दलितों को सिर्फ चपरासी की नौकरी? तमिलनाडु सरकार की नई गाइडलाइन्स ने भड़काया बड़ा विवाद!

तमिलनाडु सरकार की नई SOP पर दलित संगठनों का विरोध, SC/ST एक्ट के प्रावधानों के उल्लंघन का आरोप
Dalit Activists Raise Concerns Over SOP Diluting SC/ST Act, Govt Denies Allegations
एससी/एसटी एक्ट को कमजोर करने के आरोपों पर विवादग्राफिक- राजन चौधरी, द मूकनायक
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मदुरै: तमिलनाडु सरकार ने उन आरोपों को खारिज कर दिया है, जिनमें दलित अधिकार कार्यकर्ताओं ने हाल ही में आदिवासी और आदिद्रविड़ कल्याण विभाग द्वारा जारी मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 2015 को कमजोर करने वाला बताया है।

दलित मुक्ति आंदोलन (DLM) के राज्य सचिव सी. करुपैया ने एक मीडिया समूह से बात करते हुए कहा, “कुछ हफ्ते पहले जारी SOP में उल्लेख है कि नियम 12 के तहत FIR एक इंस्पेक्टर द्वारा दर्ज की जा सकती है, जिसे जांच अधिकारी (IO) के रूप में भी मान्यता दी गई है। यह पूरी तरह से गलत है। एससी/एसटी एक्ट की धारा 12 स्पष्ट रूप से कहती है कि डीएसपी (DSP) से नीचे रैंक के पुलिस अधिकारी को IO नहीं बनाया जा सकता।”

उन्होंने आगे कहा, “SOP में यह भी कहा गया है कि इंस्पेक्टर FIR को एसपी (SP) को भेजेगा ताकि IO नियुक्त किया जा सके। जबकि अधिनियम के अनुसार, एसपी को पहले घटनास्थल का निरीक्षण करना होता है और उसके बाद ही जांच अधिकारी की नियुक्ति करनी चाहिए।”

करुपैया ने पीड़ितों के परिजनों को मुआवजा और सरकारी नौकरी देने से जुड़ी गाइडलाइन्स पर भी नाराजगी जताई। उन्होंने कहा, “SOP में कहा गया है कि पीड़ित के परिजन को केवल स्नातक स्तर की पढ़ाई के लिए वित्तीय सहायता दी जा सकती है। जबकि एससी/एसटी एक्ट के अनुसार, चाहे वह स्नातक हो या परास्नातक, सभी स्तरों की शिक्षा के लिए सहायता मिलनी चाहिए।”

मानवाधिकार संगठन एविडेंस के संस्थापक काथिर ने भी SOP की आलोचना की। उन्होंने कहा, “जांच अधिकारी की नियुक्ति के अलावा भी SOP में कई खामियां हैं। जब मैंने सोशल मीडिया पर इन मुद्दों को उठाया, तो विभाग के एक अधिकारी ने मुझसे संपर्क कर कहा कि जल्द ही इन्हें ठीक किया जाएगा। लेकिन हमें संदेह है कि सरकार एससी/एसटी समुदाय के खिलाफ होने वाले अत्याचारों को रोकने के प्रति गंभीर नहीं है।”

काथिर ने यह भी कहा, “कानून स्पष्ट रूप से कहता है कि पीड़ित के परिजन को सरकारी नौकरी मिलनी चाहिए। लेकिन कई मामलों में देखा गया है कि पोस्टग्रेजुएट डिग्री धारकों को चपरासी या कार्यालय सहायक की नौकरी दी जा रही है, जो बेहद अपमानजनक है।”

इस पर प्रतिक्रिया देते हुए आदिद्रविड़ और जनजातीय कल्याण विभाग की सचिव लक्ष्मी प्रिया ने कहा, “हमेशा से यही प्रक्रिया रही है कि DSP ही जांच अधिकारी होते हैं। FIR SHO (स्टेशन हाउस ऑफिसर) द्वारा दर्ज की जाती है, जो इंस्पेक्टर हो सकता है क्योंकि FIR तुरंत दर्ज करना आवश्यक होता है। इसके बाद की कार्रवाई DSP द्वारा की जाती है। अन्य बिंदुओं की जांच कर हम आवश्यक कार्रवाई करेंगे।”

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