नई दिल्ली- आगामी बिहार विधानसभा चुनावों को देखते हुए, दलित अधिकारों पर काम करने वाले एक महत्वपूर्ण संगठन ने राज्य की लगभग 1.5 करोड़ दलित आबादी की चिंताओं और मांगों को केंद्र में रखते हुए एक चौंकाने वाली रिपोर्ट जारी की है। नेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ दलित एंड आदिवासी ऑर्गनाइजेशन (NACDAOR) द्वारा तैयार यह रिपोर्ट, "बिहार: दलित क्या चाहते हैं", 8 अक्टूबर को प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, नई दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान जारी की जाएगी।
रिपोर्ट के पृष्ठभूमि नोट के अनुसार, बिहार की कुल मतदाता आबादी का 20% हिस्सा होने के बावजूद दलित मतदाताओं के लिए चुनाव एक "कड़वा अनुभव" बना हुआ है। NACDAOR ने सभी राजनीतिक दलों से मांग की है कि वे अपने घोषणा-पत्रों में दलितों से जुड़े "स्पष्ट, ठोस और जवाबदेह वादे" करें।
1. हिंसा और भेदभाव का साया: रिपोर्ट में कहा गया है कि दलित आज भी निरंतर हिंसा, धमकी और अपमान का सामना करते हैं, जिसका उद्देश्य उन्हें सामाजिक रूप से दबाकर रखना है। इन हिंसक प्रवृत्तियों के लगातार बढ़ने पर गहरी चिंता जताई गई है।
2. जमीन सुधार की जरूरत: रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार में भूमि सुधार सबसे अहम मुद्दा है। राज्य की 6.45 मिलियन हेक्टेयर कृषि भूमि में से दलितों के पास मात्र 0.57 मिलियन हेक्टेयर भूमि है। बटाईदारी प्रथा के चलते वास्तविक खेती करने वाले दलित किसानों के पास न तो जमीन पर अधिकार है और न ही उन्हें उनकी मेहनत का पूरा हिस्सा मिल पाता है।
3. शिक्षा में पिछड़ापन: बिहार में दलितों की साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से लगभग 10% कम है। 2011 की जनगणना के अनुसार यह दर 55.9% थी। दलित छात्रों के ड्रॉप-आउट की दर अधिक है और उच्च शिक्षा में उनकी भागीदारी काफी कम है।
4. बजट में पर्याप्त हिस्सेदारी न होना: रिपोर्ट में इस ओर भी इशारा किया गया है कि राजनीतिक दल दलितों की भलाई की बात तो करते हैं, लेकिन जब बजट आवंटन की बात आती है तो उनके दावों और हकीकत में बड़ा अंतर देखने को मिलता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जब तक समाज में दलितों के साथ भेदभाव और उन्हें उनके अधिकारों से वंचित रखने की सोच बनी रहेगी, तब तक 2047 तक भारत को विकसित देश बनाने का 'अमृत काल' का सपना अधूरा रहेगा।
इस रिपोर्ट के जरिए NACDAOR का उद्देश्य बिहार के दलितों की वास्तविक स्थिति से जनता और नीति-निर्माताओं को रूबरू कराना है। संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक भारती इस प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करेंगे। यह रिपोर्ट चुनावी महौल में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज के रूप में देखी जा रही है, जो दलित मतदाताओं की प्राथमिकताओं को रेखांकित करती है।
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