बाबा साहेब से प्रेरित दलित लेखक की किताब: "शक्तिशाली बनो, सत्ता प्राप्त करो" क्यों है बहुजन समाज के लिए विशेष?

डॉ. अंबेडकर के अमर कथन "शिक्षित बनो और संगठित हो जाओ..." से प्रेरणा लेते हुए लेखक ने "शक्तिशाली बनो, सत्ता प्राप्त करो" का सूत्र प्रस्तुत किया है। लेखक का मानना है कि शिक्षा, संगठन और संघर्ष के बाद समाज को नेतृत्वकर्ता और सत्तासीन बनने की ओर अग्रसर होना चाहिए।
बाबा साहेब से प्रेरित दलित लेखक की किताब: "शक्तिशाली बनो, सत्ता प्राप्त करो" क्यों है बहुजन समाज के लिए विशेष?
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राजगढ़, छत्तीसगढ़- वर्तमान राजनीतिक अस्थिरता के युग में, बहुजन समुदाय अपने अधिकारों और भागीदारी की जोरदार मांग कर रहा है। एक ओर राजनीतिक दल और बहुजन संगठन जातिगत जनगणना और जनसंख्या के अनुसार आरक्षण सीमाएं हटाने की पैरवी कर रहे हैं, तो दूसरी ओर राजनीतिक भागीदारी के लिए आवाज़ें बुलंद हो रही हैं। ऐसे समय में एक ऐसी किताब सामने आई है, जो बहुजन समुदाय को यह सिखाती है कि वे अपने अधिकारों को कैसे प्राप्त कर सकते हैं और सत्ता में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर सकते हैं।

द मूकनायक ने दलित लेखक और चिन्तक रुसेन कुमार से उनकी किताब पर विस्तृत बातचीत की. रुसेन कुमार पत्रकारिता एवं कारपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) के क्षेत्र में प्रसिद्ध हैं। कुमार ने डॉ. अंबेडकर के प्रसिद्ध कथन "शिक्षित बनो, संघर्ष करो और संगठित हो जाओ; खुद पर विश्वास रखो..." को केंद्र में रखते हुए समाज के लिए एक नया सूत्र प्रस्तावित किया है: "शक्तिशाली बनो, सत्ता प्राप्त करो"।

इस किताब में शिक्षा, संघर्ष और संगठन की महत्ता के साथ यह समझाया गया है कि समाज और व्यक्ति को सशक्त बनाने के लिए राजनीतिक सत्ता हासिल करना कितना आवश्यक है।

डॉ. अंबेडकर के अमर कथन "शिक्षित बनो और संगठित हो जाओ..." से प्रेरणा लेते हुए लेखक ने "शक्तिशाली बनो, सत्ता प्राप्त करो" का सूत्र प्रस्तुत किया है। लेखक का मानना है कि शिक्षा, संगठन और संघर्ष के बाद समाज को नेतृत्वकर्ता और सत्तासीन बनने की ओर अग्रसर होना चाहिए। यह किताब बहुजन समाज को केवल विचारों से नहीं, बल्कि ठोस कार्ययोजना से भी जोड़ती है।

रुसेन कुमार का जीवन उनकी मेहनत और समाज के लिए समर्पण की कहानी है। वे छत्तीसगढ़ के सतनामी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं जो अनुसूचित जाति (एससी) समुदाय से संबंधित है।

रुसेन कहते हैं, " यह विरासत मेरे दृष्टिकोण को गहराई से प्रभावित करती है और समाज के हाशिए पर रहने वाले वर्गों के सशक्तिकरण और उत्थान की दिशा में काम करने की मेरी प्रतिबद्धता को प्रेरित करती है। मेरा जन्म एक साधारण परिवार में हुआ, लेकिन शिक्षा और संघर्ष के बल पर खुद को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने में सफल हुआ हूँ।"

उनके शैक्षिक सफर ने उन्हें विविधता और गहराई प्रदान की. रुसेन को गणित में बी.एससी, हिंदी में एम.ए. के साथ एमबीए (मार्केटिंग) की डिग्री हासिल है। साथ ही समाज और शिक्षा से जुड़े गहन विषयों पर उनका पीएचडी शोध जारी है।

रुसेन कुमार ने बचपन से ही समाज में मौजूद असमानता और अन्याय को करीब से देखा। इन अनुभवों ने उन्हें समाज के कमजोर और वंचित वर्गों के लिए कुछ ठोस करने की प्रेरणा दी। पढ़ने और लिखने का शौक उनके दैनिक जीवन का हिस्सा बन गया, और उन्होंने अपनी किताबों के माध्यम से समाज को एक नई दिशा देने का प्रयास किया। इस किताब में शिक्षा को व्यक्तिगत और सामूहिक सशक्तिकरण का सबसे बड़ा माध्यम बताया गया है। लेखक ने उच्च शिक्षा की आवश्यकता और इसके प्रभाव को रेखांकित किया है।

"क्या आपने कभी जातिगत भेदभाव का सामना किया है?" इस सवाल का जवाब देते हुए रुसेन कुमार ने कहा:

