सूरत की गलियों में 'बुद्ध' की रोशनी: 2023 में किया धर्म परिवर्तन का आवेदन, अब मिली मंजूरी तो 80 परिवारों ने कहा— बुद्धं शरणम गच्छामि!

स्वयं सैनिक दल के सदस्य बताते हैं कि गुजरात में प्रशासन " Delay & Destroy" की रीति अपनाकर धर्मांतरण को रोकने के हर संभव प्रयास करता है।
सूरत की गलियों में 'बुद्ध' की रोशनी: 2023 में किया धर्म परिवर्तन का आवेदन, अब मिली मंजूरी तो 80 परिवारों ने कहा— बुद्धं शरणम गच्छामि!
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सूरत- सूरत की चमचमाती डायमंड फैक्ट्रियों और गुलज़ार बाज़ारों के बीच, एक ऐसी हलचल थी, जो किसी चमक से ज्यादा कीमती थी। यह थी 80 परिवारों की उम्मीद की कहानी, जिन्होंने 2023 में बौद्ध धम्म अपनाने का फैसला किया।

दो साल के इन्तजार, कागज़ी कार्रवाइयों और प्रशासन की टालमटोल के बाद, 14 मई 2025 को आनंद बुद्ध विहार, बॉम्बे कॉलोनी, अमरोली में एक समारोह में इन परिवारों ने बौद्ध मार्ग को गले लगाया। स्वयं सैनिक दल (SSD) की मेहनत और जज़्बे ने इस सपने को हकीकत में बदला। यह कहानी सिर्फ धर्म परिवर्तन की नहीं, बल्कि इंसानियत, बराबरी और आत्मसम्मान की जीत की है।

इन 80 परिवारों की कहानी आसान नहीं थी। 2023 में जब इन्होंने बौद्ध धर्म अपनाने के लिए आवेदन किया, तो प्रशासन ने हर कदम पर अड़ंगे लगाए। SSD सदस्य बताते हैं, "एक महीने का काम दो साल तक खींचा गया। पहले छह महीने कागज़ों में उलझाया, फिर मंजूरी के पत्र में देरी।" जानकारों का कहना है पूरे गुजरात में SSD सहित अनेक बहुजन संगठनों द्वारा धर्मांतरण को लेकर लगाये गए करीब 40-50 हज़ार ऐसे आवेदन लटके पड़े हैं।

स्वयं सैनिक दल के सदस्य बताते हैं कि प्रशासन " Delay & Destroy" की रीति अपनाकर धर्मांतरण को रोकने के हर संभव प्रयास करता है, नियमानुसार धर्म बदलने को लेकर आने वाले फॉर्म्स ( प्रारूप क) को जांच कर एक महीने के भीतर कलेक्टर को मंजूरी देना होता है लेकिन इस काम में ही छह-छह महीने खींच लेते हैं. कभी दफ्तरों में स्टाफ की छुट्टी कभी साहब के ट्रान्सफर होने का बहाना- आवेदक चक्कर लगाते लगाते परेशान हो जाते हैं और अंतत: प्रक्रिया ( प्रारूप ग) को हो पूरा नही करते और आवेदन दाखिल दफ्तर कर दिए जाते हैं। यहाँ सिस्टम बौद्ध धर्म अपनाने वालों को रोकने की हर कोशिश करता है। लेकिन SSD हार मानने वाले नहीं थे।

SSD की सूरत इकाई ने दिन-रात मेहनत की। कार्यालयों के चक्कर, फोन कॉल, और बार-बार फॉलो-अप। आखिरकार, पिछले हफ्ते उन्होंने प्रशासन को अल्टीमेटम दिया: "या तो मंजूरी दो, वरना हम सड़कों पर उतरेंगे।" इस जज़्बे के सामने प्रशासन को झुकना पड़ा। 80 परिवारों को मंजूरी मिली, और 14 मई को एक भावुक समारोह में इन परिवारों ने अधिकृत तौर पर बौद्ध धम्म को अपनाया। उस दिन हवा में सिर्फ खुशी नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत का जश्न था।

धुएँ से रोशनी तक का सफर

स्वयं सैनिक दल से जुड़े मयूरराज नाग बताते हैं कि 2023 में लगाये आवेदनों में से कुछ पहले मंजूर हुए, अभी 80 आवेदकों के पत्र जारी हुए और इस तरह 110 आवेदनों का निस्तारण हुआ है। मयूरराज सूरत की एक डायमंड फैक्ट्री में मशीन ऑपरेटर हैं। सात- आठ साल पहले, उनकी ज़िंदगी बिल्कुल अलग थी। "मैं दिनभर दोस्तों के साथ मस्ती करता, सिगरेट पीता, गुटखा खाता था," मयूरराज ने एक हल्की मुस्कान के साथ बताया। "घरवालों की परवाह नहीं थी, बस अपनी दुनिया में मस्त था।" 2017 में उनकी मुलाकात SSD के सैनिकों से हुई। बाबासाहेब आंबेडकर के बारे में गहराई से जाना तो उनके मन में कुछ हलचल हुई और फिर जीवन की दिशा ही बदल गई।

2019 में मयूरराज ने बौद्ध धर्म अपनाया। यह फैसला उनके लिए सिर्फ एक धार्मिक बदलाव नहीं था। "मैंने सिगरेट और गुटखा छोड़ दिया। पहली बार पारिवारिक जिम्मेदारियों को समझा, माता-पिता को समय देने लगा, उनकी छोटी-छोटी बातों पर गौर किया।"

