MP: प्रमोशन में आरक्षण के नए नियमों पर 12 नवंबर को HC में सुनवाई, सरकार ने खाली पड़े पदों का डाटा किया तैयार

लंबे समय से प्रमोशन प्रक्रिया बाधित रहने के कारण राज्य सरकार के कई विभागों में वरिष्ठ अधिकारियों की कमी महसूस की जा रही है।
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भोपाल। मध्य प्रदेश में प्रमोशन में आरक्षण के नए नियमों को लेकर चल रहे विवाद की सुनवाई अब 12 नवंबर को फिर से होने जा रही है। यह मामला फिलहाल हाईकोर्ट में विचाराधीन है, जहां सरकार की ओर से आरक्षण नियमों के समर्थन में विस्तृत डाटा पेश किया जाएगा। सूत्रों के अनुसार, राज्य शासन ने अक्टूबर 2025 तक का अद्यतन आंकड़ा तैयार कर लिया है, जिसमें प्रमोशन न होने के चलते विभिन्न ग्रेडों में खाली पड़े पदों की विस्तृत जानकारी दी गई है।

सरकार ने खाली पदों का डाटा तैयार किया

सूत्रों के मुताबिक, पिछले दस वर्षों से प्रमोशन प्रक्रिया बाधित होने के कारण लगभग 90 हजार पद रिक्त हैं। इनमें ग्रेड-1 और ग्रेड-2 के उच्च प्रशासनिक पद शामिल हैं।

सरकार के तैयार किए गए आंकड़ों के अनुसार:

ग्रेड-1 (Class I) : कुल पद – 15,159, इनमें से 8,410 खाली हैं।

ग्रेड-2 (Class II) : कुल पद – 1,32,901, इनमें से 85,049 खाली हैं।

इस तरह कुल 1,48,060 पदों में से लगभग 90 हजार पद खाली हैं। अधिकारियों के अनुसार, लंबे समय से प्रमोशन न होने से प्रशासनिक कार्यप्रणाली पर भी असर पड़ा है और कई विभागों में कार्यभार का असंतुलन पैदा हुआ है।

अजाक्स ने सरकार के नए नियमों का किया समर्थन

अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए काम करने वाले संगठन अजाक्स (AJAKS) ने सरकार के नए नियमों का समर्थन किया है। अजाक्स के अध्यक्ष एवं पूर्व आईएएस अधिकारी जे.एन. कंसोटिया ने कहा कि सरकार ने इस बार अजा-अजजा वर्ग के हितों को ध्यान में रखते हुए नियम बनाए हैं।

उन्होंने कहा, “हम प्रमोशन में आरक्षण के नए नियमों के विरोध में नहीं हैं। अगर कोई इसका विरोध करेगा, तो हमने कोर्ट से अनुरोध किया है कि हमारा पक्ष भी सुना जाए। सरकार का यह कदम न्यायसंगत दिशा में उठाया गया प्रयास है।”

सपाक्स ने जताया विरोध, कहा- आरक्षित वर्ग का प्रतिनिधित्व पहले से अधिक

वहीं, सपाक्स संगठन (सामान्य, पिछड़ा, अल्पसंख्यक वर्ग) ने इन नियमों का विरोध जताया है। सपाक्स के राष्ट्रीय संयोजक हीरालाल त्रिवेदी ने कहा कि वर्तमान में उच्च पदों पर आरक्षित वर्ग का प्रतिनिधित्व पहले से ही तय सीमा से अधिक है।

उन्होंने बताया कि कुल 36% आरक्षण (20% अनुसूचित जनजाति और 16% अनुसूचित जाति के लिए) तय है, लेकिन वर्तमान में यह प्रतिनिधित्व 46% से भी अधिक हो चुका है।

“जब आरक्षित वर्ग के अधिकारी पहले से ही तय सीमा से अधिक हैं, तो प्रमोशन में आरक्षण देने का कोई तर्क नहीं रह जाता। अब प्रमोशन मेरिट के आधार पर ही होना चाहिए।”

कोर्ट ने मांगा प्रमोटी अधिकारियों का विवरण

हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान राज्य सरकार से पूछा है कि वर्तमान में प्रमोशन पाकर कार्यरत अधिकारियों में अजा और अजजा वर्ग के कितने प्रतिशत अधिकारी हैं।

सरकार की ओर से बताया गया है कि यह आंकड़े “एक्स” और “वाई” श्रेणी के रूप में तैयार किए जा रहे हैं। इनमें अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) वर्ग का अलग-अलग विश्लेषण किया गया है।

अधिकारियों ने बताया कि अजजा विभाग (ST) का डाटा आना बाकी है, जबकि अजा विभाग (SC) का डाटा तैयार हो चुका है। यह डाटा 12 नवंबर को होने वाली अगली सुनवाई में कोर्ट के सामने पेश किया जाएगा।

प्रतिनिधित्व पर्याप्त लेकिन कुल अनुपात कम

सरकारी सूत्रों का कहना है कि प्रारंभिक विश्लेषण में यह सामने आया है कि विभागवार प्रतिनिधित्व पर्याप्त दिखाई दे रहा है, लेकिन कुल पदों की तुलना में यह अनुपात अभी भी कम है। सरकार का यह भी तर्क है कि यदि प्रमोशन में आरक्षण नहीं दिया गया तो आरक्षित वर्ग का प्रतिनिधित्व धीरे-धीरे घटेगा और समानता की संवैधानिक भावना प्रभावित होगी।

खाली पदों से प्रशासन पर असर

लंबे समय से प्रमोशन प्रक्रिया बाधित रहने के कारण राज्य सरकार के कई विभागों में वरिष्ठ अधिकारियों की कमी महसूस की जा रही है। डिप्टी कलेक्टर से लेकर उप संचालक, शिक्षक वर्ग-2 से लेकर वरिष्ठ इंजीनियर तक के हजारों पद खाली पड़े हैं। इसका सीधा असर प्रशासनिक निर्णय प्रक्रिया और जनसेवाओं की गुणवत्ता पर पड़ रहा है।

12 नवंबर को होने वाली सुनवाई इस मामले में अहम मानी जा रही है। इस दौरान सरकार, अजाक्स और सपाक्स, तीनों पक्षों की दलीलें सामने रखी जाएंगी। कोर्ट यह देखेगा कि सरकार द्वारा तैयार किया गया डाटा संवैधानिक कसौटियों पर कितना खरा उतरता है।

कानूनी प्रावधान क्या है?

अनुच्छेद 16(4A): अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए प्रमोशन में आरक्षण का प्रावधान।

एम. नागराज बनाम भारत संघ (2006): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरक्षण से पहले सरकार को ‘अप्रतिनिधित्व’ का ठोस आंकड़ा प्रस्तुत करना होगा।

जर्नल केस (2018): अदालत ने दोहराया कि प्रमोशन आरक्षण तभी वैध है जब वैज्ञानिक डाटा से इसका औचित्य सिद्ध हो।

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