भोपाल। आयुष्मान भारत योजना के तहत इलाज करने वाले अस्पतालों को अब कड़े मानक पूरे करने होंगे। मध्यप्रदेश सरकार ने आदेश जारी किया है कि 1 अप्रैल 2026 से केवल वही अस्पताल आयुष्मान योजना के तहत इलाज कर पाएंगे, जिनके पास एनएबीएच (नेशनल एक्रेडिटेशन बोर्ड फॉर हॉस्पिटल्स) का फाइनल लेवल क्वालिटी सर्टिफिकेट होगा।
इस आदेश के बाद प्रदेशभर के करीब 1,624 अस्पतालों में से अधिकांश पर संबद्धता समाप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। वर्तमान में केवल 295 अस्पताल ही एनएबीएच मानक पूरे करते हैं।
90% अस्पताल मानक पूरे नहीं कर पाएंगे
मध्यप्रदेश में अभी 984 सरकारी और करीब 640 निजी अस्पताल आयुष्मान योजना से जुड़े हुए हैं। इनमें से महज 295 ही एनएबीएच सर्टिफिकेट प्राप्त हैं।
भोपाल में स्थिति: 29 सरकारी और 194 निजी अस्पतालों में से केवल 85 के पास ही एनएबीएच प्रमाणन है। यही हाल इंदौर, जबलपुर और ग्वालियर जैसे बड़े शहरों का भी है।
अस्पताल संचालकों का कहना है कि करीब 90% अस्पताल इन मानकों को पूरा नहीं कर पाएंगे। ऐसे में लाखों आयुष्मान कार्डधारकों को सामान्य बीमारियों के इलाज से वंचित होना पड़ सकता है।
मरीजों पर असर
आयुष्मान कार्डधारक ज्यादातर बुखार, डेंगू, टायफाइड, छाती और पेट की बीमारियों सहित छोटी सर्जरी में इस योजना की सेवाएं लेते हैं। अगर अस्पताल एनएबीएच सर्टिफिकेट नहीं ले पाए, तो कार्डधारकों को सामान्य इलाज के लिए भी जेब से पैसा खर्च करना होगा।
बड़े अस्पताल जहां यह सर्टिफिकेट मौजूद है, वे अकसर सामान्य बीमारियों का इलाज करने से बचते हैं। मरीज भी छोटी बीमारियों के लिए बड़े अस्पतालों में नहीं जाना चाहते।
शिकायतों के बाद सरकार सख्त
सरकार का यह कदम लगातार मिल रही शिकायतों के बाद उठाया गया है। कई अस्पतालों में जितने बेड के लिए मान्यता मिली, उतने बेड वास्तव में मौजूद ही नहीं थे। निरीक्षण में ये शिकायतें सही पाई गईं। कई अस्पतालों में इमरजेंसी और संक्रमण नियंत्रण जैसी बुनियादी सुविधाएं भी नहीं थीं।
आयुष्मान भारत निरामया योजना, मध्यप्रदेश के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) डॉ. योगेश भरसट ने बातचीत में बताया कि प्रदेश में लगातार यह शिकायतें सामने आ रही थीं कि कई अस्पताल योजना के तहत मरीजों को अपेक्षित सुविधाएं और गुणवत्तापूर्ण इलाज उपलब्ध नहीं करा रहे हैं। इन शिकायतों को गंभीरता से लेते हुए विभाग द्वारा निरीक्षण करवाया गया। निरीक्षण में पाया गया कि अधिकांश शिकायतें सही हैं और वास्तव में कुछ अस्पतालों में मानक स्तर की स्वास्थ्य सेवाएं नहीं दी जा रही थीं।
डॉ. भरसट ने कहा कि सरकार की प्राथमिकता यह सुनिश्चित करना है कि आयुष्मान भारत योजना के अंतर्गत गरीब और जरूरतमंद मरीजों को उच्च स्तर की चिकित्सा सेवाएं बिना किसी भेदभाव और बाधा के मिल सकें। इसके लिए अब स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं कि केवल वही अस्पताल योजना में पंजीकृत रहेंगे, जिनके पास एनएबीएच (National Accreditation Board for Hospitals) का प्रमाणपत्र होगा।
उन्होंने यह आगे कहा, कि एनएबीएच सर्टिफिकेट यह सुनिश्चित करता है कि अस्पतालों में बुनियादी सुविधाओं से लेकर डॉक्टरों और नर्सों की कार्यप्रणाली तक सबकुछ राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप हो। इससे न केवल मरीजों को बेहतर उपचार मिलेगा, बल्कि पारदर्शिता और जवाबदेही भी बढ़ेगी।
सीईओ ने आगे कहा कि जिन अस्पतालों के पास अभी यह सर्टिफिकेट नहीं है, उन्हें एक निर्धारित समयसीमा में एनएबीएच सर्टिफिकेट लेना होगा, अन्यथा वे योजना के अंतर्गत सेवाएं देने के योग्य नहीं रहेंगे। सरकार का उद्देश्य यह है कि आने वाले समय में आयुष्मान भारत निरामया योजना को लेकर मरीजों का विश्वास और मजबूत हो तथा उन्हें उच्च गुणवत्ता की स्वास्थ्य सेवाएं सुनिश्चित मिल सकें।
एनएबीएच सर्टिफिकेट क्या है?
एनएबीएच (National Accreditation Board for Hospitals) को अस्पतालों का सर्वोच्च ग्रेड माना जाता है। इसकी जांच 600 से अधिक मानकों पर की जाती है। इनमें शामिल हैं
सुरक्षा: आईसीयू, ओटी, एनआईसीयू, डायलिसिस यूनिट, संक्रमण नियंत्रण।
इन्फ्रास्ट्रक्चर: पर्याप्त जगह, वेंटिलेशन, हाईजीन, इमरजेंसी, ब्लड बैंक, रेडियोलॉजी, पैथोलॉजी।
स्टाफ क्वालिफिकेशन: योग्य डॉक्टर, प्रशिक्षित नर्सें, क्वालिटी मैनेजर, इंफेक्शन कंट्रोल ऑफिसर।
प्रक्रियाएं व डॉक्यूमेंटेशन: लिखित एसओपी, इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड, नियमित ऑडिट।
आपातकालीन तैयारी: 24x7 इमरजेंसी सेवा, फायर सेफ्टी और आपदा प्रबंधन।
सरकार का कहना है कि यह फैसला मरीजों को सुरक्षित और गुणवत्तापूर्ण इलाज सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है। लेकिन दूसरी ओर, अस्पताल प्रबंधन मानता है कि इतने सख्त मानक पूरे करना आसान नहीं है।
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