"मैं भाग्यशाली हूं कि अपने 47 वर्षों के जीवन में मुझे कभी भी जातिगत भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ा। हालांकि, मैं पूरी तरह से इस तथ्य से अवगत हूं कि आज भी कई लोग प्रणालीगत असमानताओं के कारण चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। मेरी व्यक्तिगत यात्रा अवसरों, सीखने, और सकारात्मक योगदान से आकार ली गई है।"

उन्होंने आगे कहा, "यह मेरा सौभाग्य है कि मेरे अनुभवों में भेदभाव शामिल नहीं रहा, लेकिन यह मुझे प्रेरित करता है कि मैं एक अधिक समावेशी और न्यायसंगत समाज के निर्माण की दिशा में काम करूं, जहां कोई भी व्यक्ति सामाजिक बाधाओं के कारण पीछे न छूटे।"

लेखक की प्रेरणा

लेखक का जीवन और लेखन बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर के विचारों से गहराई से प्रेरित है। द मूकनायक ने इस किताब की बहुजन समाज के लिए उपयोगिता पर जानकारी ली. लेखक कहते हैं , "बाबा साहेब ने शिक्षा, संघर्ष और संगठन के महत्व को समझाया। उनका जीवन उन मूल्यों का जीता-जागता उदाहरण है, जो समाज के वंचित वर्गों को सशक्त बना सकते हैं। उनकी शिक्षाओं ने मुझे यह समझने में मदद की कि सशक्तिकरण के बिना प्रगति असंभव है।"

रुसेन कुमार बताते हैं कि उन्होंने डॉ. अंबेडकर के अमर कथन—"शिक्षित बनो, संघर्ष करो और संगठित हो जाओ; खुद पर विश्वास रखो"—को कई वर्षों तक गहराई से समझने की कोशिश की। यही विचार उनके चिंतन और लेखन की प्रेरणा बना। उन्होंने महसूस किया कि शिक्षा, आत्मविश्वास और संगठन के बाद समाज को सत्ता और नेतृत्व की ओर बढ़ने की आवश्यकता है। इसी सोच से प्रेरित होकर उन्होंने यह किताब लिखी।

किताब का सार और महत्व

"शक्तिशाली बनो, सत्ता प्राप्त करो" सिर्फ एक किताब नहीं है, बल्कि बहुजन समाज के लिए एक रोडमैप है।

  1. शिक्षा की शक्ति


    लेखक ने शिक्षा को सबसे प्रभावशाली हथियार बताया है, जो न केवल रोजगार देता है, बल्कि आत्मनिर्भरता, नवाचार और नेतृत्व के दरवाजे भी खोलता है।

  2. संगठन की भूमिका


    संगठन के बिना समाज के किसी भी वर्ग का सशक्तिकरण असंभव है। लेखक ने कमजोर वर्गों को संगठित होकर शक्ति प्राप्त करने की ओर प्रेरित किया है।

  3. आर्थिक सशक्तिकरण


    आर्थिक स्वतंत्रता को सामाजिक स्वतंत्रता का आधार बताया गया है। लेखक का मानना है कि कौशल विकास, उद्यमिता और वित्तीय साक्षरता बहुजन समाज को आत्मनिर्भर बना सकती है।

  4. राजनीतिक जागरूकता


    किताब राजनीतिक शक्ति को समाज की प्रगति का महत्वपूर्ण घटक मानती है। लेखक का कहना है कि सत्ता से निकटता के बिना समाज का समग्र विकास अधूरा है।

  5. नैतिकता और जिम्मेदारी


    शिक्षा के साथ नैतिकता और सामुदायिक जिम्मेदारी पर जोर दिया गया है। लेखक ने इसे समाज की स्थिरता और प्रगति के लिए अनिवार्य बताया है।

क्यों पढ़नी चाहिए यह किताब?

यह किताब बहुजन समाज को नई सोच, दिशा और दृष्टिकोण प्रदान करती है। लेखक ने समाज की समस्याओं का गहराई से अध्ययन कर ठोस समाधान पेश किए हैं। यह पुस्तक बहुजन समाज के लिए प्रेरणा और मार्गदर्शन का स्रोत है, जो उन्हें न केवल आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित करती है, बल्कि नेतृत्वकर्ता बनने का सपना भी दिखाती है। सम्यक प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित इस पुस्तक में 220 पन्नों में शिक्षा, संघर्ष, संगठन और आत्मविश्वास के महत्व को समझाया गया है। किताब की कीमत 300 रूपये है।

लेखक का मानना है कि आरक्षण ने कमजोर वर्गों को आगे बढ़ने के अवसर प्रदान किए हैं, लेकिन यह सफर अभी अधूरा है। बहुजन उच्च शिक्षा पर ध्यान दें: छात्रवृत्ति, मेंटरशिप और विशेष योजनाओं के माध्यम से उच्च शिक्षा तक पहुंच आसान बनानी चाहिए। आर्थिक स्वतंत्रता जरूरी है: कौशल विकास और उद्यमिता के लिए विशेष प्रयास किए जाने चाहिए। सकारात्मक आदर्शों की भूमिका- बहुजन समाज के सफल व्यक्तित्वों को प्रेरणा स्रोत के रूप में प्रस्तुत करना चाहिए।

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