बनासकांठा – गुजरात के बनासकांठा ज़िले के अलवाड़ा गांव में 7 अगस्त को एक ऐतिहासिक घटना घटी। गांव के 24 वर्षीय खेत मज़दूर किरण (किरति) चौहान ने पहली बार गांव की नाई की दुकान पर बाल कटवाए। यह मौका दलित समुदाय के लिए सिर्फ़ एक हेयरकट नहीं, बल्कि पीढ़ियों से चली आ रही सामाजिक बेड़ियों से मुक्ति का प्रतीक बन गया।
करीब 6,500 की आबादी वाले अलवाड़ा गांव में लगभग 250 दलित परिवार रहते हैं। लेकिन यहां पीढ़ियों से यह भेदभाव चला आ रहा था कि गांव के नाई दलितों के बाल नहीं काटते। मजबूरन दलितों को दूसरे गांवों में जाकर नाई की दुकान पर जाना पड़ता था और कई बार अपनी जाति छिपानी पड़ती थी।
58 वर्षीय छोगाजी चौहान कहते हैं, “हमारे पुरखे आज़ादी से पहले भी इस भेदभाव को झेलते थे। और मेरे बच्चे भी पिछले आठ दशकों से यही सहते आए हैं।”
किरति चौहान के लिए यह अनुभव बेहद भावुक था। उन्होंने कहा, “24 साल में पहली बार मैं अपने गांव के नाई की कुर्सी पर बैठा। पहले हमें हमेशा बाहर जाना पड़ता था। उस दिन मुझे लगा कि मैं अपने गांव में ही स्वीकार किया गया हूं और आज़ाद हूं।”
दलित समाज की लगातार कोशिशों में उन्हें सामाजिक कार्यकर्ता चेतन दाभी का साथ मिला। उन्होंने गांव के सवर्णों और नाइयों को समझाया कि यह प्रथा असंवैधानिक है। जब समझाइश से बात नहीं बनी, तो पुलिस और ज़िला प्रशासन को हस्तक्षेप करना पड़ा।
मामलतदार जनक मेहता ने गांव के नेताओं के साथ बैठक की और मसले का समाधान निकाला। वहीं, ग्राम सरपंच सुरेश चौधरी ने पिछले भेदभाव पर खेद जताते हुए कहा कि इस बदलाव को अपने कार्यकाल में होते देखना उनके लिए खुशी की बात है। अब गांव की सभी पांचों नाई की दुकानें दलित ग्राहकों का स्वागत करती हैं।
किरति के बाल काटने वाले 21 वर्षीय नाई पिंटू ने कहा, “हम परंपरा के चलते ऐसा करते थे। लेकिन अब जब बुज़ुर्गों ने इजाज़त दे दी है तो कोई रोक नहीं है। इससे हमारा व्यवसाय भी बढ़ा है।”
सवर्ण समुदाय के लोग भी इस बदलाव से संतुष्ट हैं। पाटीदार समाज के प्रकाश पटेल ने कहा, “अगर मेरी किराना दुकान पर हर कोई आ सकता है, तो नाई की दुकान पर क्यों नहीं? अच्छा है कि यह ग़लत प्रथा अब खत्म हो गई।”
हालांकि यह बदलाव सराहनीय है, लेकिन दलित समुदाय मानता है कि भेदभाव पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है। दलित किसान ईश्वर चौहान कहते हैं, “आज हमें नाई की दुकान पर जगह मिल गई है, लेकिन सामुदायिक भोज में हमें अब भी अलग बैठाया जाता है। उम्मीद है, एक दिन यह भी ख़त्म होगा।”
अलवाड़ा गांव के लिए यह haircut सिर्फ़ एक सामान्य घटना नहीं, बल्कि सम्मान, स्वीकार्यता और समानता की दिशा में बड़ा कदम है। जैसा कि गांव के लोग कहते हैं, “यह सिर्फ़ हेयरकट नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत है।”
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