MP: माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय में गेस्ट फेकल्टी में आरक्षित वर्गों को 63% नहीं दिया प्रतिनिधित्व

राज्य शासन के नियमानुसार 63% आरक्षित वर्ग की हिस्सेदारी होनी चाहिए थी, लेकिन बावजूद इसके विश्वविद्यालय में वर्तमान में अतिथि शिक्षकों की भर्ती में 20% से भी कम शिक्षक आरक्षित वर्ग से चयनित किए गए हैं।
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भोपाल। राजधानी के माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय (एमसीयू) में अतिथि शिक्षकों की नियुक्तियों को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। विश्वविद्यालय प्रशासन पर गंभीर आरोप लगे हैं कि उसने चयन प्रक्रिया में आरक्षण के नियमों का पालन नहीं किया और अयोग्य उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी! इन आरोपों ने राज्य की उच्च शिक्षा व्यवस्था और भर्ती प्रणाली की पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। साथ ही अजाक्स ने भी इस मामले पर सरकार से हस्तक्षेप कर जांच कराने की मांग की है।

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया विभाग में अतिथि शिक्षक के रूप में चयनित डॉ. अभिषेक यादव का कहना है कि चयनित होने के बावजूद उन्हें एक भी क्लास नहीं दी गई। वे विश्वविद्यालय के जनसंचार विभाग के टॉपर रह चुके हैं और उस समय कुलपति द्वारा 5000 के चेक से सम्मानित भी हुए थे। इसके बावजूद, उनके अनुसार, विभागाध्यक्ष प्रोफेसर मोनिका वर्मा द्वारा उनके साथ भेदभाव किया गया।

उन्होंने आरोप लगाया कि जब उन्होंने कुलसचिव और कुलपति से न्याय की मांग की तो भी कोई कार्रवाई नहीं हुई। उनका दावा है कि यह केवल उनके साथ नहीं, बल्कि अन्य योग्य उम्मीदवारों के साथ भी हुआ है।

आरक्षण की अनदेखी

डॉ. यादव का सबसे गंभीर आरोप आरक्षण नियमों को लेकर है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय ने राज्य शासन के दिशा-निर्देशों की अनदेखी की, जिसके तहत आरक्षित वर्गों को 63% प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए।

भोपाल कैंपस: 113 में से केवल 25 अतिथि शिक्षक आरक्षित वर्ग से (20%)

रीवा कैंपस: 27 में से सिर्फ 1 आरक्षित वर्ग से (लगभग 1%)

दतिया कैंपस: 7 में से कोई भी आरक्षित वर्ग से नहीं

खंडवा कैंपस: 3 में से कोई भी आरक्षित वर्ग से नहीं

राज्य शासन के नियमानुसार 63% आरक्षित वर्ग की हिस्सेदारी होनी चाहिए थी, लेकिन बावजूद इसके विश्वविद्यालय में वर्तमान में अतिथि शिक्षकों की भर्ती में 20% से भी कम शिक्षक आरक्षित वर्ग से चयनित किए गए हैं।

योग्य उम्मीदवारों को दरकिनार करने का आरोप

डॉ. यादव ने बताया कि कई ऐसे उम्मीदवार जिन्हें यूजीसी-नेट, सेट, पीएचडी, लंबा मीडिया अनुभव था, उन्हें अनदेखा कर दिया गया। इसके उलट, ऐसे उम्मीदवारों को जगह दी गई जिनकी योग्यता विज्ञापन में मांगी गई शर्तों के अनुरूप नहीं थी।

चयन प्रक्रिया की खामियां!

शिकायतों के अनुसार, चयन प्रक्रिया में कई मूलभूत कमियां थीं, आवेदन पत्र में जाति और मध्य प्रदेश मूल निवासी से जुड़ा कॉलम ही नहीं था। चयनित शिक्षकों की योग्यता सार्वजनिक नहीं की गई। मीडिया हाउस में दिखाए गए अनुभव प्रमाणपत्रों का सत्यापन नहीं हुआ। कई शिक्षकों के यूजीसी-नेट सर्टिफिकेट की क्रॉस-जांच नहीं की गई।

