
इलाहाबाद- इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में धर्म परिवर्तन के बाद अनुसूचित जाति (SC) या अनुसूचित जनजाति (ST) के लाभों का दावा करने को 'संविधान पर धोखा' करार दिया है। महराजगंज जिले के जितेंद्र साहनी के मामले में हाईकोर्ट ने न केवल आपराधिक मुकदमे को रद्द करने की याचिका खारिज की, बल्कि प्रार्थी के शपथ-पत्र में खुद के धर्म को हिंदू बताने पर गंभीर सवाल उठाए।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ईसाई धर्म अपनाने वाले व्यक्ति को SC लाभों का हक नहीं बनता, और ऐसे मामलों में सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। इस फैसले ने न केवल स्थानीय स्तर पर विवादास्पद प्रार्थना सभाओं को बल दिया, बल्कि पूरे देश में आरक्षण नीति और धर्मांतरण के मुद्दे पर नई बहस छेड़ दी है। जस्टिस प्रवीण कुमार गिरी की एकलपीठ ने 21 नवंबर को यह आदेश जारी किया, जिसमें राज्य सरकार के अधिकारियों को व्यापक निर्देश दिए गए हैं।
मामला महराजगंज जिले के सिंदुरिया थाने से जुड़ा है, जिसमें जितेंद्र साहनी पर भारतीय दंड संहिता की धारा 153-ए (धर्म, जाति आदि के आधार पर शत्रुता फैलाना) और 295-ए (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना) के तहत मुकदमा दर्ज किया गया। साहनी ने अपनी जमीन पर रविवार और बुधवार को यीशु मसीह के उपदेशों पर आधारित प्रार्थना सभाएं आयोजित करने की अनुमति मांगी थी, जिसे सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट ने 3 अप्रैल 2023 को मंजूरी दी।
लेकिन स्थानीय हिंदू समुदाय के विरोध के बाद यह अनुमति 3 मई 2023 को वापस ले ली गई। सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट के 10 दिसंबर 2023 के आदेश में कहा गया कि साहनी ने बलुआही धूस चौराहे पर पंडाल लगाकर बड़ी संख्या में लोगों को ईसाई धर्म अपनाने के लिए उकसाया, जिससे कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ी। कोर्ट ने इस आदेश का हवाला देते हुए याचिका खारिज कर दी और कहा कि ट्रायल कोर्ट ही साक्ष्यों की जांच करेगा।
याचिका में साहनी के वकील पैटी डेविड और वंदना हेनरी ने दावा किया कि प्रार्थना सभाओं में कोई विवादास्पद भाषण नहीं हुआ और गवाहों ने भी अभियोजन के पक्ष का समर्थन नहीं किया। उन्होंने चार्जशीट (11 मार्च 2024) और समनिंग ऑर्डर (24 जुलाई 2024) को रद्द करने की मांग की। लेकिन अतिरिक्त गवर्नमेंट एडवोकेट पंकज त्रिपाठी ने गवाह लक्ष्मण विश्वकर्मा के बयान का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि साहनी पहले हिंदू थे, लेकिन अब ईसाई पादरी बन चुके हैं।
विश्वकर्मा ने बयान में आरोप लगाया, "साहनी हिंदू देवी-देवताओं के बारे में अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करते हैं। वे कहते हैं कि हिंदू धर्म में हजारों देवता हैं, आठ हाथ, चार भुजाएं, पांच मुख, सूअर का सवारी करने वाले, चूहे का भोग लगाने वाले... यह सब कहकर हिंदू विश्वासों का अपमान करते हैं।" कोर्ट ने इस बयान को धारा 161 सीआरपीसी के तहत दर्ज बताते हुए कहा कि यह ट्रायल में विरोधाभास पैदा करने के लिए इस्तेमाल हो सकता है, लेकिन याचिका के आधार पर मुकदमा रद्द नहीं किया जा सकता।
फैसले का सबसे विवादास्पद हिस्सा तब उभरा जब कोर्ट ने साहनी के शपथ-पत्र पर नजर डाली। याचिका के समर्थन में दाखिल हलफनामे में साहनी ने खुद को हिंदू बताया, जबकि गवाहों के बयानों से साफ था कि वे ईसाई धर्म अपनाकर पादरी बन चुके हैं।
