मध्य प्रदेश शिक्षक भर्ती परीक्षा में आरक्षण विवाद: EWS अभ्यर्थियों ने हाईकोर्ट जाने की दी चेतावनी, जानिए पूरा मामला?

कर्मचारी चयन मण्डल के अधिकारियों का कहना है ईडब्ल्यूएस को अलग से आरक्षण दिया गया है, लेकिन इसे सामाजिक आरक्षण की श्रेणी में नहीं रखा गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि ईडब्ल्यूएस को आरक्षण आर्थिक आधार पर दिया गया है, जबकि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग को सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन के आधार पर विशेष छूट मिलती है।
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भोपाल। मध्यप्रदेश कर्मचारी चयन मंडल (ईएसबी) द्वारा आयोजित की जा रही शिक्षक भर्ती परीक्षा में आरक्षण को लेकर नया विवाद खड़ा हो गया है। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के अभ्यर्थियों ने इस परीक्षा में अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को दी जा रही आयु सीमा और अर्हताकारी अंकों की छूट पर सवाल उठाए हैं। भारतीय ईडब्ल्यूएस संघ ने इसे समानता के अधिकार का उल्लंघन बताते हुए उच्च न्यायालय जाने की घोषणा की है।

मध्यप्रदेश के स्कूल शिक्षा विभाग और जनजातीय कार्य विभाग में माध्यमिक शिक्षक के विषयवार 7,929 पदों पर भर्ती के लिए चयन परीक्षा आयोजित की जा रही है। इसके लिए आवेदन प्रक्रिया 28 जनवरी से शुरू की गई है और परीक्षा 20 मार्च से होगी। परीक्षा में शामिल होने के लिए अभ्यर्थियों को 2018 या 2023 की शिक्षक पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण होना अनिवार्य किया गया है।

इस भर्ती के लिए कर्मचारी चयन मंडल की नियमावली के अनुसार अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग को अधिकतम आयु सीमा में पांच वर्ष की छूट दी गई है। सामान्य वर्ग के लिए अधिकतम आयु सीमा पुरुषों के लिए 40 वर्ष और महिलाओं के लिए 45 वर्ष निर्धारित की गई है, जबकि आरक्षित वर्गों के लिए यह सीमा पुरुषों के लिए 45 और महिलाओं के लिए 50 वर्ष कर दी गई है। आरक्षित अभ्यर्थियों को शैक्षणिक योग्यता के अर्हताकारी अंकों में पांच प्रतिशत की छूट दी गई है, जिससे सामान्य वर्ग के ईडब्ल्यूएस कोटे के अभ्यर्थी विवाद पैदा कर रहे हैं।

ईडब्ल्यूएस अभ्यर्थियों ने इस नियम पर आपत्ति जताई है कि जब उन्हें सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है, तो आयु सीमा और अर्हताकारी अंकों में छूट न देना समानता के अधिकार (अनुच्छेद 14) का उल्लंघन है। भारतीय ईडब्ल्यूएस संघ ने आरोप लगाया है कि उन्होंने इस विषय पर कर्मचारी चयन मंडल को अभ्यावेदन दिया था, लेकिन इस पर कोई सुनवाई नहीं हुई। अब संगठन इस मामले को अदालत में चुनौती देने की तैयारी कर रहा है।

ईडब्ल्यूएस अभ्यर्थियों का तर्क है कि यदि वे आर्थिक रूप से कमजोर हैं, तो उन्हें भी वही सुविधाएँ दी जानी चाहिए जो अन्य आरक्षित वर्गों को मिल रही हैं। उनका कहना है कि जब अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए अधिकतम आयु सीमा में छूट दी जा सकती है, तो ईडब्ल्यूएस को इससे अलग रखना भेदभावपूर्ण है। उनका मानना है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 16 (सरकारी नौकरियों में समान अवसर) का उल्लंघन है। यदि सरकार इस भेदभाव को नहीं हटाती, तो वे आंदोलन और कानूनी लड़ाई के लिए तैयार हैं।

कर्मचारी चयन मण्डल के अधिकारियों का कहना है ईडब्ल्यूएस को अलग से आरक्षण दिया गया है, लेकिन इसे सामाजिक आरक्षण की श्रेणी में नहीं रखा गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि ईडब्ल्यूएस को आरक्षण आर्थिक आधार पर दिया गया है, जबकि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग को सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन के आधार पर विशेष छूट मिलती है। इसलिए, ईडब्ल्यूएस को आयु सीमा और अर्हताकारी अंकों में छूट देना संवैधानिक रूप से सही नहीं हो सकता।

ईडब्ल्यूएस संघ इस मामले को मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में ले जाने की तैयारी कर रहा है। यदि अदालत इस याचिका को स्वीकार करती है, तो भर्ती प्रक्रिया में बदलाव संभव हो सकता है। इससे पहले भी अन्य राज्यों में इसी तरह के मामलों में अदालतों ने सरकार को जवाब देने के लिए कहा है।

ईएसबी के निदेशक साकेत मालवीय ने स्पष्ट किया कि इस शिक्षक भर्ती परीक्षा में किसी भी नियम का उल्लंघन नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि अब तक अन्य किसी विभाग की भर्ती में भी ईडब्ल्यूएस को शैक्षणिक अर्हताकारी अंकों में छूट या आयु सीमा में छूट नहीं दी गई है। हालांकि, ईडब्ल्यूएस वर्ग के लिए कुछ सीटें आरक्षित अवश्य रखी जाती हैं। मालवीय के अनुसार, यह नीति पहले से लागू है और इस परीक्षा में भी उसी के अनुसार नियमों का पालन किया गया है।

इस मामले के बीच शिक्षक भर्ती परीक्षा की आवेदन प्रक्रिया 11 फरवरी को समाप्त हो जाएगी और परीक्षा 20 मार्च से शुरू होगी। ईडब्ल्यूएस अभ्यर्थियों की याचिका के बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि न्यायालय इस विवाद पर क्या रुख अपनाता है और सरकार इसे हल करने के लिए क्या कदम उठाती है।

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