उनकी पत्नी अश्मिता है जिनसे विवाह को 4 साल हो चुके हैं. मयूरराज कहते हैं, " हमारा प्रेम विवाह था जिसे परिवार ने स्वीकार करके रिश्ता किया, जब हम शादी से पहले फोन पर बात किया करते थे, मैं अश्मिता को भी बौद्ध दर्शन की गहराई बताता था और वो भी समझ गईं। आज घर में सभी बुद्ध के बताये मार्ग पर चलते हैं, जीवन सहज और सुहाना लगता है।" मयूरराज गर्व से बताते हैं, "लोग मुझे भाई कहते हैं, लेकिन इस भाई में इज़्ज़त है, जो पहले नहीं थी"। सार्वजनिक जीवन में जब वे कुछ बात कहते हैं तो उन्हें गंभीरता से सुना और समझा जाता है जो पहले नहीं था और उनका मानना है- ये परिवर्तन और सम्मान बौद्ध धर्म से आया है।

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चंद्रिका शाक्य, 30 साल की एक स्कूल टीचर, सूरत की तपती दोपहर में बच्चों को सिखाती हैं, लेकिन उनका असली मिशन है औरतों को उनकी ताकत दिखाना। SSD की झलकारी ब्रिगेड की सदस्य चंद्रिका पिछले 10 साल से बौद्ध धर्म का पालन कर रही हैं। उनके पति भी इस मार्ग पर हैं। " अभी बेबी हुआ है तो शिविरों में जा नहीं पाती हूँ लेकिन पहले जब मैं प्रचार कार्य करती थी तो मैं समाज की महिलाओं और लडकियों को समझती थी कि बाबासाहेब ने हमें सिखाया कि कोई छोटा-बड़ा नहीं होता। सब बराबर हैं," चंद्रिका ने गर्मजोशी से कहा। झलकारी ब्रिगेड के साथ, वो सूरत की बस्तियों में औरतों से मिलती थी। "हम सीधे धर्म की बात नहीं करते। पहले बाबासाहेब की कहानी सुनाते हैं। कैसे उन्होंने हमें इज़्ज़त और हक की बात सिखाई। फिर लोग खुद समझते हैं कि बौद्ध मार्ग ही उनकी मुक्ति का रास्ता है।"

चंद्रिका की ज़िंदगी में बौद्ध धर्म ने न सिर्फ शांति दी, बल्कि आर्थिक आज़ादी भी। "पहले हम हर त्योहार पर खर्च करते थे। होली, दिवाली, राखी—सब में पैसे बहते थे। मिठाई, पूजा का सामान, नए कपड़े। लेकिन बौद्ध धर्म में ये सब नहीं।" चंद्रिका ने बताया कि अब वे अपने पैसे परिवार के लिए खर्च करती हैं।

क्या है SSD का मिशन ?

वर्ष 2006 में राजकोट में 50 समान विचारधारा वाले दलित सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा स्थापित स्वयं सैनिक दल (एसएसडी) का मिशन सामाजिक कुरीतियों को लेकर जनजागरूकता बढाना और जातिवाद की बेड़ियों से समाज को मुक्त करते हुए एक मानवतावादी राष्ट्र की स्थापना करना है। नशा, शराब आदि व्यसनों से दूर रहकर व्यक्ति घृणा छोड़कर अपने परिवार और समुदाय में मानवीय मूल्यों का पालन करते हुए गरिमामयी जीवन व्यतीत करें- यही एसएसडी का ध्येय है। संगठन ने कोई पद या पोस्ट नहीं होकर सभी अपने आप को 'स्वयं सैनिक' मानते हैं। संगठन से जुड़े कार्यकर्ता सुदूर ग्रामीण इलाकों में जाकर वंचित समुदायों को अपने अधिकारों को लेकर जागरूक करने का प्रयास करते हैं और ऐसे आयोजनों को 'चिन्तन शिविर' कहते हैं। संगठन का लक्ष्य है कि वर्ष 2028 तक 2 करोड़ मूलनिवासियों की बौद्ध धम्म में वापसी कराना है। इसी क्रम में एसएसडी 2024 से 2028 तक अंबेडकर जयंती पर क्रमशः दिल्ली, कोलकाता, बंगलौर, भोपाल और मुंबई में इसी तरह के सामूहिक धर्मांतरण समारोह आयोजित करने की एक व्यवस्थित योजना निर्धारित कर चुकी है। 

"एसएसडी सक्रिय रूप से अपने अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में समुदायों के बीच जागरूकता पैदा करने और हिंदू समुदायों के बीच बड़े पैमाने पर विभाजन में योगदान देने वाले कर्मकांडों और हठधर्मिता के खोखलेपन के बारे में जागरूकता पैदा करने में लगा हुआ है।  "हम लोगों को उनके संवैधानिक अधिकारों के बारे में शिक्षित करके और उन्हें अपने भाग्य का स्वयं निर्माता बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं और उन्हें सशक्त बनाना चाहते हैं," नाम नहीं बताने की शर्त पर एक वरिष्ठ सदस्य ने यह जानकारी दी। बौद्ध धर्म स्वीकारने के पीछे भी कारण हिंदू धर्म में व्याप्त कर्मकांड और कुरीतियां हैं जिनसे समुदायों के बीच भेदभाव की खाई बनी है। बौद्ध धर्म में पूजा पाठ और कर्म काण्ड के लिये कोई स्थान नहीं है। एसएसडी भी बौद्ध धर्म को अपनाने को हिंदू जाति व्यवस्था में निहित भेदभावपूर्ण प्रथाओं को खारिज करने के साधन के रूप में देखता है।

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