राजस्थान: राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत सेमिनार आयोजित, जानिए क्या है 'विशिष्ट फसलों में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण'?

"विशिष्ट फसलों में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण" विषय पर हुई कार्यशाला में कृषिमंत्री ने कहा किसान सरकारी योजनाओं का लाभ लें. नैनो यूरिया उपयोग पर जोर, लेकिन नैनो यूरिया से उत्पादन वृद्धी में संशय बरकरार.
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत आयोजित की गई सेमिनार.
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत आयोजित की गई सेमिनार.फोटो- अब्दुल माहिर, द मूकनायक

जयपुर। राजस्थान के सवाईमाधोपुर जिले में स्थित फूल उत्कृष्टता केन्द्र पर राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अन्तर्गत "विशिष्ट फसलों में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण" विषय पर दो दिवसीय सेमिनार आयोजित किया गया। सेमिनार में कृषि एवं उद्यानिकी मंत्री डॉ. किरोड़ी लाल मीना ने कहा कि सरकार द्वारा कृषक कल्याण के लिए विभिन्न योजनाएं चलाई जा रही हैं।

कृषि मंत्री ने कहा कि किसान परम्परागत कृषि के स्थान पर खेती की नवीनतम तकनीकों एवं नवाचारों को अपनाएं। इससे किसानों की आमदनी बढ़ेगी। कृषि मंत्री डॉ. किरोड़ी लाल मीना ने कहा कि आज के दौर में किसानों की आय बढ़ाने के लिए विविधिकरण की महत्ती आवश्यकता है। किसान एक फसल पर निर्भर नहीं रहे। वे खाद्यान्न फसलों के के साथ-साथ बागवानी एवं फूल उत्पादन करें। उन्होंने कहा कि जैविक उत्पादन को बढ़ावा देकर इनकी पैकेजिंग और मार्केटिंग के माध्यम से किसानों की आय को बढ़ावा देने के लिए सरकार प्रयासरत है।

जिला कलक्टर डॉ. खुशाल यादव ने कृषकों को सम्बोधित करते हुए कहा कि मृदा स्वास्थ्य कार्ड के माध्यम से अपने खेत की मिट्टी की जांच करवाकर आवश्यकता अनुसार पोषक तत्वों का प्रयोग कर उत्पादन बढ़ाने का प्रयास करें। कृषि में रसायनों का प्रयोग बन्द कर किसानों को जैविक कृषि का उपयोग करना चाहिए ताकि मानव प्रजाति को कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से बचाया जा सके। उन्होंने कहा कि किसान कृषि की नई तकनीक नैनो यूरिया एवं नैनो डीएपी उत्पादों का उपयोग कर उत्पादन बढ़ाकर जीवन स्तर में सुधार लाएं। इससे भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ेगी और गुणवत्तायुक्त जहरमुक्त उत्पादन मिलेगा।

कृषि कार्यशाला का उद्घाटन करते कृषि मंत्री डॉ. किरोड़ी लाल मीना, सवाईमाधोपुर।
कृषि कार्यशाला का उद्घाटन करते कृषि मंत्री डॉ. किरोड़ी लाल मीना, सवाईमाधोपुर। फोटो- अब्दुल माहिर, द मूकनायक

नैनो यूरिया के उपयेाग से फसल उत्पादन में आ रही कमी?

किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट का कहना है कि आप नैनो के उपयोग पर जोर देकर उत्पादन बढ़ाने की सलाह दे रहे हैं, लेकिन आपकों इससे पहले पंजाब कृषि विश्व विद्यालय के अध्ययन पर भी गौर करना होगा। उन्होंने कहा कि विश्व विद्यालय के एक अध्ययन में नैनो यूरिया के उपयोग पर धान की उपज में  13 प्रतिशत व गेंहू की उपज में 21.6 प्रतिशत कमी दर्ज की गई थी। पंजाब विश्व विद्यालय के अध्ययन की यह रिपोर्ट विकट परिस्थिति का संकेत देती है।

