बेंगलुरू- भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) बेंगलुरू में जाति-आधारित भेदभाव पर द मूकनायक की विस्तृत रिपोर्ट के बाद एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में, शुक्रवार को पुलिस ने संस्थान के निदेशक, डीन (संकाय) और छह अन्य संकाय सदस्यों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है।
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन अध्यादेश, 2014 (धारा 3(1)(आर) और 3(1)(एस)) और भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), 2023 (धारा 351(2) और 351(3)) के तहत दर्ज हुई यह FIR भारत के प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों में से एक में जवाबदेही की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
भारत में आईआईएम की स्थापना के बाद से संभवतया यह पहली बार है कि किसी कार्यरत निदेशक पर जाति-आधारित भेदभाव का आरोप लगाया गया है और एक संकाय सदस्य के खिलाफ जातिगत भेदभाव करने के लिए नामजद शिकायत दर्ज किया गया है।
बेंगलुरु पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर में आईआईएम बैंगलोर के निदेशक डॉ. ऋषिकेश टी. कृष्णन और 7 प्रोफेसर जिनमे डॉ. दिनेश कुमार, डॉ. सैनेश जी, डॉ. श्रीनिवास प्रख्या, डॉ. चेतन सुब्रमण्यम, डॉ. आशीष मिश्रा, डॉ. श्रीलता जोनालागेडा और डॉ. राहुल डे सहित आठ आरोपियों के नाम हैं।
इन व्यक्तियों पर जाति-आधारित अत्याचार और प्रणालीगत भेदभाव के लिए एससी-एसटी अधिनियम और भारतीय न्याय संहिता के विभिन्न प्रावधानों के तहत आरोप लगाए गए हैं। माइको लेआउट पुलिस स्टेशन में दर्ज की गई एफआईआर, द मूकनायक द्वारा गुरुवार को नागरिक अधिकार प्रवर्तन निदेशालय (DCRE) की जांच के निष्कर्षों पर एक विस्तृत खबर प्रकाशित करने के बाद कार्यकर्ताओं, नागरिक अधिकार संगठनों और जनता के बढ़ते दबाव के बाद दर्ज की गई है।
खबर में DCRE की रिपोर्ट का खुलासा किया गया है, जिसमें IIM बैंगलोर में विश्व स्तर पर प्रशंसित दलित विद्वान एसोसिएट प्रोफेसर गोपाल दास द्वारा सामना किए गए प्रणालीगत जाति-आधारित उत्पीड़न की पुष्टि की गई है।
26 नवंबर, 2024 को DCRE के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (एडीजीपी) ने कर्नाटक समाज कल्याण विभाग को एक रिपोर्ट सौंपी, जिसमें प्रोफेसर दास के आरोपों की पुष्टि की गई। इसमें जानबूझकर जाति का खुलासा करने, शैक्षणिक अवसरों से बहिष्करण और जाति संबंधी शिकायतों को दूर करने में संस्थागत उपेक्षा का खुलासा किया गया। रिपोर्ट में बताये आरोपों में आईआईएम बैंगलोर के निदेशक डॉ. ऋषिकेश टी. कृष्णन, डीन (संकाय) डॉ. दिनेश कुमार और अन्य संकाय सदस्यों को शामिल किया गया।
हालांकि यह निष्कर्ष रिपोर्ट जाहिर नहीं की गई लेकिन द मूकनायक ने 19 दिसंबर को इस पर विस्तृत खबर प्रकाशित की, जिसने इस मुद्दे पर देश भर का ध्यान आकर्षित किया। रिपोर्ट में एससी-एसटी (पीओए) अधिनियम और बीएनएस 2023 दोनों के तहत उल्लंघनों पर प्रकाश डाला गया, जिससे लोगों में आक्रोश व्याप्त हुआ।
जाति का सार्वजनिक रूप से प्रकट करना: प्रोफेसर दास की जाति को डॉ. ऋषिकेश टी. कृष्णन, निदेशक, और डॉ. दिनेश कुमार, डीन (फैकल्टी) द्वारा मेल के माध्यम से जानबूझकर प्रकट किया गया।
समान अवसरों का उल्लंघन: कार्यस्थल पर अवसरों से वंचित किया गया और संस्थान की गतिविधियों से बाहर किया गया।
शिकायत निवारण प्रणाली की कमी: अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के छात्रों और कर्मचारियों के लिए शिकायत निवारण प्रणाली की स्थापना में विफलता।
डीसीआरई रिपोर्ट पर कार्रवाई करते हुए कर्नाटक समाज कल्याण विभाग ने बेंगलुरु पुलिस आयुक्त को 9 दिसंबर, 2024 को आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए थे लेकिन कथित रूप से उपरी दबाव के चलते पुलिस विभाग ने मामला दर्ज नहीं किया जिससे महकमे की खूब आलोचना हुई।
द मूकनायक की रिपोर्ट के बाद, बहुजन संगठनों ने त्वरित कार्रवाई की मांग तेज कर दी। बढ़ते दबाव के बीच शुक्रवार 20 दिसंबर को आखिरकार एससी-एसटी एक्ट और बीएनएस 2023 की कड़ी धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की गई।
द मूकनायक के साथ अपनी राय साझा करते हुए अंबेडकर सेंटर फॉर जस्टिस एंड पीस (एसीजेपी) के राष्ट्रीय अध्यक्ष नागसेन सोनारे ने कहा, "यह आईआईएम के इतिहास में एक ऐतिहासिक क्षण है। पहली बार, एक मौजूदा निदेशक जाति-आधारित भेदभाव करते हुए और एससी-एसटी-ओबीसी छात्र समुदाय को हाशिए पर रखते हुए संकाय सदस्य के खिलाफ उत्पीडन करते हुए पाया गया है। एफआईआर दर्ज करने के साथ ही हम कर्नाटक पुलिस से निदेशक डॉ. ऋषिकेश टी. कृष्णन और सात अन्य संकाय सदस्यों को तुरंत गिरफ्तार करने का पुरजोर आग्रह करते हैं। यह सभी आईआईटी, आईआईएम, एनआईटी, आईआईएससी और अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालयों को एक स्पष्ट और शक्तिशाली संदेश भेजता है: एससी-एसटी-ओबीसी समुदाय अब इस तरह के अत्याचारों को बर्दाश्त नहीं करेंगे। हम संकाय, कर्मचारियों और छात्रों के खिलाफ जातिगत भेदभाव के हर एक मामले में लड़ने के लिए तैयार हैं। न्याय से समझौता नहीं किया जा सकता।”
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