द मूकनायक से बातचीत में अनुसूचित जाति जनजाति अधिकारी कर्मचारी संघ (अजाक्स) के प्रांतीय प्रवक्ता विजय शंकर श्रवण ने कहा कि यदि माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय में अतिथि शिक्षकों की भर्ती के दौरान मध्यप्रदेश शासन के प्रचलित आरक्षण नियमों की पालना नहीं हुई है तो यह बेहद आपत्तिजनक है। उन्होंने स्पष्ट किया कि किसी भी भर्ती प्रक्रिया में आरक्षण रोस्टर का पालन अनिवार्य है और संवर्ग के अनुरूप पदों को आरक्षित करना शासन के नियमों के प्रावधानों के तहत जरूरी है।

उन्होंने आगे कहा कि यदि कोई भी संस्थान आरक्षण के इस बुनियादी नियम की अनदेखी करता है तो उसकी भर्ती प्रक्रिया स्वतः ही अवैधानिक मानी जाएगी। श्रवण की शासन को इस मामले की हस्तक्षेप कर जांच कराना चाहिए और यदि आरक्षण का उल्लंघन सिद्ध होता है तो पूरी चयन प्रक्रिया निरस्त कर नए सिरे से भर्ती की जानी चाहिए।

इधर, द मूकनायक से बातचीत में विश्वविद्यालय के कुलगुरु (कुलपति) विजय मनोहर तिवारी ने कहा कि अतिथि शिक्षकों के चयन में विश्वविद्यालय ने सभी नियमों और प्रक्रिया का पूरी तरह पालन किया है। उन्होंने आगे बताया कि चयन प्रक्रिया पारदर्शी और शैक्षणिक योग्यता के अनुरूप ही संपन्न की गई, और इसमें किसी भी तरह का भेदभाव या नियमों का उल्लंघन नहीं हुआ।

प्रोफेसर पर भेदभाव का आरोप!

इसके पहले डॉ. यादव ने विभागाध्यक्ष डॉ. मोनिका वर्मा पर आरोप लगाया था कि वह हिमाचल प्रदेश की मूल निवासी हैं और बाहरी राज्यों से आए उम्मीदवारों को प्राथमिकता दे रही हैं। उन्होंने कहा कि डॉ. वर्मा का रवैया अक्सर असभ्य रहता है और जो उनके ‘पसंदीदा’ नहीं होते, उनके साथ अपमानजनक व्यवहार किया जाता है।

डॉ. यादव का आरोप है कि, उन्हें कई बार विभाग में बुलाकर दो-दो घंटे तक कक्ष के बाहर खड़ा रखा गया। लंच का समय एक घंटा होने के बावजूद, विभागाध्यक्ष अन्य विभागों के शिक्षकों के साथ दो-दो घंटे लंच में व्यस्त रहती थीं। एक मौके पर उन्हें एक अन्य शिक्षक के सामने अपमानित कर विभाग से बाहर निकाल दिया गया। इसके अलावा, उनका कहना है कि डॉ. मोनिका वर्मा के पास इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का विशेष अनुभव और डिग्री नहीं होने के बावजूद वह विभाग का नेतृत्व कर रही हैं।

द मूकनायक से बातचीत में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. मोनिका वर्मा ने डॉ. अभिषेक यादव के सभी आरोपों को पूरी तरह निराधार बताया। उन्होंने कहा कि अभिषेक यादव को जिस विषय का क्लास और पेपर पढ़ाने के लिए दिया गया था, उसे उन्होंने खुद पढ़ाने से मना कर दिया था। उनके अनुसार, इस कारण से उन्हें क्लास नहीं मिला। डॉ. वर्मा का कहना है कि अभिषेक जो बातें फैला रहे हैं, वे पूरी तरह मनगढ़ंत हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उनकी शादी इंटरकास्ट मैरिज है और उनके पति अनुसूचित जाति वर्ग से हैं, इसलिए उनके मन में पिछड़े और वंचित वर्गों के प्रति कोई हीन भावना नहीं हो सकती।

डॉ. मोनिका वर्मा ने बताया कि उन्होंने इस पूरे मामले की जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों को लिखित रूप से दे दी है। उनका आरोप है कि अभिषेक यादव झूठी बातें फैलाकर सुनियोजित तरीके से विश्वविद्यालय की छवि खराब करने की कोशिश कर रहे हैं। उनके अनुसार, इस तरह के आरोप न केवल व्यक्तिगत स्तर पर उन्हें बदनाम करने वाले हैं, बल्कि संस्थान की साख को भी नुकसान पहुंचाते हैं।

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