रामपाल जाट प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान जनरल प्लांट सोइल में 10 अगस्त 2023 के अंक में प्रकाशित वैज्ञानिक मैक्स फै्रंक और सोरेन हस्टीड की रिपोर्ट को हवाला देते हुए कहते हैं कि दोनों वैज्ञानिकों ने रहस्योद्घाटन किया था कि भारत की एक उर्वरक कंपनी मिथ्या प्रचार के आधार पर विपणन के जरिए खाद्य सुरक्षा के लिए संकट को आमंत्रण दे रही है।

जाट का आरोप है कि भारत सरकार ने नैनो यूरिया के उपयोग की अनुमति जून 2021 में दी थी। वर्ष 2021 रबी की गेंहू की फसल में नैनो यूरिया के उपयोग के बाद पैदावार घटने से देश के किसान चिंतित हो गए। किसानों ने नैनो लेने से मना कर दिया तो सरकारी तंत्र ने जबरन देना शुरू कर दिया। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण गांव में देखने को मिल जाएगा जहां खाद्य विक्रेता दानेदार यूरिया का बैग तब ही देते हैं जब किसान साथ में नैनो यूरिया लेता है।

उन्होंने कहा कि 45 किलो दानेदार यूरिया के समान ही आधा लीटर नैनो यूरिया का मूल्य 240 रुपए निर्धारित किया गया है। दानेदार यूरिया में 20 किलोग्राम नाइट्रोजन प्राप्त होता है, जबकि आधा लीटर नैनों में 20 ग्राम ही नाइट्रोजन प्राप्त होता है। नाइट्रोजन के अभाव में फसलों की पैदावार घट जाती है। रामपाल जाट कहते हैं कि किसान के खेत को प्रयोगशाला मानकर उत्पादन व आयात में बढ़ोतरी का अध्ययन किया जाए। जो कि सरकार ने अभी तक नहीं किया है।

द मूकनायक ने सरकारी योजनाओं की धरातलीय हकीकत जानने के लिए सवाईमाधोपुर के जिले के किसान हंसराज मीना ने से बात की। हंसाराज मीना कहते हैं कि सरकारी योजना का लाभ लेना आम किसान के बस की बात नहीं है। आवेदन की प्रकियाएं इतनी जटिल हैं कि किसान यदि आवेदन करेगा तो फिर खुद की खेती नहीं संभाल पाएगा। आवेदन तो ऑनलाइन लिया जाता है, लेकिन इसकी सारी प्रक्रिया दस्तावेज सब ऑफलाइन एकत्रित करना होता है। ऑनलाइन आवेदन के बाद हार्ड कॉपी भी दफ्तार में जमा करवाना होता है। सरकार अनुदान की प्रक्रिया को भी आसान करें।

एक किसान हरी मीना ने कहा कि किसान रात दिन सर्दी, गर्मी बरसात खेतों में रहकर फसल पैदा करता है। बुवाई से लेकर कटाई तक अपनी मेहनत के साथ ही जुताई के साथ ही महंगे दाम पर खाद बीज खरीदता है, जब फसल बेचने जाते हैं तो लागत के अनुपात में मुनाफा नहीं मिलता। किसान की मजबूरी है कि उसे फसल तैयार होते ही बेचना पड़ता है। सरकार को चाहिए है कि किसान को फसल उत्पादन पर एमएसपी का गारंटी कानून भी बनाए। ताकि किसानों को भी व्यापारी की तरह मुनाफा हो सके।

इस दौरान सेमिनार में प्रोफेसर एलएन महावर, मुख्य प्रशिक्षक एसएन चौधरी, प्रोफेसर के.के. मीना, तथा कृषि विभाग के अधिकारियों द्वारा सेमिनार में विभिन्न सत्रों में राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत जिले के किसानों को बागवानी, बागवानी फसलों में पोषक तत्वों का प्रबंधन, मसाला कृषि एवं जैविक कृषि की नवीनतम पद्धतियों, मधुमक्खी पालन के लाभ आदि के बारे में जानकारी दी।

