जालौन पुलिस का 'खेल' उजागर? SC/ST एक्ट के 62 मामलों में चार्जशीट गायब, 1000 दिन बाद भी इंसाफ को तरस रहे पीड़ित!

डीडीजेसी (DDJC) की रिपोर्ट में खुलासा: 60 दिन की कानूनी सीमा के बावजूद 3 साल से धूल फांक रही हैं 62 फाइलें, एडवोकेट कुलदीप बौद्ध ने एसपी को सौंपे सबूत।
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SC/ST एक्ट: कानून कहता है 60 दिन, पुलिस ने लगा दिए 3 साल; जालौन में दलित उत्पीड़न के मामलों में बड़ी लापरवाही का खुलासा
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उरई (जालौन): उत्तर प्रदेश के जालौन जिले में दलित उत्पीड़न और SC/ST एक्ट के मामलों में पुलिस की बड़ी लापरवाही सामने आई है। जिस कानून में पीड़ित को त्वरित न्याय दिलाने के लिए 60 से 90 दिनों के भीतर चार्जशीट दाखिल करने का प्रावधान है, वहां पुलिस ने फाइलों को सालों तक दबाकर रखा है।

इस गंभीर मुद्दे का खुलासा दलित डिग्निटी एंड जस्टिस सेंटर (DDJC) की एक रिसर्च रिपोर्ट में हुआ है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जिले में 62 ऐसे मामले हैं, जिनमें 1000 दिन बीत जाने के बाद भी न तो चार्जशीट दाखिल हुई और न ही फाइनल रिपोर्ट (FR) लगाई गई।

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SP के सामने रखा गया 3 सालों का 'कच्चा चिट्ठा'

दलित डिग्निटी एंड जस्टिस सेंटर (DDJC) के संस्थापक और इलाहाबाद हाईकोर्ट के एडवोकेट कुलदीप कुमार बौद्ध के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने जालौन के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (SP) डॉ. दुर्गेश कुमार से मुलाकात की। प्रतिनिधिमंडल ने उन्हें 62 पेंडिंग केसों की सूची के साथ एक मांगपत्र सौंपा और पुलिसिया कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए।

DDJC की रिसर्च में चौकाने वाले आंकड़े:

संस्था ने पिछले 3 वर्षों (1000 दिन) में जालौन जिले में दर्ज हुए 254 SC/ST मुकदमों का गहन अध्ययन किया। इसके नतीजे बेहद चिंताजनक हैं:

  • कुल केस: 254

  • चार्जशीट दाखिल: 168 मामलों में

  • फाइनल रिपोर्ट (FR): 24 मामलों में

  • गायब फाइलें (पेंडिंग): 62 मामले (जिनका ई-कोर्ट सर्विस पर कोई स्टेटस नहीं है)

कानून की धज्जियां: 60 दिन का नियम, 1000 दिन की देरी

एडवोकेट कुलदीप बौद्ध ने बताया कि अनुसूचित जाति और जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 और SC/ST POA एक्ट में स्पष्ट प्रावधान है कि मुकदमा दर्ज होने के 60 से 90 दिनों के भीतर पुलिस को न्यायालय में आरोप पत्र (चार्जशीट) दाखिल करना अनिवार्य है।

लेकिन जालौन में इन 62 मामलों में कम से कम 60 दिन और अधिकतम 1000 दिन बीत चुके हैं। ई-कोर्ट पोर्टल पर इनका कोई स्टेटस नहीं दिख रहा है, जिससे साफ है कि पीड़ित न्याय के लिए दर-दर भटक रहे हैं।

SP ने दिया कार्रवाई का आश्वासन

प्रतिनिधिमंडल की बात को गंभीरता से लेते हुए एसपी जालौन डॉ. दुर्गेश कुमार ने मामलों के निस्तारण और सक्रिय कार्रवाई का आश्वासन दिया है। प्रतिनिधिमंडल में एड. रश्मि वर्मा, एड. निकहत परवीन, एड. क़ासिम खान, प्रदीप कुमार, सचिन कुमार और आयुष कुमार शामिल रहे।

क्या है 'न्याय तक पहुँच' अभियान?

एडवोकेट कुलदीप बौद्ध ने बताया कि उनकी संस्था DDJC "एक्सेस टू जस्टिस कैंपेन" (Access to Justice Campaign) चला रही है। इसके तहत गाँव स्तर पर 'पैरालीगल चैंपियन वॉलंटियर्स' (दलित मानवाधिकार रक्षक) तैयार किए जा रहे हैं।

यह टीम न केवल दलित उत्पीड़न, पॉक्सो और महिला हिंसा जैसे मामलों की फैक्ट फाइंडिंग और डॉक्यूमेंटेशन करती है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करती है कि पीड़ितों को सम्मानपूर्वक न्याय मिले। संस्था का उद्देश्य केवल समुदाय को जागरूक करना नहीं, बल्कि रिसर्च के जरिए सिस्टम की खामियों को उजागर कर उसे जवाबदेह बनाना है।

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