
नई दिल्ली- दिल्ली दंगों के बड़े साजिश मामले में उमर खालिद, शरजील इमाम, गुलफिशा फातिमा, मीरान हैदर, शादाब अहमद और मोहम्मद सलीम खान सहित छह आरोपियों की जमानत याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एनवी अंजारिया की बेंच ने सुनवाई पूरी कर ली और कहा कि 19 दिसंबर को कोर्ट के शीतकालीन अवकाश से पहले फैसला सुनाया जाएगा। कोर्ट ने दोनों पक्षों को 18 दिसंबर तक सभी दस्तावेजों को संकलित कर पेश करने का निर्देश दिया है।
सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एसवी राजू ने तर्क दिया कि साजिश के एक आरोपी के कार्यों को अन्यों पर लागू किया जा सकता है। उन्होंने कहा, "शरजील इमाम के भाषणों को उमर खालिद पर लागू किया जा सकता है। इमाम का मामला अन्यों के खिलाफ सबूत के रूप में इस्तेमाल होगा।" राजू ने यह भी दावा किया कि उमर खालिद ने दंगों से पहले जानबूझकर दिल्ली छोड़ दिया था ताकि जिम्मेदारी से बच सकें। उन्होंने दिल्ली प्रोटेस्ट सपोर्ट ग्रुप (डीपीएसजी) के मैसेजेस और सिग्नल ऐप पर संचार का हवाला देते हुए कहा कि खालिद सक्रिय रूप से साजिश में शामिल थे और मैसेज पोस्ट करने के लिए एडमिन की जरूरत नहीं थी।
हालांकि बेंच ने दिल्ली पुलिस के 2016 के जेएनयू "टुकड़े-टुकड़े" नारों वाले पुराने एफआईआर पर भरोसा करने पर सवाल उठाए। जस्टिस कुमार ने पूछा, "2020 के दंगों के लिए आप 2016 का पुराना एफआईआर क्यों दिखा रहे हैं? इसका इससे क्या लेना-देना?" राजू ने जवाब दिया कि साजिश पहले से चल रही थी और यह एफआईआर साजिश की शुरुआत को दर्शाता है। उन्होंने प्रोटेक्टेड विटनेस "जेम्स" के बयान का हवाला देते हुए कहा कि सभी निर्देश उमर खालिद और नदीम खान से आते थे।
बेंच ने यूएपीए की धारा 15 के तहत साजिश को जोड़ने पर भी बहस की। एएसजी ने कहा कि भाषणों ने कार्रवाई को जन्म दिया और आर्थिक सुरक्षा को खतरा पहुंचाने की साजिश थी, जो आतंकी कृत्य के दायरे में आता है। लेकिन बेंच ने स्पष्ट किया कि यह साजिश धारा 13(1)(बी) के अंतर्गत आ सकती है, न कि सीधे 15 के। राजू ने मुकदमे में देरी के आरोपी के दावे को खारिज करते हुए कहा कि अभियोजन की ओर से कोई लापरवाही नहीं हुई और 30,000 पेज के दस्तावेज उपलब्ध कराए गए हैं।
कोर्ट ने दोनों पक्षों को चेतावनी दी कि दस्तावेजों की भरमार से भ्रम न फैलाएं। जस्टिस कुमार ने टिप्पणी की, "आप लोग जादूगरों की तरह दस्तावेज फेंकते रहते हैं। या तो जज को समझाएं या भ्रमित करें।" सुनवाई के अंत में बेंच ने सभी दस्तावेजों को एक संकलित फाइल में जमा करने का आदेश दिया ताकि फैसला जल्द लिया जा सके।
यह मामला 23 फरवरी 2020 की रात को दिल्ली के उत्तर-पूर्वी इलाकों में हुए दंगों से जुड़ा है, जिसमें 53 लोगों की मौत हुई और सैकड़ों घायल हुए। ये दंगे नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों के दौरान भड़के थे। दिल्ली पुलिस के विशेष सेल ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और गैरकानूनी गतिविधि निवारण कानून (यूएपीए) की विभिन्न धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की। पुलिस का दावा है कि आरोपीयों ने "रेजीम चेंज" की साजिश रची थी, जिसमें सांप्रदायिक दंगों को भड़काकर गैर-मुस्लिमों की हत्या करने और पूरे देश में अशांति फैलाने की योजना थी।
उमर खालिद को सितंबर 2020 में गिरफ्तार किया गया। उन पर आपराधिक साजिश, दंगा भड़काना, गैरकानूनी जमावड़ा और यूएपीए की कई धाराओं के आरोप हैं। वे तब से जेल में हैं। शरजील इमाम पर कई राज्यों में राजद्रोह और यूएपीए के तहत कई एफआईआर दर्ज हैं, हालांकि इस केस के अलावा अन्य मामलों में उन्हें जमानत मिल चुकी है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने 2 सितंबर 2024 को इन छहों की जमानत याचिकाएं खारिज कर दीं, जिसके बाद वे सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। सुप्रीम कोर्ट ने 22 सितंबर को पुलिस को नोटिस जारी किया। पुलिस ने हलफनामा दायर कर दावा किया कि दस्तावेजी और तकनीकी सबूत साजिश की पुष्टि करते हैं। सुनवाई के दौरान आरोपी पक्ष ने कहा कि वे केवल शांतिपूर्ण विरोध कर रहे थे और हिंसा की कोई अपील नहीं की। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि दंगे पूर्वनियोजित थे, न कि सहज, और आरोपी सांप्रदायिक विभाजन फैलाने के इरादे से भाषण दे रहे थे। पुलिस ने इन्हें "राष्ट्र-विरोधी" बताते हुए बांग्लादेश और नेपाल जैसे दंगों से तुलना की।
9 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने बेल मामले में सुनवाई पूरी की और अपना फैसला सुरक्षित रखा। कोर्ट ने 3 दिसंबर को आरोपियों से स्थायी पते मांगे थे। अब फैसला 19 दिसंबर को सुनाए जाने की उम्मीद है।
द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.