भोपाल। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने सिविल जज भर्ती परीक्षा 2022 के तहत 17 नवंबर 2023 जारी विज्ञापन और उससे संबंधित संशोधन विज्ञापन पर रोक लगा दी है। इसके साथ ही उक्त विज्ञापन के आधार पर पूरी भर्ती प्रक्रिया को भी स्थगित कर दिया गया है। यह निर्णय मुख्य न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति विवेक जैन की खंडपीठ ने एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान लिया।
एडवोकेट यूनियन फॉर डेमोक्रेसी एंड सोशल जस्टिस नामक संस्था ने जनहित याचिका (क्रमांक WP/40833/2024) दायर कर मध्य प्रदेश सिविल जज भर्ती परीक्षा 2022 के विज्ञापन और प्रक्रिया को चुनौती दी थी। याचिका में ओबीसी, एससी और एसटी वर्ग के उम्मीदवारों को परीक्षा में अंकों की रियायत न देने और अनारक्षित वर्ग के 17 पदों को बैकलॉग के रूप में दर्शाने पर सवाल उठाए गए।
वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर और विनायक प्रसाद शाह ने कोर्ट में याचिकाकर्ता का पक्ष रखते हुए कहा कि भर्ती परीक्षा नियम 1994 और उसके संशोधन (दिनांक 23 जून 2023) के तहत आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों को अंकों में रियायत का प्रावधान है। लेकिन, उक्त विज्ञापन में इन प्रावधानों का पालन नहीं किया गया, जो संविधान के अनुच्छेद 14, 16, और 335 का उल्लंघन है।
याचिकाकर्ता ने बताया कि 17 नवंबर 2023 को जारी विज्ञापन में 195 पदों की भर्ती का उल्लेख है, जिसमें 61 नए पद और 134 बैकलॉग पद शामिल हैं। इसमें अनारक्षित वर्ग के 17 पदों को भी बैकलॉग में दर्शाया गया है, जिसे संविधान सम्मत नहीं माना गया।
खंडपीठ ने याचिकाकर्ता के तर्कों को सुनने के बाद कहा कि भर्ती नियमों में पाई गईं विसंगतियों के समाधान के लिए हाईकोर्ट की फुल कोर्ट मीटिंग में प्रस्ताव पहले ही मध्य प्रदेश शासन को भेजा जा चुका है। साथ ही, प्रथम दृष्टि में अनारक्षित वर्ग के 17 पदों का बैकलॉग के रूप में उल्लेख संविधान सम्मत नहीं प्रतीत होता है।
कोर्ट ने मध्य प्रदेश शासन और हाईकोर्ट प्रशासन को नोटिस जारी कर विज्ञापन और उससे संबंधित पूरी भर्ती प्रक्रिया को स्थगित कर दिया।
इस मामले की अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद निर्धारित की गई है। इस दौरान मध्य प्रदेश शासन और हाईकोर्ट प्रशासन को अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया गया है। कोर्ट के आदेश के बाद सिविल जज भर्ती परीक्षा 2022 की प्रक्रिया में भाग लेने वाले उम्मीदवारों के बीच असमंजस की स्थिति पैदा हो गई है। कोर्ट के अंतिम निर्णय तक न तो प्रारंभिक परीक्षा होगी और न ही मुख्य परीक्षा।
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर, विनायक प्रसाद शाह, परमानंद साहू, रामभजन लोधी, और पुष्पेंद्र शाह ने पैरवी की।
द मूकनायक से बातचीत करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर ने कहा कि सिविल जज भर्ती परीक्षा 2022 में आरक्षित वर्गों के अधिकारों का घोर उल्लंघन हुआ है। उन्होंने बताया कि मध्य प्रदेश सिविल जज भर्ती परीक्षा नियम 1994 और उसके संशोधनों में स्पष्ट प्रावधान है कि ओबीसी, एससी, और एसटी वर्ग के उम्मीदवारों को अंकों में छूट दी जानी चाहिए। इसके बावजूद, इस बार के विज्ञापन में इन प्रावधानों की अनदेखी की गई, जो संविधान के अनुच्छेद 14, 16, और 335 के विपरीत है। यह आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों के लिए समान अवसरों के सिद्धांत का उल्लंघन करता है।
उन्होंने आगे कहा कि विज्ञापन में अनारक्षित वर्ग के 17 पदों को बैकलॉग के रूप में दर्शाया गया है, जो संविधान के अनुसार वैध नहीं है। उन्होंने इसे आरक्षित वर्गों के अधिकारों और सामाजिक न्याय के खिलाफ बताया। ठाकुर ने कहा कि हाईकोर्ट का यह स्टे ऑर्डर आरक्षित वर्गों के लिए एक बड़ी राहत है और यह सुनिश्चित करेगा कि भर्ती प्रक्रिया संविधान सम्मत हो।
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