अफ्रीकी चीतों को रणथम्भौर के बाघों से खतरा, विशेषज्ञों ने जताई आशंका

रणथम्भौर के बाघ
रणथम्भौर के बाघ

रणथम्भौर टाइगर रिजर्व व कूनो-पालपुर नेशनल पार्क टाइगर कॉरीडोर का हिस्सा, बाघों का रहता है मूवमेंट

जयपुर। देश में 70 साल बाद अफ्रीकी चीतों (African cheetahs) की वापसी हुई है। जश्न के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्य प्रदेश के कूनो-पालपुर नेशनल पार्क (Kuno-Palpur National Park) में बने एनक्लोजर (बाड़े) में 8 चीतों को छोड़ा है। यहां यह चीते वन्यजीव विशेषज्ञों की निगरानी में रहेंगे, लेकिन इन चीतों की एनक्लोजर से आजादी के बाद सुरक्षा को लेकर वन्यजीव विशेषज्ञ (wildlife expert) चिंतित है। वनाधिकारी भी सुरक्षा के माकूल इंतजाम के दावों के साथ इस बात को स्वीकारते हैं। आशंका जताई जा रही है कि इन मेहमान चीतों के लिए रणथम्भौर टाइगर रिजर्व (Ranthambore Tiger Reserve) के बाघ काल बन सकते हैं। इसकी मुख्य वजह रणथम्भौर के बाघों का अक्सर कूनो नेशनल पार्क (Kuno National Park) में आना-जाना है। अभी हाल में रणथम्भौर लौटा टी-38 कूनो में डेरा डाले रहा था। टी-56 भी इंडाला इलाके से एमपी के वनक्षेत्रों के चक्कर लगा चुका है।

टाइगरों से खतरा

ऐसी आशंका है कि कूनो के मेहमान चीतों के लिए रणथम्भौर के बाघ खतरा साबित होंगे। विशेषज्ञ बताते हैं कि श्योपुर कूनो-पालपुर नेशनल पार्क का जंगल एमपी के शिवपुरी व राजस्थान के बारां जिले से सटा हुआ है। यह जंगल राजस्थान के ही मुकुंदरा हिल टाइगर रिजर्व व रणथम्भौर नेशनल पार्क तक कॉरिडोर बनाता है। ऐसे में यहां से कूनो में टाइगर की एंट्री व चीतों का रणथम्भौर तथा मुकन्दरा में प्रवेश से इनकार नहीं कर सकते हैं। रणथम्भौर नेशनल पार्क (Ranthambore Tiger Reserve) के अधिकारी भी इस बात को मानते हैं कि रणथम्भौर से चंबल नदी पार कर टाइगर मध्य प्रदेश के कूनो तक जाते रहे हैं। रणथम्भौर का टी-38 कूनो व इसके आस-पास के इलाके में विचरण कर बीते दिनों वापस रणथम्भौर लौटा है। रणथम्भौर के टाइगरों के कूनो इलाके में मूवमेंट की बात से कूनो के अधिकारी भी भलीभांति परिचित हैं।

सुरक्षा के माकूल इंतजाम का दावा

द मूकनायक ने रणथम्भौर बाघ परियोजना के उपवन संरक्षक संग्राम सिंह से कूनो लाए गए अफ्रीकी चीतों (African cheetahs) की सुरक्षा को लेकर बात की, "कूनो में 8 चीते लाए गए हैं। फिलहाल इनका वन्यजीव विशेषज्ञों की निगरानी में ट्रायल करवा रहे हैं। इनका व्यवहार कैसा रहेगा। अफ्रीका में जिस जगह से यह चीते आए हैं। वहां अफ्रीकी लॉयन भी रहते हैं।" उन्होंने माना कि, चीता बहुत बड़ा जानवर तो नहीं है। बस इसकी खूबी फास्ट मूविंग है। टाइगर से खतरे के सवाल पर कहा कि फ्यूचर में जब कभी यह परिस्थिति आएगी कि चीता व टाइगर का आमना सामना हुआ तो चीता अपना सुरक्षित स्थान खोजने का प्रयास करेगा। चीता व टाइगर के बीच कभी फाइट नहीं होगी। क्योंकि फाइट करने की स्थिति में चीता कभी नहीं होता है। जिस तरह हमारे यहां लैपर्ड की स्थिति है। वैसे ही चीता की रहेगी।

