नई दिल्ली- दिल्ली उच्च न्यायालय ने सीबीएसई से संबद्ध निजी स्कूलों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के छात्रों को महंगी निजी प्रकाशकों की पुस्तकें खरीदने के लिए मजबूर करने और शिक्षा के व्यावसायीकरण को लेकर एक जनहित याचिका (PIL) पर 27 अगस्त को नोटिस जारी किया।
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई), दिल्ली सरकार और अन्य संबंधित पक्षों को याचिका पर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। यह मामला 12 नवंबर को अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है।
याचिका में आरोप लगाया गया है कि निजी स्कूल, शिक्षा के अधिकार (RTE) अधिनियम की धारा 12(1)(c) के तहत दाखिल ईडब्ल्यूएस छात्रों के अभिभावकों को प्रति वर्ष ₹10,000-₹12,000 की लागत वाली महंगी निजी प्रकाशकों की पुस्तकें और सामग्री खरीदने के लिए बाध्य कर रहे हैं। याचिका के अनुसार, यह प्रथा सीबीएसई के उन निर्देशों का सीधा उल्लंघन है जो एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों के उपयोग का निर्देश देते हैं, जिनकी वार्षिक लागत मात्र ₹700 के आसपास है।
याचिकाकर्ता दून स्कूल के निदेशक जसमीत सिंह साहनी का तर्क है कि इससे एक "अपरिहार्य खाई" पैदा होती है, क्योंकि सरकार से मिलने वाली ₹5000 की वार्षिक प्रतिपूर्ति इस खर्च का केवल एक छोटा हिस्सा ही वहन कर पाती है। नतीजतन, कई ईडब्ल्यूएस परिवारों को अपने बच्चों का प्रवेश वापस लेना पड़ रहा है, जिससे शिक्षा के अधिकार और वंचित वर्गों के लिए 25% आरक्षण का उद्देश्य विफल हो रहा है।
मामले में पैरवी कर रहे एडवोकेट सत्यम सिंह ने बताया कि याचिका में स्कूल बैग नीति, 2020 के उल्लंघन पर भी प्रकाश डाला गया है, जहाँ अत्यधिक पुस्तकों और सामग्री के कारण छोटे बच्चों को 6-8 किलोग्राम तक के भारी बैग ढोने पड़ते हैं, जिससे उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
याचिका में न्यायालय से अनुरोध किया गया है कि वह सीबीएसई स्कूलों में एनसीईआरटी पाठ्यपुस्तकों के अनन्य उपयोग को सुनिश्चित करने, एक नियमित 'फिक्स्ड रेट - फिक्स्ड वेट' नीति लागू करने और उल्लंघन करने वाले स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश जारी करे।
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