जयपुर- राजस्थान पुलिस सोशल मीडिया के ज़रिए जनता से जुड़ने और पुलिस व्यवस्था को लेकर जागरूकता फैलाने के प्रयास में कई नवाचार करती रही है। लेकिन हाल ही में पुलिस द्वारा X (twitter) पर पूछे गए एक सवाल ने न केवल मज़ाकिया प्रतिक्रियाओं की झड़ी लगा दी, बल्कि पुलिस विभाग की छवि को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
राजस्थान पुलिस के आधिकारिक सोशल मीडिया हैंडल से एक सवाल पूछा गया:
"क्या आप जानते हैं? राजस्थान पुलिस बल का सर्वोच्च पद क्या है?"
इसके जवाब में चार विकल्प दिए गए थे—
एसपी
डीजीपी
इंस्पेक्टर
कांस्टेबल
यह प्रश्न पुलिस व्यवस्था को समझाने और लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से किया गया था, लेकिन आम जनता की प्रतिक्रियाओं ने एक अलग ही कहानी कह दी। बड़ी संख्या में लोगों ने 'कांस्टेबल' को राजस्थान पुलिस का सर्वोच्च पद करार दिया, और इसके पीछे दिए गए कारणों ने पुलिस व्यवस्था की छवि पर सवाल खड़े कर दिए। इस ट्वीट पर 500 से अधिक प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुई हैं.
"डीजीपी भले ही पुलिस सरताज हैं , किन्तु वाकई कांस्टेबल ही पुलिस विभाग की जड़ है जो दिन-रात अपने पैरों पर खड़े ड्युटी देता है।"
"वैसे तो सबसे बड़ा पद DGP होता है पंरतु जिले में SP, थाने में इंस्पेक्टर और कॉलोनी गांव में कॉन्स्टेबल भी अपने आप में DGP हुए रहते हैं", इस प्रकार से तंज भरे जवाब की भरमार है।
एक यूजर ने पूछा, " हमें यह जानकर क्या करना है कि सर्वोच्च पद कौन सा है चाहे सबसे छोटा पद हो चाहे सबसे बड़ा पद हो! पुलिस क्या कर रही है वहां अत्याचार रुक नहीं रहे हैं ।"
एक सोशल मीडिया यूजर ने लिखा,
"राजस्थान पुलिस बल का सर्वोच्च पद कांस्टेबल है क्योंकि सबसे ज्यादा मेहनत वही करता है।"
कई लोगों ने इस बात पर सहमति जताई कि ज़मीनी हकीकत में पुलिस का सबसे बड़ा चेहरा कांस्टेबल ही होता है, क्योंकि वही जनता से सीधे तौर पर जुड़ा होता है और सबसे ज्यादा काम करता है।
एक यूजर के जवाब ने कॉन्स्टेबल लेवल पर कर्मचारियों की मुश्किल ड्यूटी को रेखांकित किया, "जी हमारे हिसाब से तो कॉन्स्टेबल ही है , क्योकि हर चौराहे पर धूप हो या बारिश या ठंड वो ही मिलते है। उन्ही के दम पर हम बे खौफ घूम सकते है इसलिए हमारे लिए सर्वोच्च तो कॉन्सटेबल ही है"।
एक अन्य यूजर ने कटाक्ष करते हुए कहा,
"डीजीपी तो कागजों में है, लेकिन जमीन पर तो रोड पर खड़ा कांस्टेबल ही सबसे ज्यादा पॉवरफुल है।"
कुछ प्रतिक्रियाओं में पुलिस की छवि और ग्रामीण जनता में उनके प्रति मौजूद डर को लेकर भी बातें उठाई गईं।
एक व्यक्ति ने लिखा,
"सबसे बड़ा पद तो खैर डीजीपी ही है, लेकिन राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्र में पुलिस के प्रति जो डर है, उसे विश्वास में बदलिए। आमजन में विश्वास और अपराधियों में भय पैदा कीजिए। गाँवों में आज भी जब किसी के पासपोर्ट वेरिफिकेशन के लिए पुलिस घर आती है, तो लोग उसे गलत नज़रों से देखते हैं।"
इस प्रतिक्रिया से स्पष्ट होता है कि जनता के बीच पुलिस की छवि अब भी सुधार की जरूरत रखती है।
कई लोगों ने पुलिस के भीतर मौजूद व्यवस्था और शक्ति संतुलन को लेकर तंज कसा।
एक यूजर ने लिखा,
