औरों को मनपसंद खाना डिलीवर करने वालों के खुद के घर में फांकाकशी की नौबत

'ऑनलाइन फ़ूड डिलीवरी कंपनी स्विगी के लिए कार्यरत राइडर्स परिवर्तित पे-आउट पॉलिसी के विरोध में कर रहे हैं हड़ताल। करीब 500 राइडर्स की आजीविका प्रभावित'
ऑनलाइन फूड ऑर्डरिंग और डिलीवरी प्लेटफॉर्म स्विगी के लिए काम करने वाले कर्मचारी
ऑनलाइन फूड ऑर्डरिंग और डिलीवरी प्लेटफॉर्म स्विगी के लिए काम करने वाले कर्मचारी

राजस्थान। उदयपुर में ऑनलाइन फूड ऑर्डरिंग और डिलीवरी प्लेटफॉर्म स्विगी के लिए काम करने वाले 100 से अधिक कर्मचारी पिछले चार दिनों से हड़ताल पर हैं। वे चाहते हैं कि स्विगी ने हाल में जो इंसेंटिव और पे-आउट पोलिसी में परिवर्तन किया है, उसे कंपनी वापस ले ताकि 22-25 हज़ार रुपये की आमदनी से बामुश्किल गुज़र बसर कर रहे इन गिग वर्कर्स का घर किसी तरह चलता रहे।

स्विगी ने 4 फरवरी से उदयपुर में अपने राइडर्स की पे-आउट पालिसी में कुछ परिवर्तन किए हैं जिससे कंपनी के लिए उदयपुर शहर में काम करने वाले लगभग 500 कर्मचारी प्रभावित हैं। चार दिन से रोजाना उदयपुर कलेक्ट्रेट पर धरना, प्रदर्शन और रैली निकालते हुए इन राइडर्स को देखकर जब द मूकनायक ने इनसे बात की तो दर्द मानों इनकी आंखों में आंसू बनकर छलक गए। इन डिलीवरी पार्टनर्स ने कहा कि "केवल नाम की पार्टनशिप है, हमारा हाल खानों में काम करने वाले मजदूरों से भी खराब है जिन्हें कम से कम ईएसआई, मेडिकल लीव, पीएफ का तो कवरेज मिलता है। हम जैसे गिग वर्कर्स के सिर पर आसमां हैं और नीचे सरकती हुई सड़कें। सर्दी, गर्मी, ओलावृष्टि हो या बारिश, हर मौसम की मार झेलते हुए हम राइडर्स अथक काम करते हैं, बिना लिफ्ट के कई कमर्शियल और हाउसिंग काम्प्लेक्स के ऊपरी मालों में मुस्कुराते हुए आर्डर पहुँचाते हैं जिसमें दम फूल जाता है लेकिन हमें तो चेहरे पर शिकन भी लाने की इजाज़त नहीं है।"

गिग वर्कर्स
गिग वर्कर्स

बच्चों की स्कूल फीस भरने को लिया था लोन, अब कैसे चुकेगा?

40 वर्षीय मुकेश लक्षकार 4 सदस्यों के अपने परिवार में अकेले कमाने वाले व्यक्ति हैं। मुकेश करीब 3 सालों से स्विग्गी के डिलीवरी पार्टनर के रूप में कार्यरत हैं और हर महीने करीब 20 से 22 हज़ार रुपए कमाते हैं। मुकेश ने बताया कि परिवर्तित पे आउट पॉलिसी से मासिक आय में 8 से 10 हजार रुपये की गिरावट आएगी जिससे ना तो पेट्रोल के खर्च निकलेगा ना ही बीवी बच्चों का गुजारा हो सकेगा। "मेरे दो छोटे बच्चे 11 और 8 साल के हैं जिनकी स्कूल फीस भरने के लिए मैंने 40 हजार रुपये का लोन लिया था। सोचा था हर हफ्ते पैसे आ जाते हैं, तो थोड़ी राइड्स बढ़ाकर जैसे तैसे लोन चुका दूंगा लेकिन नए पे-आऊट ने तो कमर तोड़ दी है, घर का राशन भी नहीं ला सकूंगा" मुकेश ने रुआंसू स्वर में कहा। मुकेश की तरह अधिकांश राइडर्स ने लोन लिए हुए हैं और अब वे अपने पर्सनल और वाहन लोन चुकाने को लेकर चिंतित हैं।