सिंह ने कूनो के अधिकारियों से हुई बात का हवाला देते हुए कहा कि, "सुरक्षा को लेकर कूनो के अधिकारियों ने भी व्यवस्थाएं पूरी कर रखी है। जब चीतों को एनक्लोजर से खुले में छोड़ा जाएगा तो टाइगर की एंट्री पर चौकस निगाहे रहेंगी।" उन्होंने कहा कि, "णथम्भौर के खण्डार इलाके से अक्सर टाइगर चंबल पार कर कूनो की तरफ निकल जाते हैं। इसी आशंका के चलते इस रूट पर उन्होंने कैमरे लगा रखे है। ताकि कोई भी जानवर जाएगा तो ट्रेस कर लेंगे। सुरक्षा को लेकर काफी इंतजामात किए हैं।" उन्होंने कहा कि, वहां के अधिकारी भी जानते हैं कि टी-38 चंबल पार से 10 साल बाद वापस रणथम्भौर लौटा है।

राजस्थान में वन्यजीव व पर्यावरण संरक्षण को लेकर काम कर रही पथिक लोक सेवा समिति के संस्थापक व सचिव मुकेश शीट ने द मूकनायक को बताया कि, "बाघ बहुत ताकतवर वन्यजीव है। चीता के लिए हमारे यहां पाए जाने वाला लेपर्ड भी खतरा है। ऐसे में आमना-सामना होने पर टाइगर से चीतों का बच पाना मुश्किल होगा। रणथम्भौर का टाइगर 280 किलोमीटर तक सफर कर चुका है। यहां के टाइगर उदयपुर के राजसमंद, बूंदी, मुकन्दरा व बारां जिले तक पहुंचते रहे हैं। ऐसे में रणथम्भौर से चंबल नदी पार कर 70 से 80 किलोमीटर का सफर तय करना टाइगर के लिए मुश्किल नहीं है। यहां के टाइगरों का चंबल नदी पार कर कूनो के जंगलों में अक्सर मूवमेंट रहता है।" उन्होंने कहा कि, 2007 में जन्मा टी-38 दो साल की उम्र में रणथम्भौर के सुल्तानपुर इलाके से 2009 में चंबल नदी पार कूनो गया था। यह 10 साल बाद वापस रणथम्भौर लौटा। इसी तरह टी-26 का बेटा टी-56 भी 2013 में इंडाला इलाके से चंबल नदी पार कर एमपी में पहुंचा था।

उक्त बातों से वनाधिकारी भी वाकिफ हैं। मुकेश कहते है कि, "यहां वन्यजीवों पर राजनीति कर व्यवसाय को बढ़ावा दिया जा रहा है। पूर्व में हुए एक सर्वे में राजस्थान के चूरू जिले में तालछापर इलाका चीतों के लिए सर्वश्रेष्ठ इलाका माना गया था। यह पूरा मैदानी इलाका है। यहां काले हिरण हैं। पैंथर का मूवमेंट भी नही है। ऐसे में यह चीतों के लिए सबसे सुरक्षित इलाका माना गया था।"

यह भी है दावा

एमपी के वन विभाग से जुड़े सूत्रों का दावा है कि, "कूनो के मेहमान चीते क्वारन्टीन समयावधि पूरी करने के बाद पार्क से बाहर न जाएं। इस पर पूरा फोकस रहेगा। चीता जंगल में छोड़े जाने के बाद शिवपुरी व बारां जिलों की सीमा पर चौकी बना कर निगरानी की जाएगी। कालर आईडी लगे होने से इनके मूवमेंट पर नजर रहेगी।"

द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.

Related Stories

No stories found.
The Mooknayak - आवाज़ आपकी
www.themooknayak.com