"हमारे धौलपुर में तो कांस्टेबल भी अपने आप को डीजीपी समझता है, इसलिए कांस्टेबल सबसे बड़ा पद हुआ।"
यह कटाक्ष इस ओर इशारा करता है कि कई जगहों पर कांस्टेबल खुद को कानून से ऊपर समझने लगते हैं, जिससे पुलिस की नकारात्मक छवि बनती है।
कुछ लोगों ने पुलिस भर्ती से जुड़े घोटालों और पेपर लीक मामलों को लेकर भी तंज कसा।
एक व्यक्ति ने लिखा,
"सबसे बड़ा पद एसआई है, क्योंकि 2021 में भयंकर रूप से फर्जीवाड़े और पेपर लीक प्रकरणों के बाद भी एसआई भर्ती रद्द नहीं कर पा रहे।"
एक जवाब में लिखा गया, " सबसे बड़ा पद है SI भर्ती 2021 के तस्कर माफिया और फर्जी थानेदार...सरकार खुद गूंगी बहरी है, क्योंकि मजाक उड़ा रहे है सभी...उसके बाद पर्ची CM जो तस्कर माफिया के गुलाम हो गए...।"
एक अन्य प्रतिक्रिया थी,
"अभी की सरकार की नीयत और स्थिति को देखते हुए सबसे बड़ा पद राज एसआई है।"
एक व्यक्ति ने लिखा,
"सभी पदो कि जननी तो RPSC ही है ,लेकिन सब इंस्पेक्टर का पद बडा होता है , क्योंकि ये पद फर्जी तरीके से 20/25 लाख रुपए देकर भी प्राप्त किया जा सकता है ,, फिर इन फर्जीयो को पद से हटाने का जज्बा या पावर डी जी साहब या मुख्यमंत्री महोदय को भी नहीं है"।
कुछ जवाबों में पुलिस की गरिमा और जिम्मेदारी को भी रेखांकित किया गया।
एक व्यक्ति ने लिखा,
"पद चाहे जो भी हो, अगर उसकी गरिमा का ख्याल नहीं रखा गया तो वह पद किसी काम का नहीं।"
एक अन्य यूजर ने पुलिस अधिकारियों की जवाबदेही पर सवाल उठाते हुए कहा,
"कांस्टेबल जो चाहे कर सकता है, लेकिन डीजीपी नहीं देखता कि सड़क पर क्या हो रहा है।"
एक यूजर ने इस प्रकार के सवाल जवाब की बजाय पुलिस से कार्यशैली में सुधार की जरूरत बताई- "हर जिले के हर थाने का क्राइम सॉल्विंग रेट प्रेषित करें तो अधिक सुविधा होगी। इस जीके में क्या रखा है जनता के लिए।"
इस पूरे घटनाक्रम से यह स्पष्ट होता है कि राजस्थान पुलिस के प्रति आम जनता में विश्वास की कमी है और पुलिस की कार्यशैली को लेकर गंभीर सवाल उठाए जा रहे हैं। जनता की प्रतिक्रियाओं ने यह दर्शाया कि पुलिस सुधार की दिशा में ठोस कदम उठाने की जरूरत है।
राजस्थान पुलिस का यह सोशल मीडिया अभियान जागरूकता फैलाने के लिए था, लेकिन प्रतिक्रियाओं से साफ़ है कि जनता पुलिस की छवि सुधारने की मांग कर रही है। जनता के इन मज़ेदार लेकिन चुभते हुए जवाबों के पीछे गहरी सामाजिक धारणा छिपी हुई है।
आम लोगों का मानना है कि पुलिस विभाग में सबसे ज़्यादा मेहनत और सीधा जनता से संपर्क कांस्टेबल स्तर पर होता है, लेकिन प्रशासनिक स्तर पर उनके काम को वह सम्मान नहीं मिलता, जिसके वे हकदार हैं। कई लोगों ने पुलिस व्यवस्था में भ्रष्टाचार, जनता के प्रति कठोर रवैया और जवाबदेही की कमी पर भी सवाल उठाए हैं।
खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में पुलिस की छवि अभी भी भय पैदा करने वाली बनी हुई है, जिससे लोगों को लगता है कि सुधार सिर्फ शीर्ष पदों के नाम से नहीं, बल्कि व्यवहार और कार्यशैली में बदलाव लाने से होगा। जनता के ये व्यंग्यात्मक उत्तर पुलिस की साख को सुधारने की ज़रूरत को दर्शाते हैं, ताकि "आमजन में विश्वास और अपराधियों में भय" की नीति सच में ज़मीन पर लागू हो सके।
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