जातिवाद जैसे संवेदनशील विषय को प्रेम कहानी के माध्यम से उजागर करने वाली फिल्म धड़क 2 का हिस्सा बनना अभिनेता सिद्धांत चतुर्वेदी के लिए एक भावनात्मक और मानसिक रूप से गहन अनुभव रहा। निर्देशक शाज़िया इक़बाल की इस फिल्म में एक दलित युवक की भूमिका निभाने वाले चतुर्वेदी कहते हैं कि इस किरदार से बाहर निकलना उनके लिए आसान नहीं था।
अभिनेता ने बताया, “इस किरदार ने मुझे छह महीने तक जकड़े रखा। इस दौरान मैंने कोई और काम नहीं किया, बस यात्रा करता रहा। ऐसी कहानियाँ आपके अंदर गहराई तक उतर जाती हैं। इस किरदार ने मुझे उस मुकाम तक पहुँचाया, जहाँ मैं एक अभिनेता के रूप में पहुँचना चाहता था। जब हाल ही में मैंने इसकी डबिंग की, तो सब कुछ फिर से सामने आ गया। मुझे डबिंग जल्दी खत्म करनी पड़ी क्योंकि यह मुझे अंदर से झकझोरता है।”
धड़क 2 में सिद्धांत के साथ अभिनेत्री त्रिप्ती डिमरी मुख्य भूमिका में हैं। एक दलित किरदार निभाना—विशेष रूप से तब जब आपकी अपनी पृष्ठभूमि वह नहीं रही हो—अपने आप में एक बड़ी जिम्मेदारी है। चतुर्वेदी इसे पूरी संवेदनशीलता के साथ समझने और महसूस करने की कोशिश करते हैं।
वे बताते हैं, “मैं यह नहीं कहूंगा कि इसके लिए कोई तयशुदा प्रोसेस था या मैं किसी दिखावे की बात करूं। मैं यह कह सकता था कि मैंने खुद को चार दिन के लिए कमरे में बंद कर लिया। सबसे पहले उस दुनिया को समझना जरूरी होता है। इनसाइड एज में मैं क्रिकेटर नहीं था, गली बॉय में रैपर नहीं था। जब कोई अनुभव खुद का नहीं होता, तो मैं अपनी ज़िंदगी से मेल खाती भावनाओं को निकालकर जोड़ने की कोशिश करता हूं। मैं कभी भी अपने किरदार को ‘सहानुभूति’ के चश्मे से नहीं देखता, क्योंकि तब आप एक दूरी बना लेते हैं। यह जीवन मैंने जिया नहीं है और पूरी तरह कभी जी भी नहीं सकता। इसलिए मैं अपने किरदारों से मोह नहीं पालता—बल्कि उन्हें समझने और निभाने की कोशिश करता हूं।”
जहां फिल्म इंडस्ट्री में हर अभिनेता बॉक्स ऑफिस पर कामयाबी चाहता है, वहीं चतुर्वेदी सफलता को अलग नजरिए से देखते हैं।
उन्होंने कहा, “हम जैसे लोग, जो बाहर से इस इंडस्ट्री में आए हैं, उनके लिए काम मिलना ही बहुत बड़ी बात है। हम उन कहानियों की तलाश करते हैं जो हमें अंदर से छू जाएं। चूंकि हमने बॉलीवुड से पहले भी एक आम ज़िंदगी जी है, इसलिए हम उन्हीं कहानियों की ओर खिंचते हैं जो उस जीवन की झलक दें। त्रिप्ती और मैं दोनों ने अपने दम पर यह मुकाम हासिल किया है, और यही हमारी जड़ों से जोड़कर रखता है। हमारे अंदर हमेशा एक आवाज़ रहती है जो बताती है—‘यह सही लगता है, यह नहीं।’ आखिर में हम उसी आवाज़ को फ़ॉलो करते हैं।”
शाज़िया इक़बाल द्वारा निर्देशित धड़क 2 को जाति, प्रेम और सामाजिक विद्रोह जैसे विषयों को लेकर एक गंभीर फिल्म के रूप में देखा जा रहा है। सिद्धांत चतुर्वेदी के गहराई से निभाए किरदार के साथ, यह फिल्म सिर्फ एक सीक्वल नहीं, बल्कि आज के भारत की सामाजिक परतों को उकेरने वाली एक सशक्त कहानी बनकर उभरती है।
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