राजस्थान: पर्यावरण की 'सेहत' सुधारने के लिए काम कर रही 'गूगल मैम'

सवाईमाधोपुर स्थित रणथम्भौर टाइगर रिजर्व में नेचर गाइड का काम कर रही आदिवासी महिला, पर्यावरण संरक्षण का दे रही संदेश।
नेचर गाइड सूरज बाई मीना
नेचर गाइड सूरज बाई मीना

जयपुर। राजस्थान के सवाईमाधोपुर जिला स्थित रणथम्भौर नेशनल पार्क एशियाटिक टाइगरर्स का सबसे बड़ा रहवास है। यहां नेचर गाइड के तौर पर काम कर रही एक महिला ने कई भाषाएं सीखी हैं ताकि विदेशी पर्यटकों के साथ ही स्थानीय लोगों को उनकी भाषा में पर्यावरण संरक्षण की सीख और तालीम दे सकें। इसके साथ ही वह स्कूलों में जाकर विद्यार्थियों को जंगल व जंगली जानवरों के बारे में शिक्षित कर रही हैं।

पर्यावरण संरक्षण के लिए किए जा रहे महती काम के लिए लोगों ने उनको ’जंगल की रानी’, ’गूगल मैम’ जैसे उपनामों से नवाजा है। द मूकनायक ने आदिवासी समाज से आने वाली नेचर गाइड सूरज बाई मीना से बातचीत की। पेश है रिपोर्ट:

सूरज बाई कहती है कि विद्यालयों के विशेष कार्यक्रमों में एसएमसी प्रबंधन अतिथि के रूप में बुलाने लगे हैं। वहां बच्चों को जंगल व वन्यजीवों के व्यवहार के बारे में बताती हूं। उनको पर्यावरण के महत्व को समझाती हूं ताकि आने वाली पीढ़ी का पर्यावरण से लगाव बढ़े। पर्यटकों को गांव भी लेकर जाती हूं। गांव वालों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने के साथ ही पर्यटन व्यवसाय के फायदों के बारे में बताना चाहती हूं। ताकि लोगों का प्राकृति के प्रति जुड़ाव बढ़ सके।

पर्यटकों के साथ नेचर गाइड सूरज बाई मीना
पर्यटकों के साथ नेचर गाइड सूरज बाई मीना

मीना आगे बताती है, आज भी गांव के लोगों की सोच है कि अंग्रेज आएंगे और लूट कर ले जाएंगे। त्योहार के मौके पर पर्यटकों को गांव ले जाती हूं। इन्हें गांव की संस्कृति से रूबरू करवाती हूं। आज भी गांवों में प्रकृति के साथ स्वच्छ पर्यावरण का माहौल मिलता है। पर्यटक आते हैं तो किसी न किसी तरह लोगों को रोजगार मिलता है।

उल्लेखनीय है कि रणथम्भौर नेशन पार्क की सीमा पर बसे गांव भूरिपहाड़ी की आदिवासी महिला ने नेचर गाइड के रूप में अपनी पहचान स्थापित करने तक काफी संघर्ष किया। महिला के संघर्ष का ही नतीजा है कि 2022 में गूगल की ब्रांड एम्बेसडर भी रहीं। गत 26 फरवरी 2023 को महिला नेचर गाइड का गूगल से करार खत्म हुआ है।

16 साल से कर रही नेचर गाइड का काम

मीणा पिछले 16 साल से रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान में नेचर गाइड के तौर पर काम कर रही हैं। वन विभाग ने मार्च 2007 में सूरजबाई के साथ अन्य तीन महिलाओं का भी चयन किया था। प्रशिक्षण के बाद अप्रैल 2007 से चयनित 4 महिलाओं ने नेचर गाइड के रूप में रणथंभौर में काम करना शुरू किया।

सूरज बाई कहती हैं कि शुरुआती दौर में साथी महिला गाइडों के साथ उसे भी कई चुनौतियों से जूझना पड़ा था। कुछ दिन काम करने के बाद 3 साथी महिलाओं ने यह काम छोड़ दिया, लेकिन वह मैदान में डटी रहीं।

द मूकनायक से बात करते हुए आगे वह कहती हैं कि जब वह नेचर गाइड के रूप में पर्यटकों के साथ जंगल सफारी पर जाती तो अंग्रेजी तो दूर की बात वह देशी-विदेशी पर्यटकों के सामने ठीक से हिंदी भी नहीं बोल पाती थीं। इससे लोग उसकी हंसी भी उड़ाते थे।

सूरज बाई आगे कहती हैं कि नेचर गाइड में चयन के बाद ट्रेनिंग के दौरान भी उसे कुछ समझ नहीं आता था। एक बार तो हिम्मत टूट गई, लेकिन फिर गांव वालों के तानों की याद दिलाते हुए भाई हेमराज ने हिम्मत बंधाई। सूरज बाई कहती हैं कि भाई के हिम्मत देने पर मन में ठान लिया कि इस क्षेत्र में नाम कमाना है।

नेचर गाइड सूरज बाई मीना
घर, परिवार और खेती संभालती महिला किसान के संघर्षों की कहानी

'आज भी सीख रही हूं'

मीणा कहती हैं कि भूरिपहाड़ी गांव रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान की सीमा से सटा हुआ है। पिता मवेशी चराने जाते तो बचपन में उनके साथ जंगल में जाती थी। इस लिए बचपन से जंगल व जानवरों के करीब रही। गांव के दूसरे किनारे पर बनास नदी बहती है तो पक्षियों से भी परिचित थी, लेकिन वह इन परिंदों व जानवरों के इंग्लिश नाम नहीं जानती थीं।

