मोदी सरकार ने माना देश में दलितों पर अत्याचार के मामले बढ़े

गृह राज्यमंत्री अजय कुमार मिश्रा ने 2018 से 2021 के आंकड़े संसद के पटल पर रखे, दलित उत्पीेड़न के मामलों में उत्तर प्रदेश पहले नम्बर पर।
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देश में अनुसूचित जाति के लोगों पर अत्याचार के मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है। इस बात को अब केंद्र सरकार ने भी स्वीकारा है। दलितो पर अत्याचार के मामलों में उत्तरप्रदेश नम्बर वन तो राजस्थान नम्बर दो पर है। वहीं मध्यप्रदेश देश में तीसरे पायदान पर खड़ा है।

आपको बता दें कि गत मंगलवार को सांसद पीपी चौधरी को अतारांकित प्रश्न के लिखित जवाब में गृह राज्यमंत्री अजय कुमार मिश्रा ने 2018 से 2021 तक देश के अलग-अलग राज्यों में अनुसूचित जाति वर्ग के लोगों पर हुए अत्यचार के मामलों पर लिखित जवाब में यह बात स्वीकारी है।

गृह राज्यमंत्री ने लिखित जवाब में कहा कि पिछले 4 साल के दौरान अनुसूचित जाति के लोगों पर अत्याचार के मामलों में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इस दौरान उत्तरप्रदेश में एससी के लोगों पर अत्याचार के सर्वाधिक 13146 मामले दर्ज हुए।

लोकसभा में राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के हवाले से उन्होंने बताया, राज्यो एवं केंद्र शासित प्रदेशों में साल 2018 में अनुसूचित जाति के लोगो पर अत्यचार के 42 हजार 793 मामले दर्ज हुए थे। यह संख्या 2021 में बढ़ कर 50 हजार 900 हो गई।

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यह है राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़े

उत्तरप्रदेश में 2018 में अनुसूचित जाति के लोगों पर अत्यचार के 11 हजार 924 मामले दर्ज हुए, 2019 में यह आंकड़ा 11 हजार 829 रहा , 2020 में बढ़कर 12 हजार 714 व 2021 में 13 हजार 146 मामले दर्ज किए गए।

इसी तरह राजस्थान की बात करे तो यहां 2018 में अनुसूचित जाति के लोगों पर अत्याचार के 4 हजार 607, 2019 में 6 हजार 794, 2020 में 7 हजार 17 व 2021 में 7 हजार 524 दलित अत्याचार के मामले दर्ज किए गए।

मध्य्ा प्रदेश में दलित अत्याचार के मामले में देश में तीसरे नम्बर पर है। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार 2018 में एमपी में 4 हजार 753, 2019 में 5 हजार 300, 2020 में 6 हजार 899 और 2021 में 7 हजार 214 मामले पंजीकृत हुए हैं।

यह बात विचारणीय है कि यहां केवल अनुसूचित वर्ग के लोगों पर अत्याचार के आंकड़े प्रस्तुत किए हैं। एससी के साथ इन आंकड़ों में आदिवासी, महिला व अल्पसंख्यकों पर अत्याचार के आंकड़ों को शामिल किया जाए तो और भी चौकाने वाली स्थिति बनती है।

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एनसीआरबी की रिपोर्ट दलितों और आदिवासियों पर अत्याचार में वृद्धि दर्शाती है। न्यूज क्लिक की रिपोर्ट के अनुसार “क्राइम इन इंडिया 2021“ से पता चलता है कि 2021 में एससी और एसटी के खिलाफ अपराधों में 1.2 और 6.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2021 में अपराध से संबंधित आंकड़ों के लिए राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की वार्षिक रिपोर्ट “क्राइम इन इंडिया“ का नया संस्करण 29 अगस्त को जारी किया गया था।

एनसीएसपीए का मानना है कि पूरे भारत में दलितों और आदिवासी समुदायों की पीड़ा सबसे खराब बनी हुई है। यह समुदाय न केवल इस संकट जाति व्यवस्था का शिकार है बल्कि संस्थागत भेदभाव और सामाजिक बहिष्कार का भी सामना करता है।

यह स्पष्ट है क्योंकि एक दलित नाबालिग लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और उसकी हत्या कर दी गई जब वह शौच के लिए गई और फिर कभी नहीं लौटी। एक छोटे से दलित लड़के की जान चली गई, सिर्फ इसलिए कि उसने अपनी प्यास बुझाने के लिए स्कूल के प्रिंसिपल के बर्तन को छुआ था।

संगठन का मानना है कि ये ऐसे मामले हैं जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का ध्यान गया। यह संख्या बहुत बड़ी है और यहाँ तक कि 2021 के अपराध के आंकड़े भी हिंसा में वृद्धि की समान प्रवृत्ति को दर्शाते हैं।

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रिपोर्ट से पता चला है कि 2021 में अनुसूचित जाति (एससी) के खिलाफ अत्याचार या अपराधों में 1.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति के खिलाफ अत्याचार के मामलों की सबसे अधिक संख्या 25.82 प्रतिशत दर्ज की गई है, इसके बाद राजस्थान में 14.7 प्रतिशत और मध्य प्रदेश में 14.1 प्रतिशत के साथ है। 2021 इसके अलावा, रिपोर्ट से पता चलता है कि 2021 में अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के खिलाफ अत्याचारों में 6.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जिसमें मध्य प्रदेश में सबसे अधिक 29.8 प्रतिशत मामले दर्ज किए गए हैं, इसके बाद 2021 में राजस्थान में 24 प्रतिशत और ओडिशा में 7.6 प्रतिशत मामले दर्ज किए गए हैं।

दलित और आदिवासी महिलाओं के खिलाफ हिंसा भी बढ़ी है। रिपोर्ट किए गए कुल मामलों में एससी महिलाओं के खिलाफ बलात्कार के मामले (नाबालिगों सहित) 7.64 प्रतिशत और एसटी महिलाओं के मामले 15 प्रतिशत हैं। रिपोर्ट में दलित महिलाओं के खिलाफ बलात्कार के मामलों के लिए विस्तृत संख्या भी दी गई है, नाबालिग बलात्कार के मामले, बलात्कार का प्रयास, महिलाओं पर उनकी लज्जा भंग करने के लिए हमला और महिलाओं और नाबालिगों के अपहरण के मामले, जो संचयी रूप से अनुसूचित जाति महिलाओं में 16.8 प्रतिशत और अनुसूचित जाति महिलाओं में 26.8 प्रतिशत थे।

रिपोर्ट से पता चला कि अनुसूचित जाति के खिलाफ अत्याचार के कुल 70,818 मामलों की जांच वर्ष 2021 के अंत में लंबित थी, जिसमें पिछले वर्ष के मामले भी शामिल थे। इसी तरह, अनुसूचित जनजाति के खिलाफ अत्याचार के 12,159 मामले लंबित थे और अनुसूचित जाति के खिलाफ अत्याचार के कुल 2,63,512 मामले और अनुसूचित जनजाति के खिलाफ अत्याचार के 42,512 मामले अदालत में सुनवाई के लिए आए थे। भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के साथ एससी और एसटी (पीओए) अधिनियम के तहत सजा का प्रतिशत एससी के लिए 36.0 प्रतिशत और एसटी के लिए 28.1 प्रतिशत रहा। वर्ष के अंत में, अनुसूचित जाति के खिलाफ अत्याचार के 96.0 प्रतिशत मामले लंबित थे, जबकि अनुसूचित जनजाति के लिए यह प्रतिशत 95.4 प्रतिशत था।

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