इस दौरान किसानों को संरक्षित खेती, ऑर्गेनिक फार्मिंग, वर्मी कम्पोस्ट निर्माण, प्लास्टिक मल्च की स्थापना व उद्यानिकी गतिविधियों, संरक्षित खेती, पॉली हाउस, शेडनेट हाउस, प्लास्टिक मल्च द्वारा सब्जियों की खेती से किसानों की आय में वृद्धि करने के तरीकों के बारे में जानकारी दी गई। परम्परागत कृषि के साथ-साथ रजनीगंधा, ग्लेडियोलस, गुलाब, गुलदाउदी आदि फूलों की खेती करने की तकनीक से अवगत करवाया गया।

सेमिनार के दौरान जिले के प्रगतिशील किसान कुस्तला निवासी गजानन्द जाट, खिलचीपुर निवासी मोहन लाल बैरवा, चौथ का बरवाड़ा निवासी प्यारेलाल, गंगापुर निवासी राधेश्याम मीना ने जैविक खेती, फूल उत्पादन, मधु मक्खी पालन, पॉली हाउस आदि क्षेत्रों में अपनाए गए नवाचारों से उनकी आय वृद्धि एवं जीवन स्तर में हुए सुधार के बारे में बताकर अन्य किसानों को प्रेरित किया।

सेमिनार में संयुक्त निदेशक कृषि रामराज मीणा, परियोजना निदेशक आत्मा अमर सिंह, उप निदेशक उद्यान चंद्रप्रकाश बढ़ाया, उप निदेशक फूल उत्कृष्टता केन्द्र लखपत मीना सहित अन्य अधिकारियों ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

किसान महापंचायत राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने द मूकनायक से बात करते हुए कहा कि 70 के दशक में देश के वित्त मंत्री रहे टीटी कृष्णमाचारी ने कहा था कि किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य तथा उसकी उपज की खरीद उसके खेत से हो जावे तो, किसान स्वयं ही कृषि को उन्नत बना लेगा, लेकिन उस दिशा में आजतक सार्थक पहल नहीं हुई।

जाट कहते हैं कि दूसरी और हरित क्रांति के नाम से खेती का रासायनिकी एवं मशीनीकरण के कारण खेती में स्वावलंबन समाप्त हुआ है। प्रौद्योगिकी के नाम पर किसान खाद, बीज, कीटनाशक और ट्रैक्टर का परावलंबी बन गया। इस प्रौद्योगिकी से कंपनियां मालामाल हुई और किसान कंगाल हुआ।

उन्होंने कहा अमरूद के उत्पादन की तकनीकी की चाबी किसान के हाथ में होनी चाहिए अन्यथा यही स्थिति अमरूद उत्पादक किसानों की होगी।

किसान नेता रामपाल जाट ने एक सवाल के जवाब में कहा कि परंपरागत खेती में भी प्रौद्योगिकी थी। उस समय खेती से जो चारा बचता था वह बेल के काम आता था और जो बेल से बचता था वह खाद के रूप में खेत में काम आता। उसमें परस्पर पूरकता थी। किसान स्वावलंबी था। बीज, खाद, कीटनाशक स्वयं तैयार कर लेता था। कृषि के उपकरण के लिए गांव के ही खाती एवं लोहार तज्ञता प्राप्त थे। यह वैज्ञानिक खेती थी। जिसे अवैज्ञानिक बताया गया था।

उन्होंने कहा, आश्चर्य यह है कि अधिकारी तंत्र के जाल के अनुसार ही शासन करने वाले राजनेता उन्हीं की भाषा बोलने लग जाते हैं। इसे वे विकास का नाम कहकर प्रसारित करते हैं. आवश्यकता है नकल में अकल के उपयोग करने की। इस कारण जो कार्य सरकार को कृषि एवं किसानों के हित के लिए करने चाहिए थे वे तो किए जाते नहीं। वरन उसके उल्टे काम होते रहते हैं अच्छा होता किसानों को उनकी उपज के दाम दिलाने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानून बनाने की पहल होती। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में सुधार कर बीमित किसानों को क्लेम देने के लिए सुधार किए जाते। कृषि उपज मंडियो में किसानों के पक्ष में सुधार कर बिचौलियों से मुक्ति दिलाई जाती। उन्होंने कहा सबसे अधिक सुधारों की आवश्यकता कृषि क्षेत्र में है जिससे किसान ऋण मुक्त होकर खुशहाल बन सके.

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