राजस्थान: रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान में शिकारियों ने मार दी 145 नीलगाय, वन्यजीव प्रेमियों की बढ़ी चिंता

सवाईमाधोपुर स्थित है रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान, शिकारियों की गिरफ्तारी के बाद हुआ खुलासा, बाघ व अन्य वन्यजीवों की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर उठ रहे सवाल
पुलिस की गिरफ्त में आए शिकारी
पुलिस की गिरफ्त में आए शिकारी

जयपुर। राजस्थान के सवाईमाधोपुर स्थित रणथम्भौर टाइगर रिजर्व के कोर व बफर क्षेत्र में वन्यजीवों का शिकार यूं तो नई बात नहीं है, लेकिन हाल में रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान से सटे चौथ का बरवाड़ा सामाजिक वानिकी क्षेत्र में नीलगाय के शिकार प्रकरण ने वन्यजीव प्रेमियों से लेकर वनाधिकारियों की चिंता बढ़ा दी है।

इस इलाके से तीन मृत नीलगयों के साथ पकड़े गए सभी पांचों आरोपी टोंक व कोटा जिले के रहने वाले हैं। वन विभाग की प्रारम्भिक जांच में सामने आया है कि सवाईमाधोपुर -टोंक सीमा क्षेत्र में शिकारी गत 6 महीने से लगातार वन्यजीवों का शिकार कर रहे थे। आरोपियों ने बौलीं व चौथ का बरवाड़ा इलाके से 145 नीलगायों का शिकार किया है। जो कि एक बड़ा मामला है। इन शिकारियों के तार टाइगर पोचर से भी जुड़े होने की आशंका जताई जा रही है।

ऐसे आए पकड़ में

शिकारियों को पकड़ने वाली लेडी सिंघम के नाम से मशहूर चौथा का बरवाड़ा थानाधिकारी टीनू सोगरवाल ने द मूकनायक को बताया कि काफी समय टोंक जिले की सीमा क्षेत्र में वन्यजीवों के अवशेष मिलने की सूचना मिल रही थी। इस पर इंस्पेक्टर सोगरवाल ने अपने सूचना तंत्र को सक्रिय कर शिकारियों को पकड़ने की योजना बनाई।

शिकारियों से बरामद हथियार
शिकारियों से बरामद हथियार

टीनू सोगरवाल कहती है कि योजना के तहत हमने क्षेत्र में घेराबंदी कर शिकारियों को दबोच लिया। इनमें दो शिकारी बंदूकों के साथ भागने में सफल रहे। जबकि पांच शिकारियों को एक थार जीप में रखे सर पैर कटे तीन नील गायों के शवों के साथ गिरफ्तार किया गया। आरोपियों से चाकू, छुरे, कुल्हाड़ी, जिंदा व खाली कारतूस, छर्रे सहित अन्य शिकार के उपयोग आने वाली सामग्री जब्त की गई।

शिकारियों को पकड़ कर वन विभाग को सौंपा

चौथ का बरवाड़ा पुलिस ने शिकारियों को पकड़ने के बाद आईपीसी में मामला दर्ज करने की बजाय स्थानीय वन विभाग को सौंप दिया। सामाजिक वानिकी रेंजर दीपक शर्मा ने द मूकनायक से बात करते हुए दावा किया कि शिकारियों ने पूछताछ में 3 महीने में 145 नीलगायों के शिकार की बात कबूल की है। उन्होंने कहा कि, पूछताछ में पता चला कि यह लोग नीलगायों का शिकार करने के बाद 50 से 100 रुपए प्रति किलो में टोंक जिले में कुछ लोगों को मांस बेचते थे। एक को छोड़कर सभी आरोपी बागरिया जाति से हैं।

रेंजर ने कहा कि पूछताछ में मौके से भागे इनके दोनों शिकारी साथियों की पहचान कर ली गई है। इनके संदिग्ध ठिकानों पर वन विभाग की टीम दबिश दे रही है। इनके पकड़ में आने के बाद शिकार से जुड़े और भी खुलासे होने की संभावना है।

स्टाफ का टोटा

चौथ का बरवाड़ा रेंजर ने कहा कि यहां 20 से अधिक सुरक्षा गार्ड की जरूरत है। इसके मुकाबले केवल दो गार्ड हैं। हथियार के नाम पर केवल डंडे है। सरकारी वाहन नहीं है। निजी वाहन से गश्त करते हैं। ऐसे में शिकारियों को समय रहते पकड़ पाना बड़ी चुनौती है। यह सच है कि यह शिकारी पुलिस की मुस्तैदी से पकड़े गए हैं।

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सांभर हिरण का हुआ शिकार

पथिक लोक सेवा समिति सचिव मुकेश शीट कहते हैं कि जिले में शिकार का यह नया मामला नहीं है। यहां आए दिन वन्यजीव शिकार के मामले सामने आते रहते हैं। मीडिया में खबरें चलने तक पुलिस व वनाधिकारी शिकार रोकथाम के लिए सक्रिय नजर आते हैं। इसके बाद फिर भुला दिया जाता है। हाल ही में खण्डार में सांभर का शिकार करते महिला शिकारी पकड़ी गई। इससे पूर्व बसव कला के पास सांभर का सर व खाल मिले थे। फलोदी रेंज में चीतल को लटका कर ले जाते शिकारियों की फोटो खूब वायरल हुई थी। यहां शिकार के दर्जनों प्रकरण हुए हैं।

शीट आगे कहते हैं कि आधुनिक हथियारों से लैस शिकारियों को पकड़ने के लिए वनकर्मी हाथों में डंडा लेकर जाते हैं। यह कड़वा सच है कि पर्याप्त स्टॉफ तक नहीं है। ऐसे में वन एवं वन्यजीवों के संरक्षण की बात बेमानी है। सब जानते हैं कि जिले में वन्यजीवों के संरक्षण की क्या स्थिति है, लेकिन सब चुप हैं। अधिकारी वन्यजीवों के संरक्षण को लेकर उठाये जा रहे कदम व उपलब्ध संसाधनों को हकीकत सार्वजनिक करने से बचते हैं। विभाग को आमजन को पर्यावरण संरक्षण संतुलन के लिए वन्यजीवों के बचाने के लिए आमजन को साथ लाना होगा। तब जाकर वन एवं वन्य जीवों की हत्या रोकी जा सकती है।

बाघों पर शिकार का संकट!

