बेंगलुरु: कर्नाटक में अनुसूचित जातियों के भीतर आंतरिक आरक्षण को लेकर दलित-लेफ्ट और दलित-राइट दो बड़े समूहों के बीच तीखा मतभेद सामने आया है। न्यायमूर्ति एच.एन. नागमोहन दास आयोग की रिपोर्ट ने इन दोनों धड़ों को आमने-सामने ला खड़ा किया है।
न्यायमूर्ति नागमोहन दास (सेवानिवृत्त हाईकोर्ट जज) की अध्यक्षता वाले आयोग ने 4 अगस्त को अपनी विस्तृत रिपोर्ट सरकार को सौंपी। यह रिपोर्ट 5 मई से 6 जुलाई 2025 के बीच किए गए जातिवार सर्वे पर आधारित है, जिसमें घर-घर जाकर डेटा इकट्ठा करने, विशेष शिविर आयोजित करने और ऑनलाइन सेल्फ-डिक्लेरेशन जैसे उपाय शामिल थे। कांग्रेस सरकार ने अपने 2023 विधानसभा चुनावी घोषणापत्र में आंतरिक आरक्षण का वादा किया था।
रिपोर्ट को कैबिनेट में 7 अगस्त को पेश किया गया और अब इसे लेकर विशेष कैबिनेट बैठक 19 अगस्त को होगी। इससे पहले यह बैठक 16 अगस्त को प्रस्तावित थी, लेकिन सरकार के भीतर विरोध के चलते इसे टाल दिया गया।
दलित-राइट संगठनों ने आयोग की रिपोर्ट को "अवैज्ञानिक" करार देते हुए समीक्षा की मांग की है। 12 अगस्त को हासन में कर्नाटक राज्य बलगाई संबंधित जातिगला ओक्कूटा ने विरोध प्रदर्शन किया। संगठन ने कहा कि पराया, आदि कर्नाटक, आदि द्रविड़, आदि आंध्र, होलेया दसर, चेन्ना दसर और होलर जैसी उपजातियों को एससी-राइट की जनगणना में शामिल किया जाना चाहिए।
इसी तरह, एससी बलगाई (राइट-हैंड) होरटा समिति ने आरोप लगाया कि आयोग ने उनकी आबादी को 50 लाख से घटाकर 20 लाख दिखाया है। समिति ने 14 अगस्त को मैसूरु में विशाल रैली निकाली और जिला आयुक्त कार्यालय तक मार्च किया।
पूर्व महापौर पुरुषोत्तम ने 13 अगस्त को प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि आयोग ने सिर्फ 1.16 करोड़ एससी लोगों का सर्वे किया, जबकि वास्तविक आबादी 1.47 करोड़ है। उन्होंने कहा, “31 लाख लोगों को बाहर रखकर न्याय कैसे होगा? रिपोर्ट में भारी खामियां हैं।”
दलित-लेफ्ट संगठनों ने रिपोर्ट के तत्काल क्रियान्वयन की मांग की है। 11 अगस्त से ‘फेडरेशन फॉर सोशल जस्टिस फॉर शेड्यूल्ड कास्ट्स’ के बैनर तले कई संगठनों ने अनिश्चितकालीन धरना शुरू कर दिया है।
माडीगा समुदाय की अगुवाई वाले दलित-लेफ्ट का आरोप है कि शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण का अधिकांश लाभ दलित-राइट ने हड़प लिया है।
इससे पहले 2005 में ए.जे. सदाशिवा आयोग ने 15% एससी आरक्षण को इस तरह बांटने की सिफारिश की थी—6% दलित-लेफ्ट, 5% दलित-राइट, 3% भोवी, लांबानी, कोरचा और कोरमा के लिए, और 1% अन्य के लिए। लेकिन यह रिपोर्ट कभी लागू नहीं की गई।
भोवी, बंजारा, कोरचा और कोरमा जैसी "Touchable Castes" को आयोग ने 4% आरक्षण देने की सिफारिश की है, लेकिन वे 5% की मांग कर रहे हैं।
6 अगस्त को इन समुदायों के कांग्रेस नेताओं के एक प्रतिनिधिमंडल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर मुख्यमंत्री सिद्धरामैया से मांग की कि सभी एससी समुदायों की आपत्तियाँ लेकर संशोधन किया जाए।
पूर्व एमएलसी प्रकाश राठौड़ ने कहा—“बीजेपी सरकार ने जब 4.5% आरक्षण दिया था तब बी.एस. येदियुरप्पा के घर तक पर पत्थर फेंके गए थे। इन चार समुदायों ने कांग्रेस की जीत में अहम भूमिका निभाई है और 75 से ज्यादा सीटों पर निर्णायक असर डाला है।”
आयोग ने अनुसूचित जातियों के लिए मौजूदा 17% आरक्षण को पांच हिस्सों में बांटने का प्रस्ताव दिया है।
दलित-लेफ्ट: 18 जातियां, 34.91 लाख आबादी – 6%
दलित-राइट: 17 जातियां, 28.63 लाख आबादी – 5%
स्पर्शनीय जातियां: 4 जातियां, 26.97 लाख आबादी – 4%
छोटी जातियां: 59 जातियां, 4.97 लाख आबादी – 1%
घुमंतू जातियां: 3 जातियां, 4.52 लाख आबादी – 1%
रिपोर्ट में आदि कर्नाटक, आदि द्रविड़ और आदि आंध्र के लिए अलग से 1% आरक्षण की सिफारिश की गई है। यह एससी-राइट की मांग के खिलाफ है, जो चाहते थे कि इन्हें उनके ग्रुप में शामिल किया जाए।
इसके अलावा, पराया समुदाय को ‘कैटेगरी बी’ में 6% आरक्षण दिया गया है। दलित-राइट नेताओं का कहना है कि पराया और होलेया सामाजिक रूप से समान हैं, इसलिए इन्हें एक ही समूह में गिना जाना चाहिए।
दलित-लेफ्ट और दलित-राइट के बीच बढ़ते विवाद के बीच अब सबकी निगाहें 19 अगस्त की कैबिनेट बैठक पर टिकी हैं। मुख्यमंत्री सिद्धरामैया के लिए यह फैसला न केवल सामाजिक न्याय बल्कि राजनीतिक संतुलन की कसौटी भी साबित होगा।
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