क्या बड़े भूकंप के लिए तैयार है भारत?

क्या बड़े भूकंप के लिए तैयार है भारत?

नई दिल्ली। तुर्की और सीरिया में शक्तिशाली भूंकप ने भयंकर तबाही मचाई है। रिक्टर स्केल पर भूकंप की तीव्रता 7.8 मापी गई, जिस वक्त भूकंप आया उस वक्त लोग अपने घरों में सो रहे थे। कई इमारतें भी मलबे में तब्दील हो गई है। विनाशकारी भूकंप के चलते 7700 से ज्यादा जानें चली गई हैं। कई प्रमुख शहरों में खोज और बचाव कार्य जारी है।

तुर्की में आए भूकंप ने पूरे विश्व में डर की स्थिति पैदा कर दी है। क्या भारत भी तैयार है? आए दिन भारत में कई जगह भूकंप आते रहते हैं। तुर्की में आए भूकंप पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी भुज में आए भूकंप को याद किया है। भुज में आए भूकंप से भी भारत को जान माल का बहुत बड़ा नुकसान हुआ था। 26 जनवरी 2001 को देश 52 गणतंत्र दिवस मना रहा था। इसी दिन सुबह करीब 8.45 बजे गुजरात के कच्छ जिले के भुज में भीषण भूकंप आया था, जिसमें करीब 20 हजार लोगों की जान चली गई थीं और हजारों लोग घायल हुए थे। भूकंप के झटके अहमदाबाद और अन्य शहरों में भी महसूस किए गए थे। उस समय भुज में 7.7 तीव्रता का भूकंप आया था।

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देश की राजधानी दिल्ली सहित कई शहरों में भूकंप के झटके साल भर महसूस किए जाते हैं, कितनी बार तो भूकंप के झटकों के बाद लोग दहशत में अपने घरों और इमारतों से बाहर निकल आते हैं। देश में इस भूकंप के चलते किसी तरीके के जानमाल का नुकसान नहीं होता है। लेकिन अगर भूकंप की तीव्रता थोड़ी और होती तो यकीन मानिए दिल्ली एनसीआर में बड़ी तबाही मच सकती थी। क्योंकि यहां लाखों लोग ऐसे घरों में रहते हैं जो बड़ा भूकंप झेलने के लिए तैयार नहीं हैं।

द मूकनायक ने इस मामले को लेकर पड़ताल की तो चौकाने वाले तथ्य सामने आए। एक रिपोर्ट के अनुसार गत दशकों में दिल्ली एनसीआर में निर्माण कार्य तेजी से हुआ है। यहां 30-35 मंजिला गगनचुंबी इमारतें भी बड़ी संख्या में बनी हैं। इनमें मानदंडों की अनदेखी की गई है। इसके अलावा जिन बिल्डिंगों को बने 30 साल हो चुके हैं, उन्हें भी सुरक्षित नहीं कहा जा सकता। कोई भी हाइराइज इमारत अथवा पुराना घर शक्तिशाली भूकंप से कितना प्रभावित होगा, यह कई चीजों पर निर्भर करता है। जैसे उस इमारत में यदि मैटीरियल इस तरह जोड़कर लगाया गया है कि वह अलग-अलग दिशाओं में व्यवहार करता है तो इमारत में भूकंप के दौरान दरार आने या गिरने का खतरा पैदा हो जाता है। निर्माण में इस्तेमाल होने वाले सरिये की लैब में जांच करवाए बिना उसका इस्तेमाल करना, नई या पुरानी इमारत के आस-पास लंबे समय तक जलभराव की समस्या, रखरखाव का अभाव, कई सालों तक इमारत पर पेंट नहीं होना या सीमेंट का उखड़ते रहना और खराब माल का इस्तेमाल आदि भी इमारतों को कमजोर बनाता है।

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गाइडलाइंस जारी, लेकिन नहीं हो रहा पालन!