मीणा ने कहा कि यह अज्ञानता मेरे लिए चुनौती थी। मेरी इस परेशानी को समझते हुए मेरे भाई हेमराज मीणा ने इंग्लिश नाम को हिंदी में लिख कर दिया। उच्चारण भी बताया। एक साल तक प्रतिदिन सुबह व शाम नदी के किनारे जाकर इन परिंदों का बुक से मिलान करती फिर इनके साइंटिफिक नाम को याद करती। जंगल में जाती फिर ग्राफ वर्ड्स का मिलान करती। उस दौर में पर्यटक बहुत कम आते थे, जिस दिन मुझे गेस्ट नहीं मिलते तो मैं सीनियर्स के साथ जंगल में जाती और यह देखती कि पर्यटकों को कैसे गाइड करते हैं। वह पर्यटकों से बात करते उनके शब्दों को लिखकर याद करती थी।

गूगल मैम तक का संघर्ष

सूरज बाई मीना ने द मूकनायक से बात करते हुए कहा कि प्रारम्भिक शिक्षा गांव के सरकारी स्कूल से ली। इसके बाद गांव से लगभग 35 किलोमीटर दूर सवाईमाधोपुर शहर स्थित राजकीय बालिका स्कूल से 12वीं की पढ़ाई की। इंटर पास करने के बाद इसी शहर में रहकर राजकीय बालिका महाविद्यालय से ग्रेजुएशन किया। बीएड जोधपुर से की। उसके बाद एम.ए. पीजी कॉलेज सवाईमाधोपुर से किया है।

उस दौर में गांवों में विशेषकर डांग क्षेत्र में बालिका शिक्षा का महत्व नहीं था। बेटी को पढ़ाने से परिवार के लोग गुरेज करते थे। ज्यादा से ज्यादा गांव के स्कूल में पढ़ाने के बाद बेटी की पढ़ाई बन्द करवा दी जाती थी। मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ था। मेरी गांव के स्कूल से पढ़ाई के बाद मेरे भाई हेमराज मीना ने आगे की शिक्षा के लिए शहर ले जाने की बात परिवार के सामने रखी तो एक स्वर में पूरा परिवार मेरी शिक्षा के विरोध में खड़ा हो गया था।

पिता जी ने कहा कि यह पढ़ गई तो इससे कोई शादी भी नहीं करेगा। गांव वाले ताने मरेंगे सो अलग। हालांकि सूरज बाई के भाई ने पिता को समझा कर सवाईमाधोपुर के राजकीय बालिका स्कूल में दाखिला करवा दिया।

सूरज बाई ग्रामीण क्षेत्र में बालिका शिक्षा के प्रति नकारात्मक सोच का कारण दहेज प्रथा को मानती है। उस दौर में यदि बेटी पढ़ी लिखी होती थी तो घर वालों को शादी में अधिक धन खर्चना पड़ता था। हालांकि अब शिक्षा के साथ गांवों से यह नकारात्मक सोच खत्म होने लगी है। अब गांव-गांव बालिका शिक्षा प्रति विशेष रुझान है।

नेचर गाइड बनी तो लोगों ने ताने मारे

मीना ने कहा कि 12वीं की पढ़ाई करते हुए उसका नेचर गाइड में चयन हो गया। इस बात का पता गांव वालों को चला तो फिर परिवार वालों को ताने मारने लगे। लोगों ने यहां तक कहा कि अब यह छोरी अंग्रेजों के साथ जंगल में घूमेगी। यह सही नहीं है। अंग्रेज इसे अपने साथ ले गए तो समाज मे गांव वालों की नाक कट जाएगी।

गांव वालों की नकारात्मक बातें सुनकर नेचर गाइड के रूप में काम करने से मना कर दिया गया। वह कहती है एक बार फिर भाई ने पिता को विश्वास में लेकर मुझे नेचर गाइड के रूप में काम करने की अनुमति देने के लिए पिता को राजी कर लिया।

यह चुनौती भी आई सामने

सूरज बाई ने कहा कि नेचर गाइड का काम करते हुए 2011 में करोली जिले के कटकड गांव में उनकी शादी हुई। शादी के बाद ससुराल में भी नेचर गाइड के काम के लिए चुनौतियों का सामना करना पड़ा। ससुराल पक्ष के लोगों ने पति पर दबाव बनाया कि बहू से नेचर गाइड का काम नहीं करवाए। इससे समाज में सवाल उठते हैं। परिवार के दबाव में पति ने उसे काम करने से रोक दिया। सूरज बाई ने कहा कि पारिवारिक कारणों से कुछ दिन काम पर नहीं जा सकी। बाद में ससुर जो कि सेवानिवृत्त शिक्षक हैं। उन्होंने कहा कि यदि बहु नेचर गाइड का काम करना चाहती है तो इसमें दिक्कत क्या है। बाद में उन्होंने काम की इजाजत दे दी। वह कहती हैं कि गांव में आज भी घूंघट की परम्परा है। वह खुद आज भी गांव में इस परंपरा का निर्वहन करती हैं।

सूरज बाई कहती है कि रणथम्भौर में लम्बे समय से वह अकेली महिला गाइड है। कड़ी मेहनत व संघर्षों से उसे पहचान मिली है। गत वर्ष उसे गूगल ने ब्रांड एम्बेसडर चुना। अखबारों में खबरें छपी तो अब गांव वाले भी उसके काम की तारीफ करने लगे हैं। अब कोई भी परिवार के लोगों को ताने नहीं मारता।

आपको बता दें कि सूरज बाई मीना नेचर गाइड के साथ घर के काम भी बखूबी करती हैं। घर में झाड़ू-पोछे के साथ मवेशियों को चारा डालने से लेकर दूध दोहने का काम भी खुद ही करती हैं। इस तरीके से वह दोहरी भूमिका निभाती है।

नेचर गाइड सूरज बाई मीना
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