जस्टिस गिरी ने इसे गंभीर बताते हुए संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश 1950 का हवाला दिया, जिसमें पैराग्राफ 3 में स्पष्ट है: "नो पर्सन हू प्रोफेसेज ए रिलिजन डिफरेंट फ्रॉम द हिंदू, द सिख ऑर द बौद्धिस्ट रिलिजन शैल बी डीम्ड टू बी ए मेंबर ऑफ ए शेड्यूल्ड कास्ट।" कोर्ट ने कहा कि SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 2(सी) भी इसी संवैधानिक परिभाषा पर आधारित है। अनुच्छेद 341 और 342 के तहत SC/ST की सूची में केवल हिंदू, सिख या बौद्ध ही शामिल हो सकते हैं। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 की धारा 2 में भी 'हिंदू' की परिभाषा में ईसाई शामिल नहीं हैं।
सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसलों का जिक्र करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जोर दिया कि धर्मांतरण के बाद SC लाभ खो जाते हैं। 1986 के सूसाई बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था: "यह साफ़ है कि संविधान के मकसद के लिए, अनुसूचित जातियों से जुड़े संवैधानिक नियम सिर्फ़ संविधान (अनुसूचित जातियाँ) ऑर्डर, 1950 में बताई गई जातियों के उन सदस्यों पर लागू होने के लिए हैं जो हिंदू या सिख धर्म को मानते हैं।"
इसी तरह, 2015 के के.पी. मनु बनाम चेयरमैन, स्क्रूटिनी कमिटी मामले में कहा गया: "तीन बातें जो साबित होनी चाहिए... (i) साफ़ सबूत कि यह मान्यता प्राप्त जाति की है... (ii) मूल धर्म में वापस धर्मांतरण... और (iii) समुदाय द्वारा स्वीकृति।" हालिया 2024 के सी. सेलवरानी बनाम स्पेशल सेक्रेटरी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सख्त लहजा अपनाते हुए कहा: "धर्मांतरण का पता चलने के बाद सिर्फ़ रिज़र्वेशन पाने के लिए जाति के आधार पर फ़ायदों का दावा करना 'संविधान के साथ धोखाधड़ी' है।" कोर्ट ने चेतावनी दी कि यदि रूपांतरण केवल आरक्षण लाभ के लिए हो, तो यह नीति के उद्देश्य को विफल करता है।
आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के हालिया 2025 के अक्काला रामी रेड्डी मामले का भी हवाला देते हुए इलाहाबाद कोर्ट ने कहा कि ईसाई धर्म में जाति-आधारित भेदभाव नहीं होता, इसलिए SC वर्गीकरण समाप्त हो जाता है। SC/ST अधिनियम केवल उन समुदायों की रक्षा के लिए है जो ऐतिहासिक रूप से जातिगत उत्पीड़न झेलते हैं। ऐसे में, अन्य धर्म अपनाने वालों को इसकी सुरक्षा नहीं मिल सकती।
जस्टिस गिरी ने महत्वपूर्ण टिप्पणी में कहा:
"भारत एक सेक्युलर देश है। हर नागरिक को आर्टिकल 25 के तहत अपनी पसंद का धर्म मानने और मानने का अधिकार है। कोई भी दूसरे धर्म में तभी बदल सकता है जब वह सच में उसके उसूलों से प्रेरित हो... लेकिन, अगर धर्म बदलने का मकसद ज़्यादातर रिज़र्वेशन का फ़ायदा उठाना है... तो इसकी इजाज़त नहीं दी जा सकती।"
फैसले में कोर्ट ने व्यापक निर्देश जारी किए: महराजगंज के जिलाधिकारी को तीन माह में साहनी के धर्म की जांच कर फर्जी शपथ-पत्र पर सख्त कार्रवाई करने का आदेश दिया गया।
भारत सरकार के कैबिनेट सेक्रेटरी, उत्तर प्रदेश के चीफ सेक्रेटरी, अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के प्रधान सचिव और सामाजिक कल्याण विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव को SC/ST/OBC लाभों की जांच में संवैधानिक प्रावधानों का पालन करने को कहा गया।
सभी जिलाधिकारियों को चार माह में कार्रवाई कर चीफ सेक्रेटरी को रिपोर्ट देने का निर्देश है, ताकि 'सी. सेलवरानी' मामले की तरह संविधान पर धोखाधड़ी न हो। एजीए को इस आदेश को सभी संबंधित अधिकारियों तक पहुंचाने का जिम्मा सौंपा गया।
द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.