यहां 9 सालों में 26 से अधिक बाघ लापता हुए हैं। सूत्रों की माने तो वह विभाग ने बाघों के लापता होने की गोपनीय सूचना सरकार को भेजी है। ऐसे में यहां से बाघों के असमय मौत के साथ ही शिकार की आशंका से भी इंकार नहीं कर सकते। रणथम्भौर की सीमाएं कोटा, बूंदी, करौली व धौलपुर जिलों के साथ ही मध्यप्रदेश की सीमा से भी लगती हैं। ऐसे में शिकार की आशंका से भी इनकार नहीं कर सकते। फरवरी 2020 में फलौदी रेंज में विभाग के कैमरे में चीतल ले जाते शिकारियों की फोटो ट्रेप हुई थी। 17 अप्रैल 2022 को अवैध तरीके से बंदूक लेकर घूम रहे शिकारियों को तालड़ा रेंजर ने पकड़ा था। यह उदहारण मात्र है।

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रणथम्भौरः 8 साल 100 वन्यजीवों का हुआ शिकार!

विश्व प्रसिद्ध रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान में वन एवं वन्यजीव संरक्षण के लिए प्रभावी मॉनिटरिंग के दावों के उलट वन्यजीवों के शिकार का सिलसिला लगातार चल रहा है। हाल ही में पुलिस की तत्परता से नीलगायों के शवों के साथ बाहरी जिले के शिकारी पकड़ में आने के बाद वन विभाग की प्रभावी मॉनिटरिंग की पोल खुल गई। इससे पूर्व रणथम्भौर की फलौदी रेंज के भैरूपुरा वन क्षेत्र में रात के अंधेरे में बंदूकधारी शिकारी चीतल का शिकार कर ले जाते फोटो ट्रेप कैमरे में कैद हुए थे।

स्थानीय मीडिया के अनुसार 2015 से अब तक रणथम्भौर में लगभग सौ वन्यजीवों का शिकार हो चुका है। शिकारियों ने बाघ से लेकर सांभर, हिरण, नीलगाय, चीतल, जंगली सुअर, खरगोश व मोर तक का शिकार किया है। शिकार से जुड़े मामलों में अधिकतर आरोपी पकड़े भी गए हैं।

तीन बाघों का हुआ शिकार

पिछले कुछ सालों में रणथम्भौर में तीन बाघों का शिकार हुआ है। इनमें से दो बाघों का शिकार 17 अप्रैल 2018 को हुआ था। रणथम्भौर की फलौदी रेंज के आवण्ड क्षेत्र में बाघिन टी-79 के दो शावकों का शिकार हुआ था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बाघ के शरीर में कीटनाशक के अंश मिलने के बाद वन विभाग ने अज्ञात शिकारियों के खिलाफ बाघों के शिकार के आरोप में मामला दर्ज किया था।

इसी तरह छाण में खेतों में आए बाघ टी-28 के शिकार की आशंका जताते हुए खण्डार थाना पुलिस ने 2019 में 11 लोगों को गिरफ्तार किया था।

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रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान

रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान राजस्थान के सवाईमाधोपुर जिले में स्थित है। यह उत्तर भारत के बड़े राष्ट्रीय उद्यानों में गिना जाता है। 392 वर्ग किलोमीटर में फैले इस उद्यान में अधिक संख्या में बाघों के साथ अन्य वन्यजीव भी विचरण करते हैं। यह उद्यान बाघों के लिए संरक्षित क्षेत्र माना जाता है। सवाईमाधोपुर शहर में रहने वाले शिक्षक मोईन खान कहते हैं कि रणथंभौर को भारत सरकार ने 1955 में ‘सवाई माधोपुर खेल अभयारण्य’ के तौर पर स्थापित किया था। इस दौर में देशभर में बाघों की संख्या कम होने लगी। सरकार ने इसे 1973 में ‘प्रोजेक्ट टाइगर अभयारण्य’ घोषित कर बाघों के संरक्षण की कवायद शुरू की। 1984 में रणथंभौर को राष्ट्रीय अभयारण्य घोषित कर दिया गया।

खान कहते हैं कि रणथंभौर अभयारण्य बाघ संरक्षित क्षेत्र घोषित होने के बाद यहां प्रचलित वन्यजीव शिकार पर सरकार ने पाबन्दी लगाने के लिए कड़े कदम भी उठाए। स्थानीय बस्तियों को भी संरक्षित वन क्षेत्र से बाहर निकाला गया है।

शिकार रोकने के लिए 1972 में बनाया कानून

वन्यजीवों के अवैध शिकार, मांस और खाल के व्यापार पर रोक लगाने के लिए भारत सरकार ने वर्ष 1972 में भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम पारित किया था। वर्ष 2003 में संशोधित कर भारतीय वन्य जीव संरक्षण (संशोधित) अधिनियम 2002 किया गया। संशोधन के माध्यम से दंड और जुर्माना को और कठोर किया गया।

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