मध्य प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं की बदतर स्थिति: डॉक्टरों की कमी से जूझ रहे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र

एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के बाद अधिकांश डॉक्टर उच्च शिक्षा यानी एमडी या एमएस की तैयारी में लग जाते हैं, जिसके लिए उन्हें शहरों में रहना पड़ता है। इस प्रवृत्ति के कारण ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाएं लगातार प्रभावित हो रही हैं।
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भोपाल। मध्य प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति बेहद गंभीर है। राज्य में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) की स्थापना तो की गई है, लेकिन इनमें डॉक्टरों की भारी कमी के कारण ये केंद्र अपना मूल उद्देश्य पूरा नहीं कर पा रहे हैं। प्रदेश के 1440 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में चिकित्सा अधिकारियों के लिए 1946 पद स्वीकृत हैं, लेकिन इनमें से 542 पद खाली पड़े हैं। डॉक्टरों की यह कमी ग्रामीण इलाकों के लोगों के लिए बड़ी समस्या बन गई है, क्योंकि उनके पास प्राथमिक उपचार के लिए भी पर्याप्त संसाधन उपलब्ध नहीं हैं। यह जानकारी पिछले दिनों केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री जेपी नड्डा ने लोकसभा में हेल्थ डायनामिक्स ऑफ इंडिया रिपोर्ट के आधार पर साझा की थी।

डॉक्टरों की इस कमी के कारण ग्रामीण जनता को अपनी बीमारियों के इलाज के लिए या तो दूर स्थित जिला अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों का रुख करना पड़ता है, या फिर महंगे निजी अस्पतालों में जाना पड़ता है। राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं में इस प्रकार की कमी का सीधा असर गरीब और पिछड़े वर्गों पर पड़ रहा है, जिनके लिए निजी अस्पतालों में इलाज कराना आर्थिक रूप से असंभव हो जाता है।

राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो ग्रामीण पीएचसी में डॉक्टरों की कमी के मामले में मध्य प्रदेश की स्थिति अत्यंत खराब है। उत्तर प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र के बाद मध्य प्रदेश इस सूची में चौथे स्थान पर है। अन्य राज्यों की तरह यहां भी डॉक्टर ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने से बचते हैं। इसकी वजहें साफ हैं—ग्रामीण इलाकों में डॉक्टरों के लिए आवास, बच्चों की शिक्षा और अन्य मूलभूत सुविधाओं की कमी है। इसके अलावा, शहरी इलाकों के निजी अस्पतालों में डॉक्टरों को बेहतर वेतन और सुविधाएं मिलती हैं, जिससे वे सरकारी सेवाओं की अपेक्षा निजी क्षेत्र में काम करना पसंद करते हैं।

क्या हैं कारण?

यह भी देखा गया है कि एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के बाद अधिकांश डॉक्टर उच्च शिक्षा यानी एमडी या एमएस की तैयारी में लग जाते हैं, जिसके लिए उन्हें शहरों में रहना पड़ता है। इस प्रवृत्ति के कारण ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाएं लगातार प्रभावित हो रही हैं। इसके साथ ही, राज्य में मेडिकल कॉलेजों की संख्या में वृद्धि के बावजूद डॉक्टरों की उपलब्धता में सुधार नहीं हो पा रहा है। इसका एक बड़ा कारण यह है कि हर साल 800 से 1000 डॉक्टर मध्य प्रदेश मेडिकल काउंसिल से एनओसी लेकर अन्य राज्यों में काम करने चले जाते हैं।

डॉक्टरों की अनुपस्थिति के कारण प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में मौजूद अन्य संसाधनों का भी सही उपयोग नहीं हो पाता। हर पीएचसी में एक डॉक्टर के साथ एएनएम, नर्स, फार्मासिस्ट और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी होते हैं, लेकिन डॉक्टरों की कमी के चलते ये कर्मचारी निष्क्रिय बने रहते हैं। इस स्थिति ने स्वास्थ्य सेवाओं के पूरे ढांचे को कमजोर बना दिया है।

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