युवा अब तेजी से अन्य राज्यों की ओर पलायन कर रहे हैं।
काम के घटते अवसरों के कारण यहां के युवा अब तेजी से अन्य राज्यों की ओर पलायन कर रहे हैं।चित्र साभार: सतपाल सिंह पंद्राम

ताड़ के कम होते पेड़ और इस व्यापार में उदासीनता के चलते अब यहां के युवा गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों की तरफ पलायन करने लगे हैं। यह ट्रेनों में बढ़ती भीड़ के रूप में साफ दिखता है, जहां रोज सैकड़ों लोग रोजगार की तलाश में बाहर जाते हैं।

पलायन के बाद घर का बोझ महिलाओं और बुजुर्गों पर आ जाता है, जबकि बच्चों को पढ़ाई छोड़कर घरेलू कामों में लगना पड़ता है।
पलायन के बाद घर का बोझ महिलाओं और बुजुर्गों पर आ जाता है, जबकि बच्चों को पढ़ाई छोड़कर घरेलू कामों में लगना पड़ता है।चित्र साभार: सतपाल सिंह पंद्राम

परिवार के भरण-पोषण के लिए जब अधिकांश पुरुष रोजगार की तलाश में सालों तक बाहर चले  जाते हैं, तो घर का सारा बोझ महिलाओं और बुज़ुर्गों पर आ जाता है। इसका असर केवल बड़ों तक ही सीमित नहीं रहता। बच्चों को भी पढ़ाई छोड़कर घरेलू कामों में लगना पड़ता है। 

बुनियादी शिक्षा के लिए स्कूल तक पहुंचने के लिए पासी समुदाय के बच्चों को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।
बुनियादी शिक्षा के लिए स्कूल तक पहुंचने के लिए पासी समुदाय के बच्चों को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।चित्र साभार: सतपाल सिंह पंद्राम

क्षेत्र में आंगनबाड़ी जैसी मूलभूत सुविधाओं की स्थिति भी संतोषजनक नहीं है। जो बच्चे स्कूल जाते भी हैं, उन्हें रोज नदी-नालों को पार करना पड़ता है, जो बरसात के दिनों में और मुश्किल हो जाता है।

यह लेख इंडिया डेवलपमेंट रिव्यू पर प्रकाशित हो चुका है. जो मूलरूप से इंडिया वॉटर पोर्टल हिंदी पर प्रकाशित हुआ था। इसे यहाँ देखा जा सकता है।
पारंपरिक पेय के रूप में प्रचलित ताड़ी (पाम टॉडी) को ताड़ या खजूर के पेड़ से निकाला जाता है। | चित्र साभार: सतपाल सिंह पंद्राम
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