मुकेश के मित्र और स्विगी राइडर भरत शर्मा का भी कमोबेश यही हाल है। भरत बताते हैं कि लोगों को लगता है हम जैसे गिग वर्कर्स बहुत पैसे बनाते हैं लेकिन लोग नही जानते कि हम दिनभर सर्दी, गर्मी, धूप बरसात में कड़ी मेहनत करते हुए सड़कों पर दौड़ते हैं। अपनी जेब से पेट्रोल का व्यय करके लोगों को उनकी पसंद का भोजन समय पर डोर पर पहुंचाते हैं लेकिन इसके बदले में हमे पूरे महीने में 25 हजार की ही आमदनी होती है। पेट्रोल और बाइक देखरेख आदि मिलाकर 8-10 हज़ार रुपये लग जाते हैं और आखिर में हमारे हाथ मे कुछ नही बचता है। भरत ने बताया कि आय प्रमाण के नाम पर भी हम लोगों के पास कोई डॉक्यूमेंट नही होता इसलिए जब हम जैसे लोग घर बनाने के लिए होमलोन अप्लाई करते हैं, बैंक इसे रिजेक्ट कर देती हैं।

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हाईवे हमारे दुश्मन, सुनसान एरिया में असुरक्षित

होटल मैनेजमेंट में डिप्लोमा धारक पुष्पेंद्र सिंह राठौड़ एक साल से स्विगी के लिए काम कर रहे हैं। द मूकनायक से बातचीत में राठौड़ ने बताया कि सिर्फ पे-आउट ही नहीं, कर्मचारियों की और भी कई परेशानियां है। पार्ट टाइम काम करने वालों को 4.5 घंटे और फुल टाइमर को 10 घंटे काम करना पड़ता है । रोजाना अपना शिफ्ट शुरू होने से पहले लॉगिन और रात को शिफ्ट समाप्त होने कब बाद ही लॉग आउट कर सकते हैं, इसमे अगर कोई चूक हो गयी तो कंपनी दिनभर का इंसेंटिव काट लेती हैं। राठौड़ ने बताया कि उदयपुर में स्विगी सुबह 7 बजे से रात 2 बजे तक होम डिलीवरी के आर्डर लेती हैं। कई इलाके जैसे आईआईएम- बलीचा, पेसिफिक हॉस्पिटल उमरड़ा, जिंक स्मेल्टर देबारी आदि शहर से 15-15 किलोमीटर दूर, सुनसान जगहों पर हैं जो डेंजर जोन में आते हैं। रात को 11 बजे बाद इन स्थानों से आर्डर मिलने पर जब राइडर जाता है तो समाज कंटकों, जानवर और हाईवे पर दौड़ते वाहनों की वजह से मामला रिस्की हो जाता है जिसकी कोई जिम्मेदारी कंपनी नहीं लेती है। कंपनी दुर्घटना पर 2 लाख रुपये और मृत्यु पर 10 लाख रुपये का बीमा देती है लेकिन इसकी प्रकिया इतनी जटिल होती है कि कामगर परेशान हो जाते हैं।

कितना नुकसानदेह नई पॉलिसी?