नेपाल में आए भूकंप के बाद केंद्र सरकार की ओर से इमारतों या कंस्ट्रक्शन साइटों के रीसर्टिफिकेशन को लेकर नई गाइडलाइंस भी जारी की गई थीं, जिनमें पुरानी बिल्डिंगों को स्ट्रक्चरल इंजीनियर्स से रीसर्टिफाई कराना अनिवार्य किया गया है। लेकिन इसके लिए पैच टेस्ट करना होता है, जिसमें कंक्रीट का सैंपल लेकर उसे लैब में भेजा जाता है। वहीं भवन निर्माण में जो सरिया का इस्तेमाल होता है, उसकी भी जांच कराई जानी जरूरी है, लेकिन हो क्या रहा है? 2007-08 के बाद निर्माण कार्य अब कोरोना के बाद बहुत तेज गति से हो रहा है, लेकिन उस गति से नियमों का पालन नहीं हो रहा।

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जानकारों का कहना है कि, अरावली दिल्ली फोल्ड बेल्ट, दिल्ली से उदयपुर तक कम तीव्रता वाला भूकंप क्षेत्र है, लेकिन अत्यधिक पंपिंग के कारण भूजल स्तर में गिरावट और पहाड़ियों की अंधाधुंध कटाई से कभी गंभीर भूकंप आ भी सकता है। अगर ज्यादा तीव्रता का कोई भूकंप आता है तो स्थिति विकट हो सकती है। सॉइल एंड वॉटर एक्पर्ट इंजीनियर डॉ. अनिल मेहता कहते हैं कि, हमारे पास भूकंप संगत भवन डिजाइन के प्रावधान हैं और उनका सैद्धांतिक रूप से अनुपालन किया जाता है। लेकिन सच ये है कि भवनों के निर्माण के दौरान डिजाइन की जांच और निष्पादन की कोई व्यवस्था नहीं है। इमारतों को डिजाइन करते समय भूकंप पर बीआईएस कोड का पालन किया जाना चाहिए। यदि कोई इंजीनियर डिजाइन करता है, तो वह बीआईएस प्रावधानों को शामिल करता है, लेकिन मुद्दा निष्पादन का है। यूआईटी, नगर निगम, ग्राम पंचायत आदि जैसी अनुमति देने वाली एजेंसियों द्वारा डिजाइन और निष्पादन की जांच की जानी चाहिए, लेकिन ऐसा करने के लिए कोई प्रशिक्षित व्यक्ति इन निकायों में नहीं है। इसके अलावा, भूकंप शमन पर आम लोगों को ना कोई खास जानकारी है ना ही कभी प्रशिक्षण ही दिया गया है।

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भोपाल में बन रहे हैं भूकंप रोधी भवन

राजधानी भोपाल में शासकीय और सभी अशासकीय भवन एवं बिल्डिंगों को अब भूकंप रोधी बनाया जा रहा है। दरअसल भोपाल शहर में भवन निर्माण अनुमति के नगर पालिका निगम अनुमति देता है। इस अनुमति के पहले भवन का नक्शा स्वीकृत करना होता है। जिसका डिजाइन पूर्व से ही भूकंप रोधी होता है। द मूकनायक से बातचीत करते हुए भोपाल के सिविल इंजीनियर विनीत समाधिया ने बताया कि, बिल्डिंग को भूकंप रोधी बनाने के लिए फाउंडेशन को मजबूत बनाना होता है। क्योंकि फाउंडेशन ही भूकंप के झटकों से बिल्डिंग को गिरने से बचाता है। समाधिया ने बताया की फाउंडेशन का डिजाइन बिल्डिंग की मैपिंग के वक्त ही पूरा कर लिया जाता है। उन्होंने कहा कि अब सभी शहरी क्षेत्रों में भूकंपरोधी नक्शा ही स्वीकृत किया जाता है। जिसकी जांच एक टेक्निकल टीम करती है।

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यूपी जोन चार में..

असल एपीआई के असिस्टेंट जनरल मैनेजर अमोद प्रभात ने बताया कि, लखनऊ भूकम्प के मानकों में जोन चार में आता है। जोन चार में आने वाले क्षेत्रों में भूकम्प के झटके बहुत ही हल्के होते हैं। लखनऊ में अधिकांश निर्माण भूकम्प रोधी होता है। निर्माण के दौरान कई बार भवन की मजबूती जांचने के लिए सॉयल टेस्ट, कॉन्क्रीट की मजबूती जांचने के लिए क्यूब बनाकर उसकी टेस्टिंग भी की जाती है।

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