स्विगी पार्टनर गोल्डन और सिल्वर दो प्रकार की आईडी में कार्य करते हैं जिनमें इंसेंटिव को लेकर मामूली फर्क होता है। राइडर को प्रति 4 किलोमीटर पर 24 रुपये देय होता है और 4 किमी से ऊपर प्रति किमी 1 रुपये की दर से भुगतान दिया जाता है। परिवर्तित पे आउट सिस्टम के बाद राइडर को 24 रुपये की जगह 23 रुपये की दर से 4 किमी पर भुगतान देय होगा। इसी प्रकार प्रति राइडर आय पर देय इंसेंटिव पॉलिसी में भी कटौती कर दी गई है। पूर्व में 700 रुपये की आय पर राइडर को 450 रुपये का इनसेंटिव देय था जो नई दरों के मुताबिक 375 रुपये रहेगा। राइडर कहते हैं कि अब इंसेंटिव के लिए ज्यादा राइड लेनी होगी और ज्यादा ईंधन की खपत होगी लेकिन आमदनी पहले से कम हो जाएगी। एक राइडर प्रतिदिन 10 घन्टे की शिफ्ट में औसतन 15 आर्डर पूरे करता है। ट्रैफिक जाम या कई बार एक्सीडेंट होने पर डिलीवरी में देरी होने से कस्टमर की डांट तो पड़ती ही है, कम रेटिंग या नेगेटिव फीडबैक से परफॉर्मेंस प्रभावित होने का प्रेशर भी बराबर हावी रहता है।

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धरने पर बैठे हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं

धरना दे रहे राइडर्स ने बताया कि चार दिन से वे अपनी मांगों को लेकर रैली, प्रदर्शन आदि के रहे हैं लेकिन जिला प्रशासन ने कोई सहानुभूतिपूर्वक सुनवाई नहीं की है। अधिकारियों ने आंदोलनरत कर्मचारियों को बताया कि गिग वर्कर्स श्रम कानून के दायरे में नहीं आते हैं, ऐसे में कंपनियों को ही ऐसे मामलों में पे आउट पॉलिसियों पर निर्णय का क्षेत्राधिकार है। द मूकनायक ने स्विगी उदयपुर के फ्लीट मैनेजर नयन जैन से संपर्क करने का प्रयास किया लेकिन उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया।

भारत मे गिग इकॉनमी

गिग अथवा प्लेटफ़ॉर्म वर्कर का तात्पर्य किसी ऐसे संगठन के लिये काम करने वाले कार्यकर्ताओं से है जो व्यक्तियों या संगठनों को सीधे ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग करके विशिष्ट सेवाएँ प्रदान करता है । उदाहरण: ओला या उबर ड्राइवर, स्विगी या ज़ोमैटो डिलीवरी एजेंट आदि। वे औपचारिक और अनौपचारिक श्रम के पारंपरिक द्विभाजन के दायरे से बाहर है।

बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के गिग वर्कफोर्स में सॉफ्टवेयर, साझा और पेशेवर सेवाओं जैसे उद्योगों में 15 मिलियन कर्मचारी कार्यरत हैं।

इंडिया स्टाफिंग फेडरेशन की वर्ष 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका, चीन, ब्राज़ील और जापान के बाद भारत वैश्विक स्तर पर फ्लेक्सी-स्टाफिंग में पाँचवाँ सबसे बड़ा देश है

नीति आयोग ने 'इंडियाज़ बूमिंग गिग एंड प्लेटफॉर्म इकॉनमीी' शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की।

रिपोर्ट के अनुसार, 2029-30 तक भारत के गिग वर्कफोर्स के 2.35 करोड़ तक बढ़ने की उम्मीद है।

रिपोर्ट का अनुमान है कि वर्ष 2020-21 में 77 लाख (7.7 मिलियन) कर्मचारी गिग इकॉनमी में संलग्न थे। जो भारत में गैर-कृषि कार्यबल का 2.6% या कुल कार्यबल के 1.5% थे।

नीति आयोग ने ऐसे श्रमिकों और उनके परिवारों के लिये सामाजिक सुरक्षा संहिता में परिकल्पित साझेदारी मोड में सामाजिक सुरक्षा उपायों का विस्तार करने की सिफारिश की।

नौकरी और आय असुरक्षा

गिग वर्कर्स को मज़दूरी, घंटे, काम करने की स्थिति और सामूहिक सौदेबाज़ी के अधिकार से संबंधित श्रम नियमों से लाभ नहीं मिलता है।

डिजिटल प्लेटफॉर्म के साथ रोज़गार में लगे श्रमिकों, विशेष रूप से एप-आधारित टैक्सी और वितरण (Delivery) क्षेत्रों में महिला श्रमिकों को विभिन्न व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य जोखिमों का सामना करना पड़ता है।

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